प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारतीयों को यह आश्वासन दिया था कि वे इस युद्ध के पश्चात भारत को आजाद कर देंगे यदि वे इस युद्ध में उनका साथ दें लेकिन उन्होंने अपने इस वायदे को कभी भी नहीं निभाया और उसके पीछे के कारण यही था 1857 के गदर के पश्चात हिन्दुओं और मुसलमानों ने मुगलशासकों के अन्तिम बादशाह बहादुरशाह जफ़र के नेतृत्व में यह युद्ध लड़ा गया था। ब्रिटिश हुकुमत यह मानती थी कि हिन्दुओं की संख्या अधिक होने की वजह से इनका मेलमिलाप उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ।
दूसरी तरफ महात्मा गांधी ने राम-रहीम का यह नारा केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि विश्व में गूंजने लगा था जहां-जहां ब्रिटिश साम्राज्य फैला हुआ था। इस झुकाव के कारण भी उनकी कूटनीति के अंतर्गत नहीं आती थी। वह लगातार मुसलमानों को उकसाती रही और जब तक वे अपने इस मकसद में कामयाब नहीं हो गई तब तक ब्रिटिश हूकूमत बटवारे के लिए सहमत नहीं हुई। जब भगवा ब्रिटिश शासकों के अन्दर इतना डर पैदा कर सकता है तो उसी की तर्र्ज पर राज कर रही कांग्रेस सरकार के लिए भी आज भगवा का हव्वा खड़ा करके वे किस तरफ इशारा कर रही है। बाबरी मस्जिद के गिराने का श्रेय वे आजतक अपनी पार्टी को नहीं दे पाए जबकि उस वक्त कांग्रेस की ही सरकार थी। रामलल्ला का किवाड़ खोलने का काम भी नेहरू कांग्रेस सरकार के वक्त हुआ। श्री राजीव गांधी के शासन काल में अयोघ्या में भूमि पूजन हुआ और श्री नरासिंह राव की सरकार में उसकी पूरी तरह से भूमिका को निभाकर अपनी जिम्मेवारी पूरी कर दी और आज वे स्वयं ही भगवा से इस कद्र भयभीत हो रही है कि उसे संसद में अपने इस डर को उजागर करना पड़ा क्योंकि उससे मुस्लिम समुदाय नाराज ना हो जाए जोकि वे आज भी उन्हें अपना वोट बैंक ही समझते आ रहे है।
कंग्रेस का थोथा मुस्लिम प्रेम केवल उनहे लुभावने सपने दिखाने तक ही है। शिक्षा के क्षेत्र में वे आज भी अपनी जनसंख्या के मुताबिक काफी पिछड़े हुए है। काश्तकार और बुनकर या फिर कल-पुर्जे जोड़ने तक ही यह समुदाय सीमित रह जाता है। जातिवादी जनसंख्या तथा धर्म के अनुसार सरकार को देश की जनगणना करवाने की नीति तो है लेकिन ‘शैक्षिक तौर पर देश की जनगणना क्यों नहीं करवाना चाहती है। क्या सरकार पुनः विभाजन की नीति पर ही तो नहीं चल रही जैसा कि 1936 में ब्रिटिश हूकूमत ने जब भारतीयों को चुनाव कराने की आजादी प्रदान की थी तभी उनका मकसद यही था कि वे इस बात का ज्ञान कर सके कि इस देश में कितने हिन्दू और कितने मुसलमान हैं ताकि उसी नीति के तहत वे अपने विभाजन के मकसद में कामयाब हो जाएं आज आजाद भारत में कांग्रेस गठजोड़ की यह पहचान बनने जा रही है जो कभी ब्रिटिश हूकूमत की इस देश में बनी थी।
आजादी के बाद भी महात्मा गांधी के आदर्शों और सिद्धान्तों को बहुत दुहाई देती हैं लेकिन वास्तविकता उससे कहीं दूर है। महात्मा गांधी का जन्मोत्सव मनाना या फिर सिद्धान्तों का ढिढोंरा पीटना दोनों ही कांग्रेस ही ‘शायद मजबूरी ही लगती है। देश की गाढ़ी कमाई केवल किताबों में बंद होकर रह जाती है या फिर योजना बनाने में लग जाती है। उसके कार्यांन्यित करने में लम्बा समय लग जाता है लेकिन उसकी असफलता के लिए राज्य सरकारों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। केन्द्र सरकार उसकी जिम्मेदारी लेने से क्यों घबराती है। ऐसे कई मन्त्रालय हैं जिनकी योजनाएं केवल राज्य सरकारों की वजह पर ही निर्भर है उनमें ग्रामीण मन्त्रालय, मानव विकास संसाधन और स्वास्थ्य मंत्रालय ‘शामिल हैं।
डा0 मनमोहन सिंह की सरकार दिन-ब-दिन अपनी विफलताओं को छुपाने में लगी हुई है और उनके मंत्री उनकी अपनी बयानबाजी से उनकी मुश्किलें बढ़ाने में लगे हुए है। सबसे पहले कामनवेल्थ गेम्स ही है।
डा0 मनमोहन सिंह सरकार इन सबसे निज़ात पाने के लिए कुछ-न-कुछ करने की ठान रखी है। भगवा का ‘शोर मचाकर अपनी विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने से भर ही है। इस पर भाजपा, उससे जुड़ी संस्थाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए भी आगाह सरकार कर रही है।(कलानेत्र परिक्रमा)
भारत
भगवा से इतना डर क्यों?
डा शंकर स्वरूप शर्मा - 2010-08-30 13:13
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ये सरकार कभी भी हिस्सेदार नहीं रहीं क्योंकि यह सरकार हमेशा ही तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की सरकार मानी जाती रही है। इसके पीछे उनका फूटता अन्य धर्मों से प्रेम है जो कभी भी इस धरती को सुखचैन से जीने का हक न देने की जीवनभर की कसम खा रखी है। महात्मा गांघी का राम-रहीम का नारा केवल हिन्दू और मुस्लिम भाईयों को एक साथ लेकर हिन्दुस्तान को आजाद कराने का था लेकिन ब्रिटिश हूकूमत इस हक में नहीं थी कि भारत में कभी अमन-चैन कायम हो सके।