यह राज्य, पिछले दो दशकों से सीमा पार से प्रायोजित और समर्थित आतंकवाद और पृथतकावादी हिंसा से पीड़ित रहा है। अब तक इसके कारण 13,775 से अधिक नागरिकों और 4,690 सुरक्षा बलों के जवानों की जानें गई हैं। इस राज्य में आतंकवाद की पहली घटना 1989 में हुई थी।

यदि पिछले छह वर्षों में राज्य में अलगवाद और आतंकवाद में हुए हताहतों की संख्या को आधार मानें तो कहा जा सकता है कि आंतरिक सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है।

2004 में राज्य में आतंकवाद की 2565 घटनाएं हुईं थीं जो उसके बाद के वर्षों में घटती चली गयीं तथा 2009 में मात्र 499 रह गयीं। वही हाल मारे गये सुरक्षा बलों के मामले में रहा जिनकी संख्या 281 से घटकर 64 रह गयी है। मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या भी 707 से घटकर 78 रह गयी। इतना ही नहीं, मारे गये उग्रवादियों की संख्या भी 776 ले घटकर 239 हो गयी है।

राज्य में आतंकी घटनाओं और हताहतों की संख्या में विगत दो वर्षों में तो काफी गिरावट आई है और स्थिति में समग्र सुधार के लक्षण प्रकट हो रहे जान पड़ते हैं।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की हमारी सुरक्षा संबंधी समस्याएं अब समाप्त हो रही हैं। रिर्पोटों से पता चलता है कि सीमा पार से आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने का आधारभूत ढांचा बरकरार है और आतंकवादियों को राज्य में अवैध रूप से भेजने के उनके प्रयास अक्षुण्ण रूप से जारी हैं। उपलब्ध सूचना से पता चलता है कि जिस घुसपैठ में वर्ष 2005 से निरन्तर गिरावट आई है वह वर्ष 2009 में बदल गई और वर्ष 2008 की तुलना में इसमें काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2005 में 597 घुसपैठिये पकड़े गये थे लेकिन 2006 में घुसपैठ की गतिविधियों में कमी आयी थी और पकड़े गये लोगों की संख्या 273 थी। वर्ष 2007 में 235 पकड़े गये थे जो 2008 में बढ़कर अचानक 342 तथा 2009 में 485 हो गया। सीधा अर्थ है कि घुसपैठ की गतिविधियां फिर तेज हो गयी हैं या तो बीच के वर्षों में सुरक्षा बलों की कमी के कारण घुसपैठियों को कम संख्या में गिरफ्तार किया जा सका।

यद्यपि उग्रवाद/आतंकवादी अभियानों का मुकाबला करने मे राज्य पुलिस की सहायता के लिए राज्य में सेना और केन्द्रीय सुरक्षा बल तैनात रहे, तथापि ऐसे अभियानों में राज्य पुलिस की भूमिका और भागीदारी को निरंतर रूप से बढ़ाये जाने के कारण अच्छे परिणाम निकले।

राज्य सरकार को उनके प्रयासों में सहायता प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार, सिपाहियों को लाने-ले-जाने, सामग्री की आपूर्ति करने, आवास के किराये, अतिरिक्त बटालियनों, एस पी ओ को मानदेय, सिविक कार्रवाई कार्यक्रम, हवाई प्रभार, इंडिया रिजर्व बटालियनों के गठन प्रभार, परिवहन, ठहरने और खान-पान सुरक्षा बलों के लिए वैकल्पिक आवास आदि जैसे सुरक्षा से संबंधित कई उपायों पर किए जा रहे विभिन्न प्रकार के व्यय की वहन करती रही है। एस आर ई (पी) के अन्तर्गत (1989 से), 31 मार्च, 2009 तक 2,922.255 करोड़ रूपए की राशि दी की गई। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान 31 दिसम्बर, 2009 तक एस आर ई (पी) के अन्तर्गत 159.07 करोड़ रूपए की राशि प्रदान की गई।

राज्य सरकार, सेना, केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के वरिष्ठ प्रतिनिधयों के साथ एकीकृत मुख्यालय कमान में जम्मू और कश्मीर के मुख्य मंत्री द्वारा राज्य में सुरक्षा की स्थिति की निगरानी और समीक्षा की जाती है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय भी राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर सुरक्षा से संबंधित स्थिति पर निकट से और लगातार निगरानी रखता है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने मुख्य मंत्री, जम्मू और कश्मीर तथा यू एच क्यू के सदस्यों के साथ दिनांक 18 मार्च, 2009, 11 जून, 2009 और 17 फरवरी, 2010 को हुइ तीन बैठकों की अध्यक्षता की।

