माओवादी या नक्सली के नाम से जाने जाने वाले इन अतिवादी वामपंथियों ने इस सशस्त्र संघर्ष के लिए अनेक संगठन बना रखे हैं। पहले ये अलग-अलग गुटों या खेमों में बंटे थे और उनमें आपसी सशस्त्र संघर्ष भी होते रहता था, लेकिन पिछले दो दशकों से उनमें काफी हद तक एकता देखी जा रही है और वे मुख्य रुप से आज चार ही ग्रुपों में मिलकर काम कर रहे हैं। बीच-बीच में खबरें आती रहती हैं कि उनके सम्बंध अलगाववादी आतंकवादी गुटों से हैं तथा अनेक विदेशी ताकतों से भी उनके सम्बंध हैं। सशस्त्र संघर्ष के लिए शस्त्र और गोलाबारुद प्राप्त करने के उद्देश्य से इन गुटों ने देशी विदेशी अनेक विध्वसंक गतिविधियां चलाने वाले संगठनों से संपर्क बना रखे हैं लेकिन यह साफ है कि ये अलगाववादी उद्देश्य के तहत अलग राज्य या देश नहीं चाहते और न ही इनका उद्देश्य महज समाज में आतंक फैलाना है। इनका अंतिम उद्देश्य तो भारत में वामपंथी राजनीतिक विचार वाली सत्ता की स्थापना करना है। इस संघर्ष के लिए धन की आवश्यकता पूरी करने के लिए अतिवादी वामपंथी उग्रवादी अपने क्षेत्र के लोगों और अधिकारियों से रंगदारी वसूलते हैं और कई बार उनके द्वारा खजाना या मालखाना लूटने की वारदातों को भी अंजाम दिया जाता है। पिछले दिनों तो यह भी खबर आयी कि मादक पदार्थों की तस्करी से कमाया गया धन भी इस अभियान में उपयोग में लाया जा रहा है। नक्सलियों या माओवादियों के सम्बंध सत्ता के गलियारों में भी हैं और अनेक नेता और अधिकारी इनके मित्र हैं। स्वयं भारत के गृह मंत्री ने इस तथ्य को स्वीकार है। एक बुद्धिजीवी वर्ग भी इनसे सहानुभूति रखता है और अनेक अन्य सामान्य जन हैं जो सत्ता और संपन्न वर्ग के अत्याचार के शिकार लोग भी इनसे सहानुभूति रखते हैं। इसी कारण अतिवादी वामपंथी उग्रवाद के खात्मे का काम पेचीदा हो गया है। केन्द्र सरकार ने इन्हें भी अलगावादी आतंकवादियों की तरह ही आतंकवादी अवश्य माना है लेकिन केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों का मानना है कि महज पुलिस या सैन्य कार्रवाई से इससे नहीं निपटा जा सकता। इसके लिए विकास का काम समुचित और न्ययपूर्ण तरीके से करना होगा। इसके लिए अनेक कार्यक्रम बनाये और कार्यान्वित किये जा रहे हैं विशेषकर नक्सल प्रभावित जिलों में।

इस समय भारत में अत्यंत सक्रिय नक्सली और माओवादी ग्रुप हैं –

पीपुल्स गुरिल्ला आर्मी (पी जी ए)

पीपुल्स गुरिल्ला आर्मी (पीजीए) पीपुल्स वार ग्रुप (पी डब्ल्यू जी) का सैन्य प्रभाग है। खबरों के अनुसार इसका गठन 2 दिसम्बर 2000 को बिहार और झारखंड में हुआ था। ठीक एक महीने बाद, 2 जनवरी 2001 को इसका आन्ध्र प्रदेश के घनघोर दंडकारण्य वन क्षेत्र में उत्तरी तेलेंगाना क्षेत्र में पुनर्गठन हुआ। इस पुनर्गठन के तहत सशस्त्र अभियान चलाने वाले गुरिल्ला बलों को मजबूत और पुनर्गठित किया गया ताकि इसकी मारक क्षमता बढ़ायी जा सके।

पी डब्ल्यू जी ने पी जी ए का गठन उन तीन पीडब्ल्यूजी के बड़े नेताओं की सुरक्षा बलों द्वारा की गयी मुठभेड़ में हत्या की पहली वर्षगांठ के अवसर पर किया जिनकी हत्या का प्रतिशोध लेने को पीडब्ल्यूजी तत्पर थी। वह मुठभेड़ आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के कोय्यूर जंगल में हुई थी।

पीडब्ल्यूजी ने बाद में एक बयान जारी कर बताया था कि उसने पीजीए का गठन तुर्की, फिलीपिन्स और पेरु के गुरिल्ला बलों की तर्ज पर किया था।

