जब खनिज तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़कर 147 डालर प्रति बैरल हो गयी थीं तब भारत सरकार ने कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ानी जरुरी है क्योंकि सरकार को ज्यादा मूल्य चुकानी पड़ रही है। जब कीमतें घटने लगीं तो लोक सभा में पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा को कहना पड़ा कि सरकार शीघ्र ही कीमतें कम कर देंगी। अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें और घटीं तथा 53.26 डालर प्रति बैरल हो गयीं। लेकिन जनता की उम्मीद पर पानी फेर दिया प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने। उन्होंने कहा कि कीमतें नहीं घटायी जायेंगी। यह तो तानाशाही हुई। चाहे दुनिया में कीमतें सस्ती क्यों न हो जायें, देश की जनता से भारी कीमत वसूलने की नीति कायम रखी गयी। उसके बाद आज पेट्रोलियम मंत्री भी मुकर गये। उन्होंने भी फरमाया कि जब तक डालर और रुपये में संतुलन नहीं बनता और कच्चे खनिज तेल की कीमतें स्थिर होकर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए सहने लायक नहीं हो जातीं तब तक कीमतें घटाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा कि हमारी तेल कंपनियों के जख्मों से खून रिस रहा है।
अजीब सा तर्क दिया जा रहा है। "प्रधान मंत्री ने पहले ही कह दिया है और मुझे यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि हम कीमतें इस समय नहीं घटा सकते क्योंकि तेल कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है," श्री देवड़ा ने कहा।
चलिए श्री देवड़ा की बात मान लेते हैं। लेकिन तब ऐसा मान लेने पर हमें और स्वयं देवड़ा जी को भी मानना पड़ेगा कि उन्हें अपने ही मंत्रालय के बारे में कुछ नहीं मालूम, कम से कम सच तो नहीं ही मालूम है। क्योंकि तब चंद दिनों पहले उन्होंने संसद में क्यों आश्वासन दे दिया कि सरकार कीमतें घटा देगी ? वास्तविकता तो यह है कि सीधे सरल आदमी की तरह उन्होंने वैसा आश्वासन दिया था क्योंकि वह जानते थे कि जब तेल मंगाने का खर्च लगभग 65 प्रतिशत घट गया है तो घाटा कैसा? वह जनता को उलझाने वाले पेंचदार अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से पहले दिया गया बयान था। लेकिन जब प्रधान मंत्री ने गलाकाट कीमतें जारी रखने की घोषणा ही कर दी तो उनके अधीनस्थ पेट्रोलियम मंत्री के पास जनता का गला काटने वाली कीमतें जारी रखने का तर्क तो ढूंढ़ना ही था।
श्री देवड़ा की आत्मा टटोलने वाले एक सवाल के जवाब में उनको फिर से कहना पड़ा कि हम कीमतें घटाना चाहते थे लेकिन डालर के मुकाबले रुपये की कीमत घट जाने के कारण अब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें घटानी मुश्किल हो गयी है।
लेकिन तब तर्क दिया जा सकता है कि रुपये का अवमूल्यन भी तो पिछले अप्रैल महीने के बाद मात्र 20 प्रति शत ही हुआ है।
लेकिन इसके काट में भी तर्क ढूंढ़ा गया है। प्रधान मंत्री ने तो इसी सप्ताह कहा है कि हमारी तेल कंपनियां पेट्रोलियम की बिक्री के मामले में जब तक न नफा न नुकसान वाली स्थिति में नहीं आ जातीं तब तक कीमतें नहीं घटायी जायेंगी।
इसलिए सुर में सुर मिलाते हुए श्री देवड़ा कह रहे हैं कि हमारी सार्वजनिक तेल कंपनियों को डीजल, रसोई गैस और किरासन तेल में भारी नुकसान हो रहा है।
उन्होंने माना कि पेट्रोल की बिक्री पर लाभ हो रहा है लेकिन अन्य खनिज तेल उत्पादनों के मद में प्रति दिन उन्हें 155 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि पेट्रोल पर 4.12 रुपये प्रति लीटन मुनाफा है लेकिन डीजल पर प्रति लीटन 96 पैसे, किरासन तेल पर 22.40 रुपये और रसोई गैस पर 343.49 रुपये प्रति सिलिंडर नुकसान हो रहा है।
सरासर बेईमानी है। मुरली देवड़ा ने भी जिरह करने पर माना है कि "राजस्व की हानि के आकलन में मतभेद हैं"।
माहौल ऑयल बांड जारी करने के लिए बनाया जा रहा है ताकि तेल कंपनियों को नयी अर्थ नीति के तहत और आगे खिसकाया जा सके।
वैसे प्रधान मंत्री ने कहा है कि यदि खनिज तेल कि अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें घटती रहीं तो देशी कीमतें घटाने की संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है। लेकिन ऐसी बातों का क्या? जनता जानती है कि अनेकानेक तर्कों के सहारे उनका दोहन किस तरह और कौन सी ताकतें कर रही हैं। बात महज इतनी है कि जनता बेवस है और सत्ता निष्ठुर।#
अन्तर्राष्ट्रीय खनिज तेल की कीमतों में भारी गिरावट
भारत में पेट्रोलियम की कीमतें नहीं घटेंगी
तर्क-कुतर्क का जाल बुन रहे हैं प्रधान मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री
ज्ञान पाठक - 2008-11-12 12:41
खनिज तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें लगातार घट रही हैं लेकिन भारत सरकार देश में उसकी कीमतें निकट भविष्य में घटाने को तैयार नहीं है। यह अलग बात है कि कीमतें घटकर 35 प्रतिशत के आसपास मंडरा रही हैं।