कुछ दिन पहले जब एक रेलवे समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा आई हुई थीे, तो उन्होंने रेल मंत्री की हैसियत से मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को उस समारोह में आमंत्रित ही नहीं किया, जबकि प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें वैसा करना चाहिए था। उस विवाद के बाद उन्होंने राहुल गांधी की आलोचना करके एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।

वैसे मुख्यमंत्री के खिलाफ इस तरह का व्यवहार वह पहले से ही करती रही हैं। वे उनके सामने अपनी अकड़ दिखाती ही रहती है। एक बार जब तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी ने सिंगूर के मसले पर मुख्यमंत्री और ममता बनर्जी को एक साथ बुलाकर बात करने की कोशिश की थी, उस समय भी उन्होंने अपना बुद्धदेव विरोधी तेवर दिखाया था।

मुख्यमंत्री के खिलाफ ममता के उस तेवर को समझा जा सकता है, क्योंकि वह राजनीति को वह भद्र लोगों का खेल ही नहीं मानती। माकपा ने उनके और उनके समर्थकों पर बहुत जुर्म किए हैं। उन्हें हिंसा का शिकार भी बनाया है। एक बार तो खुद ममता को काफी चोटें आई थीं। इसलिए माकपा के नेताओं के खिलाफ उनके मन की कटुता को आसानी से समझा जा सकता है।

लेकिन यह समझना आसान नहीं है कि वह अपनी सहयोगी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ नफरत का भाव क्यों पालती हैं। उनकी इस नफरत के बावजूद भी यदि कांग्रेस उनके साथ है तो इसका कारण यही है कि यह राज्य में अपने आपको कमजोर समझती है और उनकी सहायता से ही राज्य की सत्ता में अगले विधानसभा चुनाव के बाद भागीदारी करने का सोच रही है।

जहां तक ममता बनर्जी का सवाल है, तो उन्हें पूरा विश्वास है कि वह सत्ता में आएगी हीं। उन्हें लगता है कि लोग न तो तृणमूल कांग्रेस के पीछे हैं और न ही कांग्रेस के पीछे, बल्कि वे सभी के सभी ममता बनर्जी के पीछे हैं। इसलिए वे कांग्रेस की भावनाओं का ख्याल नहीं करती। राहुल गांधी की भी उन्होंने परवाह नहीं की, जबकि उनकी जगह कोई और होता तो कांग्रेस के खिलाफ अपनी आग राज्य के कांग्रेस नेताओं पर भी निकाल देता और केन्द्र के कांग्रेस नेताओं के साथ बेहतर संबंध बनाकर रहता।

लेकिन ममता बनर्जी तो ममता बनर्जी हैं। उन्हें पसंद नहीं कि पश्चिम बंगाल में उनके अलावा किसी और की तूती बोले। राहुल गांधी यहां अपनी मरी पार्टी को जिंदा करने की कोशिश करने आए थे, हालांकि कांग्रेस के मजबूत होने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है, लेकिन ममता को राहुल की वह कोशिश अच्छी नहीं लगी। वह पश्चिम बंगाल को अपना पिच समझती हैं। उन्हें यह ठीक नहीं लगा कि उनकी पिच पर आकर राहुल गांधी बैटिंग करें।

उन्होंने राहुल गांधी को क्या नहीं कहा? उन्होंने उन्हें मौसमी प़क्षी कहा, जो चुनावी मौसम में दिखाई पड़ता है और मौसम खत्म होने के बाद फुर्र से उड़ जाता है। उन्होंने उन्हें डुमरी का फूल कहा, जो कभी कभार ही दिखाई पड़ता है। राहुल गांधी अपने खिलाफ अनेक प्रकार की आलोचनाओं को देखते सुनते रहे हैं। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तो उन्हें बच्चा तक कह डाला था।

ममता बनर्जी को यह पता है कि राहुल गांधी उनकी आलोचनाओं का जवाब नहीं देंगे। वे राहुल और खुद के अंतर को भी समझती हैं। उन्हें पता है कि वह जमीन से उठकर राजनीति के आसमान पर खड़ी हुई है, जबकि राहुल गांधी राजनीति की जमीन पर आसमान से कूदे हैं। दोनों के बीच कोई तुलना ही नहीं है।

आखिर कांग्रेस और इसके नेताओं के खिलाफ ममता बनर्जी के मन में इतनी कटुता क्यों है? वे खुद भी कांग्रेस में रह चुकी हैं। सच कहा जाय तो वे कांग्रेस की ही पैदाइश हैं। अपने कांग्रेस के दिनों की कुछ कांग्रेस नेताओ के साथ उत्पन्न मतभेद को शायद वह भूल नहीं पाई हैं। (संवाद)