उस समय नक्सली हिंसा से प्रभावित राज्यों और केन्द्र सरकार ने निर्णय किया था कि नक्सलियों के सफाये के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त अभियान चलाया जाये। संयुक्त अभियान कई जगहों पर शुरु भी कर दिया गया था जिसके जवाब में पीडब्ल्यूजी ने अपनी गुरिल्ला शाखा पीजीए का गठन किया।

पीजीए एक ही कमांड के तहत कार्य करती है जिसका नाम सेंट्रल मिलिटरी कमीशन है। यह व्यवस्था केन्द्रीय स्तर पर है। लेकिन जिन राज्यों में पीजीए की गतिविधियां चल रही हैं वहां स्टेट मिलिटरी कमीशनें काम कर रही हैं। राज्यों के अन्दर भी विशेष गुरिल्ला क्षेत्र बने हैं जिनका कमान जोनल मिलिटरी कमीशन संभालती है। स्टेट मिलिटरी कमीशन या जोनल मिलिटरी कमीशन के ग्रुपों को रिजनल मिलिटरी कमीशन पर्यवेक्षण करता है। प्रत्येक रिजनल मिलिटरी कमीशन अपनी रपट सेंट्रल मिलिटरी कमीशन को भेजता है और ताजा सूचनाओं का आदान प्रदान होता रहता है। इसके सैन्य आदेश और उनके कार्यान्वयन की सूचनाओं का अलग तंत्र है जिसके बारे में पूरी जानकारी का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है।

वैसे पीडब्ल्यूजी के और भी सशस्त्र गुट सक्रिय हैं लेकिन सभी सशस्त्र गुट इस समय पीजीए के झंडे तले संगठित हैं, ऐसी खबरें हैं।

पीडब्ल्यूजी ने स्वयं घोषणा कर रखी है कि पीजीए तीन तरह के सैन्य बलों से बना होगा। एक मुख्य बल है, फिल सेकंडरी फोर्स है और उसके बाद पीपुल्स मिलिशिया है।

पीडब्ल्यूजी का इरादा है कि गांवों के स्तर पर पीजीए का गठन किया जाये ताकि राज्य से सत्ता जबरन अपने हाथ में ले ली जाये। अभी इस योजना पर ज्यादा अमल नहीं हो पाया है लेकिन खबरें हैं कि नक्सल प्रभावित भारतीय राज्यों के सुदूरवर्ती कुछ गांवों में इसका अस्तित्व है।

पीजीए में जिला और प्रमंडल स्तरों पर मिलिटरी प्लाटूनों के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। जिलों में अनेक जगहों पर स्पेशल गुरिल्ला स्क्वैड (एसजीएस) का गठन किया गया है, विशेषकर उन प्रभावित जिलों में जहां उनके मिलिटरी प्लाटून नहीं हों। उसके बाद अनेक स्थानों पर लोकल गुरिल्ला स्क्वैड (एलजीएस) भी गठित किये गये हैं जिनके कार्यक्षेत्र सीमित रखे गये हैं। ये एलएसजी कुछ गांवों के समूहों में ही सक्रिय रहते हैं।

इतना ही नहीं, एक्शन टीम और स्पेशल एक्शन टीम भी उन्होंने गठित कर रखें हैं जिन्हें ठिकानों और व्यक्तियों गुप्तचरी का काम दिया जाता है। हत्या, अपहरण या सम्पत्ति के विध्वंस जैसे कार्यों को अंजाम देने के लिए इनकी सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है।

जब भी पीजीए के काडर बड़ी संख्या में कहीं सभा आदि के लिए एकत्रित होते हैं तो उन अवसरों पर उनकी रक्षा के लिए सुरक्षा प्लाटून तैनात किये जाते हैं। इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल होते हैं। पिछले दिनों खबरें आयी थीं कि ऐसे सुरक्षा प्लाटुनों का उपयोग नहीं किया जा रहा है।

उनके काडर में शामिल लोग सिर्फ एक ही काडर में रखे जाते हैं और धीरे-धीरे उनको उनकी क्षमता के अनुसार अन्य काडरों में भेजा जाता है – जो गांवों से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर गठित हैं। सुविधा के अनुसार पीजीए ने जरुरी काडर ही अलग-अलग क्षेत्रों में बना रखे हैं और हर काडर हर जगह तैनात नहीं किया गया है।

खबरों के अनुसार पीजीए के एक प्लाटून में 25 से 30 लोगों को शामिल किया जाता है जिनपर एक कमांडर और एक डिप्यूटी कमांडर होता है। प्रत्येक प्लाटून को कई भागों में बांट दिया जाता है और प्रत्येग भाग का एक सेक्शन कमांडर और एक डिप्युटी सेक्शन कमांडर होता है।

जहां तक गुरिल्ला स्क्वैड का सवाल है उनमें पांच से आठ लोग होते हैं, जबकि एक्शन टीम में सिर्फ दो से तीन लोग ही होते हैं।

पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लयूजी)

पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) का आधिकारिक नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) (पीपुल्स वार) – सीपीआई-एमएल (पीडब्लयू) है।

पीपुल्स वार ग्रुप का गठन 22 अप्रैल 1980 को आन्ध्र प्रदेश में हुआ था। पूर्व कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया – मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट (सीपीआई-एमएल) के केन्द्रीय संगठन कमेटी के एक सदस्य और अत्यंत प्रभावशाली नक्सली नेता कोन्डापल्ली सीतारमैया के नेतृत्व में ही इसका गठन हुआ था लेकिन बाद में पार्टी के अंदर मतभेद हो जाने के कारण उन्हें निकाल दिया गया था। उनका निधन 12 अप्रैल 2002 को हो गया लेकिन उनके बारे में काडरों ने भी कोई खास प्रशंसा नहीं की।

जो भी हो, पीडब्ल्यूजी का कार्य आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले से ही शुरु हुआ जो राज्य के तेलेंगाना क्षेत्र में है। बाद में इसके कार्यक्षेत्र का विस्तार न सिर्फ आन्ध्र प्रदेश राज्य के अन्य क्षेत्रों में बल्कि अन्य राज्यों में भी हुआ।

माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी)

माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर के पूर्वस्वरुप को यदि ध्यान में रखें तो कहा जा सकता है कि इसका गठन दक्षिण देश के रुप में 20 अक्तूबर 1969 को हुआ था। जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) का गठन 1969 में अनेक माओवादी ग्रुपों को मिलाकर किया गया था उस समय भी दक्षिण देश उसमें शामिल नहीं हुआ तथा स्वयं को स्वतंत्र रखते हुए ही कार्य करता रहा। दक्षिण देश की अलग पहचान कायम रही और 1975 में इसका नाम बदलकर माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) कर दिया गया।

अन्य अतिवादी वामपंथी संगठनों की तरह ही एम सी सी का उद्देश्य भी पीपुल्स वार (जन युद्ध) के जरिये जनता की सरकार का गठन करना है। इसका प्रेरणास्रोत चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग और उनके विचार हैं। उन्हीं की तर्ज पर ये सशस्त्र क्रांति के मार्ग पर चलकर अपना उद्देश्य हासिल करना चाहते हैं।

शुरु में इसका कार्य क्षेत्र पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के जंगल महल क्षेत्र तक ही सिमटा हुआ था लेकिन बाद में इसमें काफी विस्तार हुआ तथा सुन्दरबर, चौबीस परगना, हुगली और मिदनापुर जिले इनकी चपेट में आ गये।

लेकिन आज इसका कार्यक्षेत्र काफी बढ़ा हुआ है। बिहार, उड़ीसा से सुन्दरगढ़ और क्योंझर इलाके के अलावा झारखंड में इसका काफी विस्तार हुआ। बिहार से गया, औरंगाबाद, कैमूर या भभुआ, रोहतास, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेतिया, और सीतामढ़ी जिलों में इसका काभी प्रभाव है। झारखंड में इसके प्रभावक्षेत्र में पड़ने वाले जिले हैं – चतरा, पलामू, हजारीबाग, सिंहभूम (पूर्वी और पश्चिमी दोनों), गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, रांची, लोहरदगा, गुमला, लातेहार और गढ़वा।

पश्चिम बंगाल में बीच के वर्षों में इसकी सक्रियता में कमी आयी थी लेकिन अब वे बर्दवान, नदिया, हाबड़ा, और उत्तरी 24 परगाना जिलों में काफी सक्रिय हो गये हैं।

कुछ समय से एम सी सी ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, चंदौली और सोणभद्र जिलों में भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) जनशक्ति

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) जनशक्ति या सीपीआई(एमएल) जनशक्ति का गठन 30 जुलाई 1992 को सात कम्युनिस्ट ग्रुपों को मिलाकर किया गया। ये ग्रुप थे – सीपीआई(एमएल) रेजिस्टेंस, यूनिटी सेंटर ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशनरी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) का एक घटक, सीपीआई(एमएल) आगामी युग, पैला वासुदेव राव का सीपीआई(एमएल), सीपीआई(एमएल) का खोकन मजुमदार ग्रुप, कोऑर्डिनेशन कमिटी ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्युशनरीज (सीसीसीआर) और कम्युनिस्ट रिवोल्युशनरी ग्रुप फॉर युनिटी (सीआरजीयू)।

