कहीं-कहीं भूकंप संबंधित प्‍लेट मार्जिन से बहुत दूरी पर भी आते हैं जैसे मध्‍य संयुक्‍त राज्‍य अमरीका (न्‍यू मैड्रिड, 1812), उत्‍तर-पूर्वी महाद्वीपीय चीन( तांगशान, 1976) और मध्‍य भारत (लातूर, 1993)। इन तथाकथित अंत:प्‍लेट भूकंप यानी पृथ्‍वी की आंतरिक प्‍लेटों की गति और एक-दूसरे से टकराने के कारण होने वाले भूकंप से अविसरित भौगोलिक वितरण का पता चलता है लेकिन भूकंप के उदभव को अब भी अच्‍छी तरह नहीं समझा जा सका है। ये भूकंप बहुत बड़े हो सकते हैं तथा इनके समय और आवर्ती के बारे में कोई भविष्‍यवाणी नहीं की जा सकती इसलिए इनसे बहुत तबाही होती है।

दो या उससे अधिक स्‍थलमंडलीय प्‍लेटों के परस्‍पर टकराने के कारण तनाव से संचित ऊर्जा अचानक निकलने के कारण भूकंप आते हैं। इन्‍हें विवर्तनिक भूकंप कहते हैं और ये ज्‍वालामुखीय भूकंप से भिन्‍न होते हैं। ज्‍वालामुखीय भूकंप भूपर्पटीय चट्टानों के अचानक खुलने, मैग्‍मा की गति में तेजी से परिवर्तन, भूपर्पटी में गैस के दाब के अत्‍यधिक संचयन, मैग्‍मा और जवालामुखीय विस्‍फोट से संबंधित अन्‍य अनोखी घटना की वजह से रिक्‍त हुए उपस्‍थलीय रास्‍तों के आवरण के ढहने के कारण आते हैं। सक्रिय ज्‍वालामुखी के निकट, तथाकथित ज्‍वालामुखी भूकंप का पता चलता है जो लम्‍बे समय तक निरंतर जारी रहने वाले ज्‍वालामुखी कंपन का परिणाम हैं।

भूकंप की एक और श्रेणी होती है जिसे वितलीय भूकंप कहते हैं। इस तरह के भूकंप धरती के बहुत नीचे केन्द्रित होते हैं। कभी-कभी तो इनका केन्‍द्र 700 किलोमीटर गहराई पर भी होता है। कुल दर्ज होने वाले भूकंपों में से इस तरह के भूकंप सिर्फ 5-10 प्रतिशत ही होते हैं लेकिन इनके कारण ही तरंग गति और पृथ्‍वी की अंदरूनी प्रकृति के बारे में आधुनिक ज्ञान हासिल हुआ है। विवर्तनिक, वितलीय और ज्‍वालामुखी प्रकार के भूकंप प्राकृतिक भूकंपीय स्रोतों की श्रेणी से संबंधित हैं।

औद्योगिक, या सैन्‍य (परमाणु) विस्‍फोट और विभिन्‍न प्रकार के शोर (यातायात, उद्योग, निर्माण कार्य इत्‍यादि जैसे) कुछ ऐसे मानव निर्मित भूकंपीय स्रोत भी हैं जो नियंत्रित भूकंपीय स्रोतों के उदाहरण हैं तथा जहां भूकंप का स्‍थान, समय, स्रोत और तीव्रता पहले से निर्धारित होती है अथवा कम से कम इसकी भविष्‍यवाणी तो की ही जा सकती है। अन्‍य प्रकार के मानव निर्मित भूकंपीय स्रोत प्रेरित या ट्रिगर चलाकर शुरू की जाने वाली घटनाएं होती हैं जो जलाशय में अधिक पानी जमा होने, खनन गतिविधियों तथा तेज प्रवाह के कारण होती हैं। ट्रिगर चलाकर शुरू की जाने वाली घटनाओं की व्‍याख्‍या के लिए दो विश्‍वसनीय प्रक्रियाएं उपलब्‍ध हैं। प्रथम, खनन और उत्‍खनन गतिविधियों में चट्टानों या भारी मात्रा में खुदाई एवं निकासी तथा जलाशयों के अवरूद्ध होने के कारण स्‍थानीय तनाव (लदान या माल उतारने के कारण कंपन) में होने वाला परिवर्तन है। दूसरा, बाढ़ जैसे अन्‍य तेज प्रवाह के कारण छिद्र और विभंजन दाब के बढ़ने की वजह से चट्टानों की मजबूती कम हो जाती है ( यह ल्‍युब्रिकेन्‍ट के रूप में काम करती है) तथा इस प्रकार स्‍थानीय भूकंपीयता में वृद्धि हो जाती है। यह स्‍पष्‍ट है कि नियंत्रित भूकंपीय स्रोत में गतिविधि स्रोत क्षेत्र तक सीमित होती है तथा इसलिए इसकी प्रकृति बहुत कम या उथली होती है। हालांकि जलाशय प्रेरित भूकंपीयता की भौतिक रूप से व्‍याख्‍या अब भी पूर्ण रूप से समझ में नहीं आती है लेकिन बड़े जलाशयों के अवरूद्ध होने से स्‍पष्‍ट रूप से स्‍थानीय तनाव के साथ-साथ तरल दाब दोनों ही प्रभावित हो सकते हैं। महाराष्‍ट्र के कोयना क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि जलाशय प्रेरित भूकंपीयता का अनूठा उदाहरण है जो पिछले करीब तीन दशकों से जारी है।

भूकंप को उथले या कम गहराई पर केन्‍द्रित, मध्‍यम गहराई पर केन्‍द्रित तथा बहुत अधिक गहराई पर केन्‍द्रित के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है जो केन्‍द्रीय गहराई पर आधारित होते हैं। कुल भूकंप गतिविधि में उथले या कम गहराई पर केन्‍द्रित भूकंपों का योगदान करीब 80 प्रतिशत है। इस तरह के भूकंपों का केन्‍द्र 0 और 70 किलोमीटर की गहराई के बीच होता है तथा ये सागरीय पर्वतश्रेणियों, टक्‍कर और महाद्वीपीय प्‍लेटों के एक दूसरे से टकराने या एक दूसरी पर चढ़ने तथा सीमाओं के बदलने से संबंधित क्षेत्रों में आते हैं। मध्‍यम गहराई पर केन्‍द्रित भूकंप (71 और 300 किलोमीटर गहराई पर केन्‍द्रित) तथा बहुत अधिक गहराई पर केन्‍द्रित भूकंप ( भूकंप का केन्‍द्र 300 किलोमीटर से ज्‍यादा गहराई पर केन्‍द्रित) महाद्वापीय या सागरीय प्‍लेटों पर आते हैं। ज्‍यादातर भूकंप भूपर्पटी में ही आते हैं। मोहो (पृथ्‍वी के आवरण और पर्पटी के बीच की सीमा) से नीचे की गहराई पर आने वाले भूकंपों की संख्‍या अचानक कम हो जाती है तथा करीब 700 किलोमीटर की गहराई पर बिलकुल समाप्‍त हो जाती है अर्थात वहां कोई भूकंप नहीं आता है।