सरकार का दावा है कि सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद एवं हिंसा से उत्पन्न चुनौतियों का राजनीतिक दृष्टिकोण से मुकाबला करने और राज्य में शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए वह वचनबद्ध एवं दृढ़संकल्पबद्ध है। इसके लिए सुरक्षा मोर्चे पर किए गए विभिन्न उपायों के अतिरिक्त एक बहुआयामी रणनीति का पालन किया जा रहा है। इसमें शामिल हैं - आधारभतू संरचना को सुदृढ़ बनाना, रोजगार और आय के अवसरों का सृजन करना और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे लोगों के जीवन की गुण्वत्ता में सामान्य सुधार करने के उददेश्य से 26,288 करोड़ रूपए की प्रधान मंत्री की पुननिर्माण योजना के विकासात्मक पहलुओं और कार्यान्वयन पर ध्यान केन्द्रित करना, राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया जारी रखने को सुनिश्चित करना और राज्य में राजनीतिक वातावरण सुरक्षित बनाना, मानवधिकारों का बिल्कुल भी उल्लंघन न होने देना और कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए न्यूनतम बल का प्रयोग करना, कानून और व्यवस्था बनाए रखने में सिविल प्रशासन और चुने गए प्रतिनिधियों की मुख्य भूमिका होना, जम्मू के प्रवासियों की स्थिति में सुधार करने के उपाय करना और घाटी में उनकी वापसी के लिए प्रोत्साहनों का पैकेज प्रदान करना (इस संबंध में प्रधानमंत्री ने 1618.40 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषण की है), सीमा पार पाक अधिकृत कश्मीर तथा भारतीय क्षेत्र के जम्मू और कश्मीर के बीच ‘‘बस सेवायें’शुरू करके और मुख्य रूप से स्थानीय उत्पादों और जिन उत्पादों की मांग हो उन सूचीबद्ध 21 वस्तुओं में व्यापार शुरू करके नियंत्रण रेखा पार लोगों से संपर्क को सुगम बनाने के लिए आवश्यक उपाय करना।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने 28-29 अक्टबूर, 2009 को जम्मू कश्मीर का दौरा किया था। केन्द्रीय गृह मंत्री ने 11-12 जून 2009, 14 अक्टूबर 2009, 4 नवम्बर 2009 और 17 फरवरी 2010 को राज्य का दौरा किया था। मंत्रिमंडल सचिव और भारत सरकार के सचिवों ने दिनांक 5-6 अक्टूबर, 2009 के श्रीनगर के अपने दौरे के दौरान राज्य सरकार के पदाधिकारियों के साथ चर्चा की थी। इन दौरों का उद्देश्य राज्य की समस्याओं के निपटान का पता लगाने के लिए की गई पहलों को आगे बढ़ान तथा विकास की गति को तेज करना था जिनमें नियंत्रण रेखा के आर-पार के लोगों का एक-दूसरे के साथ संपर्क स्थापित कराना (सी बी एम) के उपाय भी शामिल थे।

भारत सरकार ने नियंत्रण रेखा पार यात्रा करने और नियंत्रण रेखा पार व्यापार करने सहित नियंत्रण रेखा पार के लोगों में एक-दूसरे के साथ संपर्क स्थापित करने के विभिन्न उपाय भी शुरू किए हैं।

यह भी ध्यान रहे कि सीमा के आर-पार के लोगों में संपर्क स्थापित किए जाने को बढ़ावा देने के लिए दिनांक 07 अप्रैल, 2005 से श्रीनगर-मुजफफराबाद पाक्षिक बस सेवा शुरू की गई थी और इसके बाद दिनांक 20 जून, 2006 से पुंछ-रावलकोट मार्ग पर शुरू की गई थी। विश्वास निर्माण के इस उपाय पर अच्छी प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए नियंत्रण रेखा के दोनों ओर श्रीनगर-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलकोट मार्ग की पाक्षिक बस सेवा को क्रमशः दिनांक 11 सितम्बर, 2008 और 8 सितम्बर, 2008 से साप्ताहिक सेवा में परिवर्तित कर दिया गया था।

