भारतीय जनता पार्टी और संसद में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी की उक्ति के पीछे राजनीति हो सकती है लेकिन उनकी इस बात में दम है कि इस समय केन्द्र में सत्तारऊढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली और वामपंथियों द्वारा समर्थित संप्रग सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट, निक्कमी, विफल और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्धारण में भी दिशाहीन सरकार है।
मनमोहन सिंह की कैबिनेट में एक से बढ़कर एक भ्रष्ट और आपराधिक छवि वाले मंत्री हैं। उन पर न तो मनमोहन सिंह का नियंत्रण है और न ही सत्ता की असली केन्द्र सोनिया गांधी का। गठबंधन के नाम पर सरकार की छवि को दांव पर लगाया गया।
पहले पूर्व मंत्री नटवर सिंह का तेल घोटाला और फिर पी चिदम्बरम के पत्नी प्रेम ने मनमोहन सिंह सरकार की छवि खराब की थी। अब टी आर बालू की करतूतों से मनमोहन सिंह सरकार शर्मसार हुई है। बालू प्रकरण की गूंज दूर तक जायेगी, इसमे कोई दो राय नहीं है। इसका आभास तो इससे मिलता है कि बालू मुद्दे पर विपक्ष ने चार दिनों तक संसद नहीं चलने दिया ।
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के कड़े रूख के बावजूद विपक्ष का विरोध शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। खासकर विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जो मुद्दे उठाये हैं, उनका कोई जवाब कांग्रेस पार्टी या मनमोहन सिंह सरकार के पास मौजूद नहीं है। बालू के बेटों को लाभ पहुचाने में प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर कई मंत्रालयों की भूमिका संदिग्ध रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सब कुछ जनते-समझते हुए भी बालू के बेटों को सहायता पहुंचाने में दिलचस्पी दिखायी।
मनमोहन सिंह व्यक्तिगत छवि कुछ लोगों की नजर में अच्छी हो सकती है जिनको पुन: सोचना पड़ेगा क्योंकि उनका मंत्रालय ही नियम कानूनों को दरकिनार कर भ्रष्टाचार को गले लगाने का काम कर बैठा है। इसलिए उनपर दोष जाना स्वाभाविक और तर्कसंगत भी है। हो सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को तर्कसंगत बनाने की दलील देकर उल्टी-सीधी करने वाले यह प्रधान मंत्री कोई तर्क ढूंढ़ निकालें लेकिन उनपर दाग मिटेगा नहीं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राजनीति में अनाड़ी तो थे ही अब अर्थशास्त्र में भी अनाड़ी साबित हो रहे हैं। देश में उन्हें नयी आर्थिक नीतियों का जनक माना जाता है। जब चन्द्रशेखर के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था ध्वस्त सी हुई थी और संकट काफी गहरा हो गया था तब विश्व बैंक और मुद्रा कोष ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने का ताना-बना बुना। नरसिंम्हा राव मंत्रिमंडल में विश्व बैंक और मुद्रा कोष को अपने चहेते मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनवाने में कामयाबी मिली। अमेरिकी इच्छाओं के अनुरूप देश में आर्थिक नीति लागू हुई। आर्थिक नीतियों का खामियाजा आज देश किस तरह भुगत रहा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
आज हमारी खाद्यान पर आत्मनिर्भरता समाप्त हो चुकी है और गेंहू के आयात के लिए हमें मजबूर होना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री बनने के साथ मनमोहन सिंह ने वायदा किया था कि आर्थिक सुधारों का मानवीयकरण किया जायेगा और आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं व हितों की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी। यह वायदा छलावा साबित हो चुका है। आम आदमी मंहगाई से झुलस रहा है। क्रय शक्ति घट रही है। आर्थिक संसाधन चंद लोगों के हाथों में सिमट रहा है। मंहगाई रोकने के सभी प्रयास विफल साबित हुए है।
कहना ना होगा कि अर्थशास्त्र में माहिर प्रधानमंत्री अर्थशास्त्र में ही विफल साबित हो रहे हैं। किसानों की आत्महत्याएं असली चिंता का विषय मानी जानी चाहिए। कांग्रेस और इनकी लटकू वामपंथी जमात राजग शासनकाल में हो रही किसानों की आत्महत्याओं के खिलाफ गला फाड़-फाड़ कर चीखते-चिल्लाते थे। लेकिन आज ये चुप क्यों है?
किसानों की ऋण माफी योजना की असलियत भी सामने आ गयी है। चार साल तक किसानों को हाशिये पर ढकेलने वाली संप्रग सरकार पांचवें साल यानी चुनावी साल में किसानों को रिझाने के लिए बहेलिया की तरह चारा डाल रही है।
संप्रग सरकार की साख पर सबसे अधिक बट्टा अमेरिका के साथ परमाणु समझोते से लगा है। परमाणु समझोते में राष्ट्र की अस्मिता को गिरवी रख दिया गया है। इसके पहले कोई भी सरकार अंतर्राष्ट्रीय नियामकों के सामने परमाणु मुद्दे पर झुकी नहीं थी। परमाणु समझोता अमल में आ गया तो परमाणु विस्फोट का अधिकार फ्रिज हो जयेगा।
बालू मुद्दे पर प्रधानमंत्री को सफाई देनी चाहिए, क्योंकि उंगली उनके मंत्रालय पर ही उठी है। प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को ध्यान यह रखना होगा कि घटक दलों और वामपंथियों के साथ सौदेबाजी में राष्ट्रीय हितों और सरकार की छवि पर बट्टा नहीं लगे। अगर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी अब भी नहीं चेते तो उनका भी वही हाल होगा जो राजग की खुशफहमी को हुआ था। यानी केन्द्रीय सत्ता से बाहर का रास्ता।(समाप्त)
सबसे भ्रष्ट और निकम्मी सरकार
मनमोहन सिंह की छवि पर बट्टा
किसके संरक्षण में हैं बेअंकुश मंत्री और अधिकारी
विष्णुगुप्त - 2008-04-30 17:20
इस समय केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली और वामपंथियों द्वारा समर्थित संप्रग सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट, निक्कमी, विफल और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्धारण में भी दिशाहीन सरकार है। मनमोहन सिंह की कैबिनेट में एक से बढ़कर एक भ्रष्ट और आपराधिक छवि वाले मंत्री हैं। उन पर न तो मनमोहन सिंह का नियंत्रण है और न ही सत्ता की असली केन्द्र सोनिया गांधी का।