उनका दिल बहलाने का दूसरा नाम ही मनोरंजन माना जाता रहा है और इस मनोरंजन के लिए वे कुछ भी करने को तैयार उन्हें ही सबसे पहले फिल्म उद्योग में सबसे पहले काम करने का अवसर मिला। अनारकली, ताजमहल और मुगलेआज़म जैसी फिल्में राजा महाराजा प्रेम कहानियों पर आधारित फिल्में थीं।

सर्वप्रथम यह काम फिल्मों के द्वारा महाराष्ट्रके सुप्रसिद्ध कलाकार दादा साहेब फालके ने सत्यवादी हरिश्चन्द्र फिल्म बनाकर एक नया इतिहास रचा था इसके पश्चात के.आसिफ, महबूब खान, सोहराब मोदी जैसे महान बी आर. चोपड़ा ने धर्म,कानून और रहस्यमयी फिल्मों पर जोर दिया। धर्मपु़त्र, कानून और हमराज जैसी फिल्में दीं और वहीं उन्होंने मल्टीस्टार फिल्म का भी सिलसिला शुरू किया।

राजकुमार,सुनीलदत्त और शशिकपूर को लेकर वक्त फिल्म का निर्माण किया जिसमें उन्होंने बलराज साहनी को केन्द्र में रखा। फिल्म शहीद दो बार बनी जिसमें दिलीप कुमार और दूसरी में मनोज कुमार मुख्य थे। दिलीप कुमार और मनोज कुमार को लेकर मद्रास की कम्पनी जैमिनी ने फिल्म आदमी का निर्माण किया। मनोज कुमार ने दिलीप कुमार को लेकर फिल्म क्रान्ति बनाई। दिलीप कुमार की पहली फिल्म में उनका नाम मनोज था उसी को लेकर हरिगोस्वामी मनोज कुमार बन गए और उन्होने अपनी सभी फिल्मों में अपना नाम भारत ही रखा । बी आर. चोपड़ा ने धर्म ,कानून और रहस्यमयी फिल्मों पर जोर दिया।

नए नायकों की फिल्में और नए निर्देशकों का दबाव इतना बढ़ चुका है कि छवि गृह के मालिकों को यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किसकी फिल्म लगाए या किसी की नहीं आजकल के नए युग में प्रवेश करते ही पिछले पांच छः वर्शों के भीतर ही मल्टीप्लस थियटरों की मांग बढ़ती जा रही है। बड़े शहरों दिल्ली मुम्बई और चेन्नई जैसे शहरों के अलावा यूपी मध्य प्रदेश और राजस्थन में इसका प्रभाव बढ़ रहा है। नए नए कलाकारों की फिल्में प्रदर्शित हो रही है। फिर भी आज अक्षय कुमार, रितिक रोशन और अभिषेक बच्चन की फिल्में आ रही है। लेकिन अमिताभ बच्चन जिस रूप में भी फिल्म में आ जाए वे अपनी फिल्म को हिट करने में अभी दमखम रखते हैं।

निर्माता निर्देशकों ने इस धारा को आगे बढ़ाया। महिलाओं में जद्दन बाई, नसीम बानों शोभना समर्थ और सुचित्रासेन ने पुरूष समाज से जद्दोजहद करके अपनी जगह बनाई जिसे अभी तक हेमामोलिनी, पूजा भट्ट,फराह खान, और एकता कपूर ने बरकरार रखा हुआ है।

महिला निर्माता निर्देशिकाओं ने अपने हिसाब से फिल्म उद्योग रोमांस की दुनिया ले गई तथा वीरांगनाओं पर भी अपनी नज़र बनाएं रखी है। राजा महाजाराओं नवाबों तथा प्रेम कहानियों पर फिल्म उद्योग अपनी फिल्मों की कहानियां बुनता रहा।

धर्मेन्द्र जैसे हीमैन कलाकारों ने फिल्म उद्योग की धारा को मोड़ा तथा एक्शन फिल्मों को उद्योग में स्थान दिलवाया। हालीवुड और बालीवुड के निर्माता निर्देशक भी आज अमिताभ बच्चन के इर्द गिर्द फिल्मों के कथानक बुनने के लिए स्क्रिप्ट राइटर को मजबूर करते हैं ताकि अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म बना सके। हर भूमिका में फिट बैठने वाले अमिताभ ही हैं जिन्हें भूत,जासूस, माफिया और पुलिस तथा फौजी की भूमिका में फिट किया जा सकता है। 16 से 20 वर्ष की छोकरियों से लेकर 50 से उपर पहुंच चुकी अभिनेत्रियां तक आज भी अमिताभ बच्चन के साथ रोमान्टिक भूमिकाएं करने को आतुर रहती हैं। इन फिल्मों के कथानक में प्रेम कहानियां तो रहीं लेकिन राजा महाराजाओं से हटकर वे कहानियां आम जनता के नजदीक पहुंचाने के लिए फिल्म निर्माताओं ने सामाजिक विषयों को लेकर फिल्म बनाने के लिए होड़ लग गई।

