आशा के अनुसार यह काम शीला दीक्षित ने शुरू किया। जांच के लिए एक पूर्व अघिकारी को जिम्मा तो दिया प्रधानमंत्री ने, लेकिन किसकी जांच हो, इसे बताना शुरू कर दिया दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार सुरेश कलमाड़ी की नेतृत्व वाली आयोजन समिति ने किया इसलिए जांच के दायरे में उस समिति को ही लिया जा सकता है। दूसरे दिन समिति के अध्यक्ष श्री कलमाड़ी ने कहा कि उनकी समिति के पास तो खर्च करने के लिए 1620 करोड़ रुपए ही थे, जबकि शीला दीक्षित की सरकार ने इस पर 16000 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। जाहिर है, भ्रष्टाचार की रकम शीला दीक्षित के दायरे मे ज्यादा थी।
इस शुरुआती तू तू मैं मैं के बाद दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के प्रति पिछले कुछ सालों से सबसे ज्यादा उत्साह दिखा रहे ये दोनो नेता अब मौन हो गए हैं। एकाएक सरकार की अनेक एजेंसियां हरकत में आ गई है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग), केन्द्रीय सतर्कता आयोग, प्रवर्त्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग- सारे के सारे जांच में कूद पड़े हैं। और लगने लगा है कि वास्तव में सरकार घोटालों की जांच के लिए बहुत ही चिंतित है और वह वास्तव में दोषियों को सजा देना चाहती है। लेकिन क्या यह सच है अथवा जांच का मात्र दिखावा किया जा रहा है?
कुछ महीने पहले आइपील के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले भी सामने आए थे। वह मामला ललित मोदी और श्शि थरूर के आपसी विवाद के कारण सामने आया था। उस समय संसद का सत्र भी चल रहा था। जाहिर है संसद के बाहर और संसद के अंदर बहुत हंगामा हुआ। जिस तरह आज आयकर विभाग और प्रवर्त्तन निदेशालय राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार को लेकर अपी सक्रियता दिखा रहे हैं लगभग उसी तरह की सक्रियता आइपीएल घोटाले के खुलासे के समय भी इन दोनों एजेंसियो ने दिखाई थी। लेकिन उनकी सक्रियता से कुछ भी हासिल नहीं हो सका। उसमें भी हजारों करोड़ रुपयों की कालाबाजारी का मामला सामने आ रहा था। एक छोटे देश मारिशश से हजारों करोड़ रुपए भारत में आ रहे थे। उनके स्रोत का अभीतक पता नहीं चला है और उन जांचों के परिणाम स्वरूप किसी को भी अभी तक दंडित नहीं किया गया है।
यह सच है कि आइपीएल विवाद के कारण शशि थरूर केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में अपनी कुर्सी गंवा बैठे हैं और ललित मोदी भी आइपीएल में अपना पद खो बैठे हैं। लेकिन उन दोनों का अपने पदों से हटना आइपीएल घोटाले की जांच का नतीजा नहीं था, बल्कि वे दोनों इसलिए हटाए गए, क्योंकि उन दोनों के आपसी विवाद के कारण आइपीएल का भ्रष्टाचार सार्वजनिक हो गया था। श्री थरूर ने अपनी मंगेतर को अपने पद का इस्तेमाल कर विचौलिए की भूमिका अदा करते हुए करोड़ों रूपए की संपत्ति दिलवा दी थी। वह संपत्ति कहां से आई थी और किसकी थी- आज किसी को पता नहीं है। शुरुआती जांच के दौरान शरद पवार और प्रफुल पटेल के रिश्तेदारों के भी आइपीएल घोटाले में संलिप्त होने की बातें सामने आई थी। लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बना। शाहरुख खान और जूही चावला जैसे ग्लैमर की दुनिया के लोगों पर भी सवाल खड़े हो रहे थे और उनकी कंपनी में लगे पैसे के स्रोत को भी संदेह की निगाहो ंसे देखा जा रहा था। उनके खिलाफ चल रही जांच का क्या हुआ- इसके बारे में आज हमें कुछ भी नहीं पता।