दिनांक 25 फरवरी, 2010 तक की स्थिति के अनुसार इन सेवाओं का लाभ उठाकर श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के रास्ते 2713 भारतीय पाक अधिकृत कश्मीर गये जबकि वहां से 3511 श्रीनगर आये। पुंछ-रावलकोट मार्ग से 2864 भारतीय गये जबकि उधर से 4344 लोग रावलकोट तक आये। स्पष्ट है कि नियंत्रण रेखा पार से भारत की तुलना में अधिक लोग पाकिस्तान से आ रहे हैं।

63वीं संयुक्त राष्ट्र आम सभा के दौरान अलग से दिनांक 23 सितम्बर, 2008 को भारत के प्रधानमंत्री की पाकिस्तान के राष्ट्रपति के साथ हुई बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्ति की थी कि दिनांक 21 अक्टूबर 2008 से नियंत्रण रेखा पार से व्यापार शुरू किया जाए। उसके बात श्रीनगर-मुजफ्फराबाद मार्ग पर दिनांक 21 अक्टूबर, 2008 से नियंत्रण रेखा पार से व्यापार शुरू हुआ। उस दिन 13 ट्रकों ने पाक अधिकृत कश्मीर जाने के लिए रेखा पार की और 14 ट्रक भारत आए। दिनांक 25 फरवरी, 2010 तक 1,668 ट्रकों ने सीमा पार कर पाक अधिकृत कश्मीर गए और 2,534 ट्रक सीमा पार कर हमारे यहां आए।

पुंछ-रावलकोट मार्ग पर भी नियंत्रण रेखा पार से व्यापार दिनांक 21 अक्तूबर, 2008 से शुरू हुआ। उस तारीख को 3 ट्रकों ने सीमा पार कर पाक अधिकृत कश्मीर में प्रवेश किया और तीन वाहनों ने सामान ले जाकर नियंत्रण रेखा पार करके हमारी ओर प्रवेश किया। दिनांक 25 फरवरी, 2010 तक 1,587 ट्रकों ने सीमा पार कर हमारी ओर प्रवेश किया।

केन्द्र सरकार राज्य के सुनियोजित एवं संतुलित क्षेत्रीय विकास पर विशेष बल देते हुए, राज्य सरकार द्वारा चहुंमुखी आर्थिक विकास लाने और वहां की जनता को लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान कराने के लिए राज्य सरकार को निरन्तर सहयोग एवं समर्थन प्रदान कर रही है। भौतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अवसंरचना को प्राथमिकता दी जाती है तथा इसके माध्यम से लोगों का सामान्य जन-जीवन सुधारने के अलावा राज्य में उत्पादन सम्भाव्यता को बढ़ाने को प्रयास किया जा रहा है।

इस दिशा में विशेष पहल के रूप में प्रधान मंत्री ने 17-18 नवम्बर, 2004 के जम्मू और कश्मीर के अपने दौरे के दौरान, लगभग 24,000 करोड़ रूपए के परिव्यय से जम्मू और कश्मीर के लिए एक ऐसी पुनर्निर्माण योजना की घोषणा की जिसमें मोटे तौर पर वे परियोजनाएं शामिल हैं जिनका उद्देश्य रोजगार और आय सृजन के कार्यकलापों पर जोर देते हुए आर्थिक संरचना का विस्तार करना और मूल सेवाओं का प्रावधान करना तथा जम्मू तथा कश्मीर की स्थिति से प्रभावित विभिन्न ग्रुपों को राहत और पुनर्वास प्रदान करना है। प्रधानमंत्री की पुनर्निर्माण योजना में शामिल सभी स्कीमों की वर्तमान अनुमानित लागत 26,288 करोड़ रूपए है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान, प्रधानमंत्री की पुनर्निर्माण योजना के लिए आबंटन 1,200 करोड़ रूपए है।

