बिहार में लालू और नीतिश के बीच की लड़ाई है। अन्य दल अब गौण हो चुके है। सिक्किम में तो एक दलीय व्यवस्था का बोलबाला चल रहा है। कांग्रेस तो वहां अब कुछ ही नहीं रह गई बल्कि प्रभावहीन सी हो गई है। नक्सलवाद पर बहस के दौरान यही सामने आता है कि लाल और तिरंगे की लड़ाई चल रही हो। कांग्रेस इन सबके साथ लाल होती नज़र आ रही है क्योंकि सरकार में ममता को रोकने वाला कोई नहीं दीख रहा है। जिस तरह से ममता केन्द्र रहते हुए भी कांग्रेस के लिए आफ्त बनती जा रही है उसे ना तो कांग्रेस ही रोक पा रही है और ना ही यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी अपने सिपलासारों को इस काम के लिए लगा रखा है कि किसी भी तरह वे ममता की रफ्तार कम कर सके लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी कोशिशों के बावजूद वे अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सके हैं।

द्विसप्ताह चली संसद की कारवाई में ममता यूपीए के लिए बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है। लालू, शरद, भाजपा और अन्य क्षेत्रीय दलों ने एक स्वर में कांग्रेस को आग्रह किया है कि नक्सलवाद जैसी कैंसरग्रस्त बीमारी का इलाज शीघ्र किया जाए। ममता की लालगढ़ की रैली में नक्सली नेताओं की उपस्थिति भी कांग्रेस और यूपीए सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई। भाजपा समेत अन्य दलों ने एक स्वर में सरकार को अपनी भावनाओं से अवगत कराया है। डा. मनमोहन सिंह जहां कश्मीर समस्या का समाधान ढूंढने में लगे हुए है वहीं ममता की समस्या का जिम्मा कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को सौंपा हुआ है।

पूर्वोत्तर की समस्याओं से जहां केन्द्र राहत महसूस कर रहा है वहीं उत्तर और पश्चिम की समस्याओं से लगातार जूझ रहा है। कश्मीर में 1953 वाले हालात का दावा जम्मू व कश्मीर में क्षेत्रीय दलों के साथ ही साथ भाजपा ने भी किया है जिससे शीघ्र सुलझाने की बात की है इसीलिए में भारी दबाव के भीतर डा. मनमोहन सिंह ने जम्मू व कश्मीर मसले को अहमियत दी है।

यूपीए सरकार में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस होने की वजह से सभी की निगाहें कांग्रेस पर ही है और आने वाले समय में चुनावों देखते हुए कांग्रेस इस समय दुविधा की स्थिति में हैं। वह क्षेत्रीय दलों की स्थिति का जायजा लेने के लिए भी अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए भी तत्पर है। असम केरल पश्चिम बंगाल बिहार तथा पंजाब एवं महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं इसलिए सरकार के साथ ही साथ कांग्रेस भी राजनीति समीकरणों के चलते केवल कयास के बल पर अपना-अपना गणित लगाने की कोशिश कर रही है। जहां कांग्रेस नगण्य होती जा रही है वहीं वहां कांग्रेस अपना वर्चस्य कायम करने की कोशिश कर रही है वहीं यूपीए सरकार उन दलों पर किसी प्रकार की सख्ती से पेश नहीं आना चाहती है इसी स्थिति का लाभ ममता उठा रही है और कांग्रेस अपने आपको उसके आगे बेबस लगती नज़र आ रही है। ममता और सोनिया के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही है। (कलानेत्र परिक्रमा)