आज दिल्ली में यह सवाल उठ रहा है कि क्या हजारों करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार में शामिल लोग दंडित भी होंगे या खेल खतम पैसा हजम वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सबकुछ भुला दिया जाएगा?
खेलों के सफल आयोजन के बाद अब उसकी सफलता का श्रेय लेने की होड़ भी शुरू हो गई है। जब खेल की तैयारियों में विलंब के लिए कैफियत तलब किया जा रहा था, तो तैयारियों से जुड़े लोग एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालने की कोशिश कर रहे थे और अब सब आगे बढ़कर सफलता का श्रेय लेने में जुट गए हैं।
श्रेय लेने का यह सिलसिला शुरू किया है दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने। दरअसल खेल समाप्त होने के पहले से ही उन्होंने अपनी वाहवाही शुरू कर दी थी। उनके द्वारा अपनी पीठ थपथपाना दिल्ली के उपराज्यपाल को अच्ठा नहीं लगा और उन्होंने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी उनके खिलाफ लिख डाली। खेल खत्म होने के अंतिम दिल उपराज्यपाल द्वारा शीला दीक्षित के खिलाफ को प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी की खबरें भी मीडिया में लीक कर दी गई और इस तरह से शीला दीक्षित के प्रयासों पर पानी फेरने का काम भी खेल समाप्त होने के पहले ही शुरू हो गया।
खेल की तैयारियों से एक से ज्यादा लोग जुड़े हुए थे। कौन लोग क्या कर रहे थे और गड़बड़ी कहां से हुई अथवा सबलोगों ने अपने अपने हिस्से में गड़बड़ी की, इसका पता तो जांच से ही लगेगा और वह भी तब जब जांच निष्प्पक्ष हो। जिम्मेदारियों से जुड़े लोग केन्द्र और दिल्ली सरकारों से वास्ता रखते हैं, इसलिए सीबीआई जांच भी असली दोषियों को पकड़ नहीं पाएगी। जाहिर है संयुक्त जांच समिति से ही उम्मीद की जा सकती है कि इस खेल में हुए हजारों करोड़ रुपए की लूट की सफल जांच वह करे।
आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी थे। जब विलंब की बात सामने आ रही थी, तो उनका कहना था कि उनका काम तो खेल का आयोजन कराना है और हो रहे निर्माण कायों से उनका कोई लेना देना नहीं है। जाहिर है निर्माण कार्यो में हुए विलंब के लिए उन्होंने अपने आपको जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया था।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कुछ ऐसे पेश आ रही थीं, मानों दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की कर्त्ता और धर्त्ता वही हों, लेकिन जब विलंब के कारण देश की फजीहत शुरू हुई, तो उन्होने भी अपने आपको जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया।
केन्द्रीय खेल मंत्री एम एस गिल शुरू से ही संकेत दे रहे थे कि खेल की तैयारियों में उनकी कोई भूमिका ही नहीं है। वे खेल मंत्री होने के बावजूद अपने आपको खेलों की तैयारियों से अलग थलग पा रहे थे और खेल प्रशासन की राजनीति से परेशान भी हो रहे थे। इसलिए जब भारत की भद्द पिट रही थी, तो उनसे यह उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी कि वह आगे आकर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें।
दिल्ली के उपराज्यपाल खेलों की तैयारियों से जुड़े एक अलग सख्सियत रहे हैं। दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है और उपराज्यपाल यहां के मुख्य प्रशासक हैं। वे डीडीए के अध्यक्ष भी हैं और डीडीए दिल्ली में हो रहे निर्माण कायों से किसी न किसी रूप से जुड़ी थी। जाहिर है जांच के दायरे में वे भी आ जाते हैं।
जयपाल रेड्डी केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री है। दिल्ली शहर के विकास की जिम्मेदारी उनके मंत्रालय की भी थी। जब काम में विलंब हो रहा था, तो एक समिति बनाकर उसका प्रमुख श्री रेड्डी को ही बना दिया गया था। वे भी अपनी जिम्मेदारियों से बचते दिखाई पड़ रहे थे। जाहिर है, जब जांच होगी, तो उसके दायरे में वे भी आएंगे।
राष्ट्रमंडल खेलों में देश के संसाघनों का भारी पैमाने पर अपव्यय हुआ है। खर्च की राशि का अलग अलग अनुमान है। एक अनुमान 35 हजार करोड़ रुपए का है तो एक दूसरा अनुमान 70 हजार करोड़ रुपए का। कहीं कहीं तो एक लाख करोड़ रुपए के खर्च की भी चर्चा होती है। वास्तव में कितना खर्च हुआ और कितने की लूट हुई, इसका पता निष्पक्ष जांच से ही लगेगा। सवाल उठता है कि क्या निष्पक्ष जांच हो भी पाएगी? (संवाद)
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की सफल समाप्ति
क्या कॉमनवेल्थ के लुटेरे दंडित होंगे?
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-10-15 14:06
नई दिल्लीः दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल समाप्त हो चुके हैं। इस खेल के पहले भारत की छवि दुनिया भर में खराब हो रही थी। खेल शुरू होने के बाद अंत होने तक सबकुछ ठीकठाक रहा और उसके आगे देश की जगहंसाई नहीं हुई। लेकिन पहले जो कुछ हुआ, वह बहुत ही शर्मनाक था। खेल के आयोजन और उससे संबंधित निर्माणों में हजारों करोड़ रुपए के घपले होने की खबरें भी आ रही थीं। वे खबरें निराधार नहीं थी।