आइपीएल विवाद के बाद राजस्थान और पंजाब की टीमों को अगले मैच में प्रतिबंधित कर दिया गया है। एक टीम की मालिक प्रीती जिंटा हैं, तो दूसरी की शिल्पा शेट्टी। उन दोनों टीमों अथवा उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ भी सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। आइपीएल के प्रबंधन ने अपनी तरफ से किया है और उस कार्रवाई का कारण उनमें घोटाला नहीं, बल्कि उनके साथ ललित मोदी और उनके रिश्तेदारों का जुड़ाव है। जाहिर है, घाटाला सार्वजनिक करने के लिए ललित मोदी को दंडित किया गया है, न कि घोटाला करने के लिए और उसका शिकार प्रीती जिंटा और शिल्पा शेट्टी की टीमों को होना पड़ा है।
यानी आइपीएल के खिलाफ उन दिनों जांच की जो सरगर्मियां दिखाई पड़ी थीं, वे सभी की सभी नकली थीं। शशि थरूर के इस्तीफे के बाद ललित मोदी को हटाने के लिए उस जांच का इस्तेमाल किया गया। कहते हैं कि शरद पवार ललित मोदी के आइपीएल से हटाए जाने के खिलाफ थे, इसलिए जांच के कुछ निष्कर्षों का इस्तेमाल श्री पवार पर दबाव बनाने के लिए किया गया, ताकि ललित मोदी को हटाने के लिए उन्हें तैयार किया जा सके। ललित मोदी हटे और जांच कार्य ठंढा पड़ गया। बाद में क्या हुआ यह सबको मालूम है। सबको मालूम है कि केन्द्र सरकार द्वारा आइपीएल घोटाले की जांच के बाद कुछ भी नहीं किया गया। भारत के कुछ लोग विदेशों में जमा अपने काला धन को सफेद बनाने के लिए आइपीएल का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ अभी तक न तो कुछ हुआ है और आगे न ही कुछ होने की उम्मीद है।
सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार की जांच का वही हश्र होगा, जो आइपीएल के भ्रष्टाचार की जांच हुआ था? भ्रष्टाचार में जो लोग शामिल है उनकी हैसियत को देखकर तो ऐसा ही लगता है। जांच शुरू हुई है, लेकिन जांच के दायरे को अभी तक पारिभाषित नहीं किया गया है। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पैसे दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के बजट से आए। कुल कितने पैसे खर्च किए गए, इसको भी अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 70 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, जिनमें मात्र 1620 करोड़ रूपए ही सुरेश कलमाड़ी के नेतृत्व वाली आयोजन समिति के मार्फत खर्च हुए हैं। जाहिर है अधिकांश पैसे दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार के मंत्रालयों और एजेंसियों द्वारा खर्च हुए। अभी तक यह भी स्पष्ट नहंी है कि जांच के दायरे में क्या खर्च किए गए सारे पैसे आएंगे।
शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी के तू तू मैं मैं के बाद अब भाजपा और कांग्रेस के बीच तु तु मैं मैं शुरू हो गई है। भाजपा के एक छोटे कद के नेत के घर में छापा मरवाकर केन्द्र सरकार में बैठे लोग यह साबित करना चाहते हैं कि यदि कांग्रेस के नता भ्रष्ट है, तो भाजपा के नेता भी कोई दूध के धुले नहीं हैं। जाहिर है जांच में राजनीति शुरू हो गई है। और इसके कारण ही यह शक पैदा होता है कि कहीं राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार की जांच क्या वास्तव में जांच है अथवा यह भी आइपीएल जांच की तरह एक खेला जा रहा खेल है? (संवाद)
घोटाले के बाद अब जांच का खेल
क्या आइपीएल जांच की कहानी दुहराई जाएगी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-10-20 14:18
राष्ट्रमंडल खेल समाप्त होने के तत्काल बाद इस खेलों के दौरान हुए घोटाले की जांच भी शुरू हो गई और सबसे बड़ी बात तो यह है कि जांच की पहल प्रधानमंत्री के एक निर्णय से हुई, जिसके तहत उन्होंने एक सेवानिवृत्त अधिकारी को जांच के काम में लगा दिया। खेलों के सफल आयोजन के लिए बाहवाही लेने का ज्यादा समय न तो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मिला और न ही सुरेश कलमाड़ी को। हां, दोनों ने एक दूसरे पर दोषारोपण करना जरूर कर दिया।