जब लीग की पहल पर वह बैठक आयोजित की गई थी, तो उससे लोगों को बहुत उम्मीदें बंधी थीं। उस पहल का स्वागत किया गया था और कहा गया था कि प्रदेश में हाल के दिनों में जो उग्रवाद की ताकतें खड़ी हो रही हैं, उनके खिलाफ लड़ाई की यह लीग की तरफ से एक अच्छी शुरुआत है।

उस बैठक ने संघ परिवार के उस आरोप को कमजोर करने का काम किया था, जिसमें कहा जाता रहा है कि जब भी आतंकवाद की निंदा करने की बारी आती है, तो मुस्लिम समुदाय में सन्नाटा छा जाता है।

कोट्टाक्कल को आयुर्वेद का एक बहुत बड़ा केन्द्र माना जाता है। यहां जब मुस्लिम लीग ने आतंकवाद के खिलाफ बैठक की थी, तो उसमें अनेक मुस्लिम संगठनों ने हिस्सा लिया था। अनेक मुस्लिम संगठन तो ऐसे थे, जो आपस में एक दूसरे से लड़ते रहते हैं।

उस बैठक में अनेक फैसले लिए गए थे। उनमें एक प्रमुख फैसले में कहा गया था कि उसमें शामिल सभी संगठन आतंकवाद और आतंकवादियों का मिलकर सामना करेंगे। पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन उस बैठक मे निशाने पर थे।

उस बैठक के महीने बीत चुके हैं, लेकिन उसके बाद कुछ भी अब तक नहीं किया जा सका है। आगे भी कुछ होगा, इसके किसी तरह के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। उसमें संयुक्त अभियान चलाने की बात की गई थी, लेकिन उसका कोई लक्षण दूर दूर तक नहीं दिखाई पड़ रहा है।

कहने की जरूरत नहीं कि अब अनेक लोग आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में लीग व बैठक में भाग लेने वाले अन्य संगठनों की आलोचना कर रहे हैं। यूनाटेड डेमोक्रेटिक फंट में शामिल लीग के अन्य मित्र दल भी अब कहने लगे हैं कि मुस्लिम लीग आतंकवाद पर खामोश है।

अब दारोमदार ऑल इंडिया मुस्लिम लीग पर है कि आतंकवाद पर उसकी चुप्पी की हो रही आलोचना का वह जवाब दे और वह यह साबित करे कि कोट्टाक्कलम में आयोजित की गई वह बैठक महज नाटक नहीं थी। क्या लीग ऐसा कर पाएगी? (संवाद)