उल्लेखनीय है कि पुनर्निर्माण योजना, 2004 में परिकल्पित परियोजनाओं/स्कीमों का कार्यान्वयन संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों द्वारा राज्य सरकार के साथ परामर्श करके किया जाता है। इस योजना के कार्यान्वयन की प्रगति, जिसमें 67 परियाजनाएं/स्कीमें हैं, जिनमें 11 आर्थिक क्षेत्रों की परियोजनाएं शामिल हैं, को गृह मंत्रालय एवं योजना आयोग द्वारा नियमित रूप से मानीटर किया जा रहा है। उक्त 67 परियाजनओँ/स्कीमों में से 30 परियाजनाओं/स्कीमों के संबंध में कार्रवाई पूरी हो चुकी है। शेष 37 परियोजनाओं/स्कीमों में से 34 परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में है और बाकी 03 परियोजनाएं तैयारी की अवस्था में हैं।

जम्मू व कश्मीर में आतंकवादी हिंसा/उग्रवाद ने, विशेषकर शुरु के वर्षों में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों को बड़े पैमाने पर वहां से पलायन के लिए मजबूर कर दिया था जो अब भी राज्य के बाहर रह रहे हैं। वित्तीय सहायता/राहत तथा अन्य प्रयासों के माध्यम से वर्षों से कई उपाय किए गए हैं जिससे कि एक वृहत् नीतिगत रूपरेखा के अन्तर्गत प्रभावित परिवारों को सहायता एवं समर्थन दिया जा सके जिससे जो लोग
प्रवास कर गए हैं वे आखिरकार घाटी में लौट जाएं। लेकिन अब तक वे अपने घरों को नहीं लौट पाये हैं। ऐसे कुल 57,863 कश्मीरी प्रवासी परिवार हैं जिसमें से 37,285 परिवार जम्मू में, 19338 परिवार दिल्ली में 1,240 परिवार अन्य राज्यों/संघ शासित प्रदशों में हैं। यह भी एक तथ्य है कि जितने कश्मीरी परिवार राज्य से पलायन कर चुके हैं उनकी संख्या सरकारी तौर पर बतायी गयी संख्या से ज्यादा है और सरकारी तौर से बताये गये सभी परिवारों को राहत न तो दी जा रही है और न तो उन परिवारों को पर्याप्त राहत मिल पा रही है जिन्हें राहत देने के लिए पहचानित किया गया है।

उदाहरण के लिए जम्मू व कश्मीर सरकार जम्मू क्षेत्र में रहे मात्र 16,686 योग्य परिवारों को अधिकतम 4,000 रूपए प्रति परिवार प्रतिमाह की सीमा तक प्रति व्यक्ति 1,000 रूपए की नगद राहत और सूखा राशन प्रदान कर रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार मात्र 3,264 योग्य परिवारों को 4,000 रूपए प्रति परिवार प्रतिमाह की सीमा तक प्रति व्यक्ति 1,000 रूपए की नगद राहत दे रही है। अन्य राज्य सरकारें/संघशासित क्षेत्र के प्रशासन भी अपने राज्यों/संघशासित क्षेत्रों में रह रहे कश्मीरी प्रवासियों को यथा निर्धारित किए गए मानदंण्डों के अनुरूप प्रवासियों को राहत प्रदान कर रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, जम्मू क्षेत्र में शिविरों में रह रहे परिवारों के जीवन स्तर को सुधारने के दृष्टिकोण से प्रधानमंत्री ने नवम्बर, 2004 में जम्मू व कश्मीर के अपने दौरे के दौरान जम्मू के शिविरों में एक कमरे वाले मकानों में इस समय रह रहे कश्मीरी प्रवासियों के लिए 345 करोड़ रूपए की अनुमानित लागत से 5,242 दो कमरे वाले मकानों के निर्माण की घोषणा की। जम्मू में पुरखू, मुथी और नगरोटा में शुरू किए गए, 1,024 फ्लैटों का निर्माण पूरा हो गया और आबंटित कर दिया गया है। शेष 4,218 फ्लैटों का निर्माण नगरोटा के समीप जगती में किया जा रहा है जिसे आधारभूत सुविधाओं के साथ एक शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है। निर्माण कार्य पूरे जोरशोर से चल रहा है और अक्टूबर, 2010 में इसके पूरा हो जाने की आशा है। लेकिन यह सब इतना कम है कि कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा बरकरार है। ध्यान रहे कि दो दशकों से ज्यादा समय से ये दुर्दशा को ग्रस्त हैं जबकि अभी तक कोई मुकम्मल व्यस्था नहीं की ज सकी है।

