पिछले साल निर्मल ग्राम की उपाधि पाने वाला सनकोटा उन गांवों में से है, जो सिर्फ नाम के लिए निर्मल ग्राम नहीं है और न ही फिर से गंदगी की चपेट में आने वाला गांव है, बल्कि समय बीतने के साथ ही यहां के लोगों में स्वच्छता को लेकर चेतना का विकास हो रहा है। पहले इस गांव से बाहर निकलने वाली सड़कों के किनारे शौच की गंदगी पसरी हुई थी. पर दो साल पहले यूनीसेफ ने वसुधा विकास संस्थान के माध्यम से इस गांव में समग्र स्वच्छता अभियान चलाया। इसमें न केवल शौचालय का निर्माण किया गया, बल्कि स्नानघर एवं वाटर रियूज सिस्टम भी लगाया गया है। सनकोटा ग्राम पंचायत की आबादी लगभग एक हजार है और सभी भिलाला आदिवासी हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में उल्टी-दस्त सहित पानी से होने वाली बीमारियों का प्रकोप ज्यादा रहता है। गांवों में स्वच्छ पानी एवं साफ-सफाई की व्यवस्था करना बहुत ही जरूरी है। सनकोटा में कुशल जल प्रबंधन एवं स्वच्छता अभियान से बीमारी में कमी आई है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कमला गिरवार का कहना है, ’’गांव की सफाई से हमने प्रेरणा लेकर आंगनवाड़ी में भी स्वच्छता का ख्याल रखा है. गंदगी के कारण छोटे बच्चे जल्दी बीमार पड़ जाते हैं. गंदे हाथ से खाना खाने के कारण वे डायरिया के शिकार हो जाते है, इसलिए हमने आंगनवाड़ी में शौचालय और हाथ धोने के लिए अलग पानी की व्यवस्था की है।‘‘ इसी गांव में आदिवासी बालक आश्रम है, जहां 50 बच्चे रहते हैं. आश्रम अधीक्षक पन्नालाल मुकाती का कहना है, ’’आश्रम में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके लिए बच्चों को अलग से समझाया जाता है। नए बच्चों को पुराने बच्चे यह बतलाते हैं कि वे साबुन का उपयोग हाथ धोने में अवश्य करें, जिससे कि गंदगी से होने वाली बीमारियों की संभावना कम हो जाए।‘‘ यूनीसेफ के अनुसार, ’’विश्व में 16 फीसदी बच्चों की मृत्यु डायरिया से होती है। 35 लाख बच्चे डायरिया एवं निमोनिया के कारण अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते। पांच साल से कम उम्र के 15 लाख बच्चों की मौत डायरिया से होती है, जिसमें से 3,86,600 भारतीय बच्चे होते हैं। भारत में टॉयलेट के बाद या बच्चों की सफाई के बाद मां का हाथ धोने का प्रतिशत बहुत ही कम है, जबकि साबुन से हाथ धोने पर डायरिया होने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है। डायरिया से बचने के विभिन्न कारणों में से साबुन से हाथ धोने पर डायरिया होने की संभावना 44 फीसदी कम हो जाती है। साबुन से हाथ धोने से पानी से होने वाली विभिन्न बीमारियों से बचा जा सकता है और यह बहुत खर्चीला काम नहीं है। इसे सभी वर्ग के सभी क्षेत्र के लोग अपना सकते हैं और उपयोग कर सकते हैं, बशर्ते कि उनमें इसे लेकर पर्याप्त जागरूकता हो।‘‘
श्रीमती सोरम गिरवाल का कहना है, ’’घर में शौचालय एवं स्नानघर होने से महिलाओं को सबसे ज्यादा सहूलियत हुई है. खुले में शौच करना शर्मनाक था। दस्त होने पर महिलाओं के लिए बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।‘‘ मोहन गिरवाल का कहना है, ’’सभी घरों में वाटर रियूज सिस्टम लगा हुआ है। स्नानघर के पानी को रॉक फिल्टर के माध्यम से ग्रे वाटर में बदला जाता है और उसका इस्तेमाल शौचालय में फ्लशिंग के लिया किया जाता है. शौच के बाद मिट्टी के बजाय साबुन से हाथ धोने की परंपरा भी इस गांव में अब विकसित हो चुकी है. जिससे बीमारियों से बचने में हमें काफी मदद मिली है।‘‘ निश्चय ही सनकोटा में अब साफ-सफाई की चमक है। लोगों में व्यक्तिगत स्वच्छता एवं ग्रामीण स्वच्छता के प्रति जागरूकता होने से सनकोटा सही मायने मेें निर्मल ग्राम का हकदार है। (संवाद)
साफ-सफाई से दूर भागे बीमारी, निर्मल ग्राम सनकोटा की कहानी
राजु कुमार - 2010-10-09 13:50
’’पहले गांव में घुसने के पहले नाक पर हाथ रखना पड़ता था, पर अब ऐसा नहीं है। गांव में चारों ओर ताजगी एवं स्वच्छता का अहसास होता है। सभी घर में शौचालय, स्नानघर और वाटर रियूज सिस्टम लगा हुआ है. ऐसे में पिछले साल से पानी से होने वाली बीमारियों में भी कमी आई है,‘‘ यह कहना है धार जिले के धरमपुरी विकासखंड के सनकोटा ग्राम पंचायत के सचिव रमेश गिरवाल का।