सीपीआई(एमएल) जनशक्ति की विचारधारा “मास लाईन” वाली विचारधारा है जिसे चंद्रफुल्ला रेड्डी और टी नागी रेड्डी ने विकसित किया। इसके परिणाम स्वरुप यह माओवादी घटक 1994 में आंध्र प्रदेश के विधान सभा चुनावों में भी लड़ा। इसने उस समय 13 विधान सभाओं में अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। एक सीट पर इसके उम्मीदवार की जीत भी हुई थी। इसने एक श्रम संगठन भी बनाया, जिसका नाम था ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स। इसने एक किसान संगठन भी बनाया था।

लेकिन इस गुट में ज्यादा दिनों तक एकता नहीं रह सकी। सन् 1996 में ही इसमें से एक घटक निकलकर अलग हो गया तथा उसने सीपीआई-एमएल यूनिटी इनिशिएटिव नाम से अलग ग्रुप बना लिया। आज यह घटक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) कानू सान्याल गुट में शामिल है।

कुछ ही समय बाद जनशक्ति सात और ग्रुपों में बंट गयी। इसमें से एक ग्रुप जिसमें के राजन्ना और अन्य शामिल थे, ने गुरिल्ला युद्ध का रास्ता अपनाया। उनकी रणनीति वही थी जो पूर्व स्वरुप में पीडब्ल्यूजी की थी। यही वह घटक है जो आज पीडब्ल्यूजी के साथ यूनाईटेड फ्रंट में शामिल है – जिसका बाद में माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर में विलय हो गया और सितम्बर 2004 में फिर उनका एक संयुक्त मोर्चा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया – माओइस्ट बना।

आज का सीपीआई-एमएल जनशक्ति कुल मिलाकर राजन्ना गुट ही है जो आंध्र प्रदेश में दूसरा सबसे प्रभावी और हिंसक ग्रुप है। सीपीआई – माओइस्ट का प्रभाव और शक्ति आंघ्र प्रदेश में सबसे ज्यादा है।

12 फरवरी 2003 को जनशक्ति नेता के राजन्ना ने कहा था कि उनके काडर अब रणनीतिगत आक्रमण का रास्ता अपना रहे हैं।

लेकिन फंड के दुरुपयोग का आरोप लगाते हउए एक गुट दिसम्बर 2003 में राजन्ना खेमे से अलग हो गया और एम वी प्रसाद और राघवुलु जैसे नेता भी उनसे अलग हो गये। उनके अलग होते ही तटीय क्षेत्रों में जनशक्ति राजन्ना खेमा का प्रभाव घट गया। इस खेमे का प्रभाव अब सिर्फ तेलेंगाना क्षेत्र में ही है।

जो गुट अलग हुआ वह फिर सीपीआई-एमएल रामचंद्रन गुट के साथ राष्ट्रीय स्तर पर जा मिला। दोनों गुटों में फिर कलह शुरू हुआ। 18 जून 2005 की सुबह राजन्ना ग्रुप के पांच सशस्त्र काडरों ने नलगोंडा जिले के मोथे इलाके में ममिलागुडेन टोल गेट पर एम वी प्रसाद की हत्या कर दी।

18 अगस्त 2005 को सीपीआई-एमएल प्रतिघटना और सीपीआई-एमएल रामचन्द्रन गुट एक हो गये और उन्होंने सीपीआई(मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) नाम से अलग संगठन बना लिया।

एक अन्य जनशक्ति खेमा – द साऊथ रिजनल प्रॉविंसियल कमिटी, पहले ही 11 अप्रैल 2004 को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) चंद्रपुल्ला रेड्डी घटक के साथ मिल गया था। और इस तरह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) जनशक्ति का चंद्रपुल्ला रेड्डी गटक अस्तित्व में आया।

एक अन्य घटक का नाम है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया (सीपीयूएसआई)। इसे जनशक्ति वीरन्ना गुट के नाम से भी जाना जाता है।

वैसे तो सीपीआई-माओइस्ट और सीपीआई-एमएल जनशक्ति के सिद्धांतों में कोई फर्क नहीं है, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र अलग-अलग हैं।

इस समय देश के नौ राज्यों में आधिकारिक तौर पर नक्सलियों का प्रभाव माना जाता है लेकिन सीपीआई-माओइस्ट 15 राज्यों में सक्रिय है।

जनशक्ति का प्रभाव तीर राज्यों – आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में है।

गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस समय देश के 20 राज्यों के 220 जिले नक्सलियों की चपेट में हैं।

भारतीय खुफिया एजंसियों के हावाले से छपी खबरों में बताया गया कि देश में सक्रिय नक्सलियों की संख्या 20000 है जिनमें से 10000 हार्ड कोर हैं।

कुल सक्रिय नक्सल गुटों की संख्या 56 है।

ये गुट प्रति वर्ष सिर्फ रंगदारी के माध्यम से 1400 करोड़ रुपये एकत्रित करते हैं।

इनका लक्ष्य है 2050 तक भारत को सशस्त्र संघर्ष के जरिये अपने कब्जे में ले लेना।