मायावती की सरकार पिछले 3 साल से भी ज्यादा समय से सत्ता में है, लेकिन इस दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में उनका मुख्य नारा था समाजवादी पार्टी के गुंडा राज को खत्म करना। लोगों को उनका यह नासा पसंद आया था। पर राज्य के लोगों का इस मोर्चे पर सपा और बसपा की सरकारों में कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ रहा है। आज सभी पार्टियां कानून व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति पर एकजुट हैं। मायावती कह रही हैं कि वह अगला चुनाव अकेली ही लड़ेंगी, लेकिन अब उनकी पार्टी का रास्ता आसान नहीं रह गया है। उन्होंने घोषणा की है कि पंचायत चुनावों में उनकी पार्टी हिस्सा नहीं लेगी। उनकी इस घोषणा पर टिप्पणी करते हुए उनके विरोधी कह रहे हैं कि वह पंचायत चुनावों में ग्रामीण मतदाताओं का सामना करने से डर रही हैं।

मायावती को अपनी पार्टी के गुंडा तत्वों से भी समस्या हो रही है। ऐसे अनेक आपराधिक वारदात होते रहे हैं जिनमें उनकी पार्टी के विधायकों और सांसदों पर आरोप लगे हैं। उन अपराधों के बाद मुख्यमंत्री के लिए अपनी पार्टी के नेताओं का बचाव करना कटिन हो जाता है। इसके कारण उनकी पार्टी और प्रशासन दोनों की छवि खराब होती रही है।

मुख्यमंत्री की मुख्य समस्या यह भी है कि उनका मूल राजनैतिक आधार भी आज उनसे नाराज हो गया है। दलित भी उनकी कार्यशैली से खुश नहीं दिखाई दे रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यह साफ दिखाई पड़ा कि दलितों के बीच उनके लिए पहले वाला उत्साह नहीं रहा। पूर्व आरक्षी महानिरीक्षक व दलित चिंतक एसआर दारापुरी का कहना है कि मायावती के कार्यकाल में दलितों पर होने वाला अत्याचार और भी बढ़ गया है। उनका आरोप है कि मायावती आंबेडकर के आदर्शों से भटक गई हैं और अब वह बहुजन को छोड़कर सर्वजन का नारा दे रही हैं।

मायावती को उस समय भी झटका लगा था जब अदालत ने उनकी स्मारक संबंघित परियोजनाओं पर रोक लगा दी। जनहित याचिका दायर किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने आंबेडकर उद्यान की परियोजनाओं पर रोक लगा दी। उनके शासन के दौरान कोई बड़ा निवेश निजी सेक्टर की ओर संे नहीं आया। पहले की कुछ निवेश परियोजनाएं भी खटाई में पड़ गईं। उन्होंने गंगा एक्सप्रेसवे की परियोजना को स्वीकुति दी थी, जिसके तहत नोएडा से बलिया तक एक्सप्रेसवे बनना था। उसमें जेपी ग्रुप की ओर से 40 हजार करोड़ रुपए का निवेश प्रस्तव था, लेकिन उसपर भी अदालत ने रोक लगा दी।

हालांकि यमुना एक्सप्रेसवे को केन्द्र की ओर से भी स्वीकृति मिली हुई है और उस पर किसी प्रकार का अदालती रोक भी नहीं है, पर किसानों के आंदोलन के कारण उस परियोजना पर भी ग्रहण लग गया है। किसान अपनी जमीन के लिए ज्यादा मुआवजा मांग रहे हैं। आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस ने गोलियां भी चला दी, जिसमें एक किसान मारा गया और अनेक घायल हुआ। उस घटना के बाद किसान आंदोलन पश्चिम उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में फैल गया और संसद में भी उसकी गूंज सुनाई पड़ने लगी। मायावती को उस आंदोलन के दबाव में यह घोषणा करनी पड़ी कि जो किसान जमीन नहीं देना चाहते हैं, उनकी जमीन जबर्दस्ती नहीं ली जाएगी।

नौकरशाही में भी मायावती की कार्यशैली को लेकर असंतोष है। अनेक ईमानदार अघिकारियों को कोई खास जिम्मदारी ही नहीं दी गई है, जबकि दागदार छवि वाले लोगों को अच्छे पदों पर रखा गया है और एक तरह से प्रदेश का पूरा प्रशासन ही वैसे ही अधिकारियो के हाथ में है। विपक्ष ने तीन चीनी मिलों की बिक्री को भी मुद्दा बना रखा है। कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे हैं कि चीनी मिलों की बिक्री में भारी भ्रष्टाचार हुआ है और बहुत ही कम कीमत पर उन्हों निजी क्षेत्र के हाथों बेच दिया गया है।

आय के ज्ञात स्रोतो से अधिक संपत्ति के मसले पर मायावती के खिलाफ जांच चल रही है। सीगीआई ने अदालत को बताया है कि वह मुख्यमंत्री के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर चुकी है। 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले यह मसला मुख्यमंत्री के लिए बहुत ही निर्णायक साबित होने जा रहा है।

जाहिर है मायावती के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है और उन्हें अकेले ही इन सगका सामना करना पड़ रहा है। (संवाद)