केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गों की चौड़ाई को लेकर एक नीति है। पहले उसकी नीति राष्ट्रीय राजमार्ग की चौड़ाई कम से कम 60 मीटर रखने की थी, लेकिन राज्यों से बातचीत करने के बाद उसने चौड़ाई घटाकर 45 मीटर कर दी।

पर केरल को यह घटी हुई चौड़ाई भी मंजूर नहीं थी। वह वह चाहता था कि इसकी न्यूनतम चौड़ाई 30 मीटर ही हो। एक सर्वदलीय बैठक में इसका निर्णय किया गया था और मुख्यमंत्री अच्यूतरानंदन के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री से मिलकर केरल के इस निर्णय से उन्हें अवगत करा दिया था।

केरल के नेताओं का मानना था कि राज्य की आबादी बहुत घनी है, इसलिए राष्ट्रीय राजमार्गो की चौड़ाई कम से कम 45 मीटर सुनिश्चित करने के चक्कर में बहुत सारे मकानों को तोड़ना पड़ेगा और इससे राज्य की एक अच्छी खारी आबादी प्रभावित होगी। लेकिन केन्द्र केरल के इस तर्क को मानने को तैयार नहीं था।

दोनों पक्षों के अपने अपने रुख पर अड़ा रहने के कारण केरल में राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार पर सवालिया निशान खड़े हो गए थे। इससे अंततः केरल का ही नुकसान होता, क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा केरल के राजमार्गो के लिए आबंटित राशि का इस्तेमाल नहीं हो पाता और इससे राज्य का विकास प्रभावित होता।

अंत में केरल सरकार ने केन्द्र की बात मान लेने का फैसला किया और इसके लिए एकाध अपवाद को छोड़कर राज्य की सभा पार्टियां तैयार भी हो गई हैं। हां, राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार को के चलते विस्थापन के मसले को लोग गंभीरता से ले रहे हैं।

इस मसले पर पार्टियों के बीच आमसहमति होना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन सीपीएम की केरल ईकाई के सचिव विजयन ने सर्वदलीय बैठक के दौरान आम राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एमपी वीरेन्द्र कुमार की पार्टी ने अंत अंत तक 45 मीटर चौड़ाई का विरोध किया। जमात ए इस्लामी का राजनैतिक चेहरा सोलिडैरिटी ने भी इसका विरोध किया। उसका कहना था कि इसके कारण विस्थापितों को भारी समस्या का सामना करना पड़ेगा, जो ठीक नहीं है।

लोक निर्माण मंत्री एम विजयकुमार को विस्थापितों के लिए उपयुक्त पैकेज तैयार करने के लिए अधिक्त किया गया है। विपक्ष के नेता ऊमेन चांडी का कहना है कि विस्थापन के पहले लोगों को उनका उचित मुआवजा मिल जाना चाहिए और उसके बाद ही उन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए। (संवाद)