15 सितंबर क्या, 30 सितंबर को बीते हुए भी अब एक महीना होने को है, लेकिन दोनो पक्षों की ओर से आगे कुछ भी नहीं किया गया है। केरल सरकार द्वारा तय अवधि 15 सितंबर की तो बात ही नहीं करें, टेकॉम द्वारा खुद तय किए गए 30 सितंबर की सीमा के अंदर भी उसका कोई जवाब सरकार को नहीं मिला है।

गौरतलब है कि केरल सरकार ने कहा था कि यदि 15 सितंबर तक कंपनी उसे साफ साफ अपनी स्थिति नहीं बताती तो यह माना जाएगा कि वह उसके साथ किए गए करार से वापस हट गई है। सरकार ने कहा था कि स्मार्ट सिटी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए वह किसी और फर्म की सहायता लेगी।

समय सीमा बीत जाने के बाद भी सरकार चुप बैठी हुई है। उसने तो कहा था कि उस परियोजना को पूरा करने के लिए वह किसी और विकल्प को तलाशेगी, लेकिन विकल्प की तलाश का कोई काम उसने नहीं किया है। टेकॉम कंपनी भी अपनी तरफ से कुछ नहीं कर रही है। न तो वह परियोजना पर कोई काम शुरू कर रही है और न ही सरकार से वह कह रही है कि वह उसे छोड़ना चाहती है। बस वह सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रही है। पर सरकार कोई कदम ही नहीं उठा रही है।

कंपनी और सरकार द्वारा खेला जा रहे चूहे बिल्ली के खेल में स्मार्ट सिटी परियोजना का भविष्य अधर में लटका हुआ है। यदि इस परियोजना पर काम हो तो राज्य के 90 हजार युवकों को रोजगार मिलेगा। वे हसरत भरी निगाहों से इस परियोजना की ओर देख रहे हैं, लेकिन परियोजना का काम आगे ही नहीं बढ़ रहा है।

कंपनी और राज्य सरकार के बीव विवाद का मुद्दा सरकार द्वारा अधिगृहित जमीन के एक हिस्से को कंपनी द्वारा अपनी मिल्कीयत में लेने की मांग है। केरल सरकार ने अपने द्वारा अधिगृहित जमीन के 236 एकड़ खंड को इस परियोजना के लिए कंपनी को उपलब्ध करा दिया है। कंपनी चाहती है कि जमीन के इस टुकड़े के 12 फीसदी पर उसका मालिकाना हक मिलना चाहिए। केपनी उस 12 फीसदी जमीन का इस्तेमाल खालिय अपने फायदे के लिए अपनी इच्छा के अनुसार करना चाहती है।

पर राज्य सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। उसका कहना है कि जमीन का अधिग्रहन जिस सेज एक्ट के तहत हुआ है, उसके अनुसार इसे किसी को फ्रीहोल्ड संपत्ति के रूप में उपलब्ध करवाया ही नहीं जा सकता। जबकि कंपनी कर रही है कि राज्य सरकार के साथ उसका जो करार हुआ है, उसके तहत वह 12 फीसदी जमीन के फ्रीहोज्ड मालिक बनने का अघिकार रखती है।

इस विवाद में परियोजना का काम रुका हुआ है। सरकार की नोटिस का यदि कोई असर कंपनी पर नहीं पड़ा है, तो इसका कारण यही है कि उसे पता है कि करार के तहत वह कानूनी रूप से मजबूत स्थिति में है और राज्य सरकार एकतरफा निर्णय करके करार से बाहर नहीं आ सकती। राज्य सरकार को भी लग रहा है कि यदि उसने टेकॉम को दरकिनार कर किसी और कंपनी को इस काम में लगाया, तो मामला अदालत में चला जाएगा और फिर इस काम में और भी विलंब होता जाएगा।

अब समस्या का हल यही हो सकता है कि दोनों पक्ष किसी मध्यस्थ की सहायता ले और उसकी सहायता से दोनों पक्ष किसी सहमति पर पहुंचे। (संवाद)