कश्मीरी प्रवासियों की वापसी को सुलभ बनाने के लिए, केन्द्र सरकार ने 22.90 करोड़ रूपए की लागत पर प्रयोगात्मक आधार पर बड़गाम जिले में शेखपुरा में 200 फ्लैटों के निर्माण को स्वीकृति प्रदान की। 120 फ्लैटों का निर्माण कार्य पूरा चुका है। राहत संगठन द्वारा 60 फ्लैटों का स्वामित्व हासिल किया जा चुका है। अब तक 31 फ्लैट कश्मीर घाटी के शिविरों में रह रहे प्रवासियों को आबंटित कर दिए गए हैं। इस परियोजना के दिसम्बर, 2010 तक पूरा होने की आशा है। स्पष्ट है कि ये प्रयास भी अपर्याप्त हैं तथा घाटी की स्थिति भी कश्मीरी पंडितों के अनुकूल नहीं बनायी जा सकी है।

उपरोक्त उपायों के अतिरिक्त, प्रधान मंत्री ने 25 अप्रैल, 2008 को जम्मू व कश्मीर के अपने दौरे के दौरान, अन्य तथ्यों के साथ-साथ, घाटी में कश्मीरी प्रवासियों की वापसी एवं पुनर्वास के लिए 1618.40 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा की थी। इस पैकेज में आवास, अस्थाई निवास, नगद राहत की निरन्तरता, छात्रों के लिए छात्रवृत्तियां, रोजगार कृषकों/बागवानीकर्त्ताओं को सहायता तथा ऋणों पर ब्याज की माफी के लिए सहायता का प्रावधान शामिल है।

राज्य सरकार ने पैकेज के प्रभावी कार्यान्वयन की देखरेख करने के लिए जम्मू व कश्मीर के राजस्व मंत्री की अध्यक्षता में सितम्बर, 2009 में एक शीर्ष सलाहकार समिति का गठन किया है। जम्मू और कश्मीर सरकार ने कश्मीरी प्रवासी बेरोजगार युवाओं के लिए 3,000 अतिरिक्त पदों का सृजन किया है। भर्ती नियम भी अधिसूचित कर दिए गए हैं। भर्ती एजेंसी ने 2,200 से अधिक पदों का विज्ञापन पहले ही दे दिया है और अब तक लगभग 6,000 आवेदन पत्र प्राप्त हो चुके हैं। तीन स्थानों को ट्रांजिट आवास निर्माण के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया गया है और निविदा आमंत्रित की गई हैं। जो कश्मीरी प्रवासी परिवार घाटी में लौटना चाहते हैं उनसे फरवरी, 2010 तक 4,400 आवेदन प्राप्त हो चुके हैं।

अप्रैल, 2008 में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैकेज में आतंकवादी हिंसा से संबंधित पीड़ितों के लिए प्रावधान/राहत उपाय शामिल किये गये थे। इस कार्य के लिए अग्रिम रूप से सुरक्षा व्यय (राहत एवं पुनर्वास) से राज्य सरकार को 100 करोड़ रूपए जारी किए गए। राज्य सरकार से मिली जानकारी के अनुसार, 1,517 मामलों को शामिल करते हुए अब तक 60.625 करोड़ रूपए खर्च किए गए है।

राज्य सरकार से मिली जानकारी के अनुसार, 2008-09 के दौरान 4,023 विधवाओं को बढी हुई पेंशन दिए जाने पर 1.20 करोड़ रूपए खर्च किए गए। वर्ष 2009-10 के लिए 4,274 विधवाओं को शामिल किए जाने का प्रस्ताव था।

एक बारगी सहायता के रूप में जम्मू व कश्मीर राज्य पुनर्वास परिषद की संग्रह निधि में अंशदान देने के लिए वर्ष 2008-09 के दौरान इस कार्य के लिए राज्य सरकार को 19 करोड़ रूपए की धनराशि जारी की गयी थी। राज्य सरकार से मिली जानकारी के अनुसार 541 अनाथ बच्चों को शामिल करते हुए 30.98 लाख रूपए की धनराशि 2008-09 के दौरान वितरित की गयी। वर्ष 2009-10 के दौरान, इस योजना के अन्तर्गत 1,371 अनाथ बच्चों को शामिल किए जाने का प्रस्ताव था।

सरकार सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भी चला रही है। लेकिन यह भी समस्या का हल नहीं है।