राजकपूर, राजकुमार, राजेन्द्र कुमार और सुनीलदत्त एवं मनोजकुमार जैसे कलाकारों ने अपनी फिल्मों का विषय देशप्रेम से लेकर आम आदमी की जिन्दगी को छूने वाले को बनाया। धर्म, प्रेम, आम आदमी की जिन्दगी जैसे विषय लेकर निर्माता निर्देशकों ने अपनी फिल्मों को बनाना शुरू कर दिया। राजेन्द्र कुमार , राजकपूर और वैजयंतीमाला को लेकर आर के बैनर ने संगम फिल्म बनाई जो हिट रही। राजेन्द्र कुमार ने वैजयंती माला के साथ कई फिल्में की जिसमें सूरज, जिन्दगी और संगम मुख्य रहीं।

भारत की आजादी में अपने जीवन को स्वाहा करने वाले उद्यम सिंह, भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद तथा सुभाष चन्द्र बोस जैसे किरदारों पर फिल्म निर्माताओं ने फिल्में बनाई। नवनिर्माता आमिर खान ने बहुत बड़ा जोखिम लेकर मंगलपाण्डे के कारनामों पर फिल्म बनाई। 60 के दशक में प्रेम कहानियों का जोर फिल्म नगरी पर जमा रहा। मनोजकुमार, राजेन्द्र कुमार और राजेश खन्ना जैसे कलाकारों ने प्रेम कहानियों पर जोर दिया तथा राजेश खन्ना ने आराधना से लेकर प्रेम नगर तक प्रेम कहानियों पर बनी फिल्मों में काम किया उनका साथ शर्मिला टेगौर, मुमताज, नन्दा, हेमामालिनी और जीनत अमान ने साथ दिया। रेखा और जया भादुड़ी ने भी राजेश खन्ना का साथ निभाया। हरिकेष मुखर्जी ने धर्मेन्द्र से लेकर अमोल पालेकर जैसे नए कलकारों को लेकर भी फिल्में बनाई। उनकी फिल्में काफी आम आदमी को हमेशा गुदगुदाए रहती थीं। 60-70 के दशक में सुपर स्टार की कुर्सी पर राजेश खन्ना की विराजमान रहे। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आर.डी. बर्मन की तिकड़ी ने अपनी आवाज को फिल्मी दुनिया में बुलन्द किया। लगभग 30 से अधिक फिल्मों में यह तिकड़ी की चली।

इसके पश्चात राजेश खन्ना पर घमण्डी होने का आरोप लगने लगा और निर्माता निर्देशक भी अन्य कलाकारों की ओर भागने लगे। दूसरी तरफ जंजीर फिल्म हिट हो जाने की वजह से एक नए सितारे का उदय हो गया जिसको यंग एंग्रीमेन का खिताब हासिल किए अमिताभ बच्चन इस दौड़ में शामिल हो गए। जी.जी.सिप्पी की फिल्म शोले आ जाने के पश्चात अमिताभ बच्चन को फिल्मी दुनिया में एक नयी जमीन मिल गयी। शोले से लेकर नमकीन हुए नि:शब्द, कम चीनी और बाबुल जैसी फिल्मों में भी अमिताभ बच्चन अपना कैरियर बनाए हुए हैं।

हालीवुड और बालीवुड के निर्माता निर्देशक भी आज अमिताभ बच्च्न के इर्द गिर्द फिल्मों के कथानक बुनने के लिए स्क्रिप्ट राईटर को मजबूर करते है ताकि अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म बना सके। हर भूमिका में फिट बैठने वाले अमिताभ ही हैं जिन्हें भूत,जासूस, माफिया और पुलिस तथा फौजी की भूमिका में फिट किया जा सकता है। 16 से 20 वर्ष की छोकरियों से लेकर 50 से उपर पहुंच चुकी अभिनेत्रियां तक आज भी अमिताभ बच्चन के साथ रोमान्टिक भूमिकाएं करने को आतुर रहती हैं। आज भी निर्माता निर्देशक उनकी तरफ आस लगाए बैठे हैं। तीन पत्ती जैसी फिल्में भी अमिताभ बच्चन की वजह से चल निकलती हैं। अमिताभ बच्चन केवल फिल्म उद्योग के सुपर स्टार ही नहीं बल्कि फिल्म हिट होने का ब्राण्ड भी बन गए हैं। अमिताभ बच्चन का फिल्म में होना ही फिल्म के हिट होने की गारन्टी बन जाता है। (कलानेत्र पक्रिमा)