एलडीएफ के कुछ नेता इस बात पर राहत की सांस ले रहे हैं कि उनकी हार वैसी नहीं है, जैसी आशंका की जा रही थी। गौरतलब है कि पिछले साल लोकसभा के चुनावों में भी एलडीएफ हारा था। राज्य की 20 सीटों में महज 4 पर ही उसकी जीत हुई थी। यदि उस हार से पिछली हार की तुलना की जाए, तो लगेगा कि वामपंथियों की स्थिति कुछ सुधर गई है।

लेकिन मात्र इससे संतोष करने से तो विधानसभा के चुनावों में हार को टाला नहीं जा सकता? हार तो हार है और वह भी कोई साधारण हार नहीं है। नगर निगम चुनावों में पिछली बार सत्तारूढ़ मोर्चा चारों जगह जीता था। इस बार वह दो नगर निगम गंवा चुका है। कोच्चि नगर निगम पर पिछले 30 साल से उसका कब्जा था, लेकिन अब वह उसके हाथ से निकल चुका है। त्रिसुर नगर निगम में भी उसकी हार हुई। वहां की 55 सीटों में मात्र 6 पर ही उसकी जीत हुई है। मुश्किल से तिरुअनंतपुरम को वह बचा सका। वहां की 100 सीटों में मात्र 51 पर उसकी जीम हुई है। यानी एक सीट की बढ़त के साथ उसका इस पर कब्जा हुआ है। कोझिकोड़े सीट पर यह आरामदायक बहुमत के साथ काबिज हुई है।

राज्य के 14 जिला पंचायतों में सिर्फ 5 पर ही सत्तारूढ़ मोर्चे की जीत हुई है, जबकि विपक्षी मोर्चा 544 ग्राम पंचायतों की 343 सीटों पर विजयी हुआ। प्रखंड पंचायतों में विपक्षी मोर्चा को 89 और सत्तारूढ़ मोर्चा को 52 सीटों पर विजयश्री मिली। राज्य में 59 नगरपालिकाएं हैं। उनमें 39 पर कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा और 18 पर सीपीएम के नेतृत्व वाला मोर्चा विजयी हुआ है।

जाहिर है एलडीएफ की सभी जगह हार हुई है। वह नगरों में ही नहीं गांवों में भी हारी है। अपनी हार के लिए वामपंथी नेता कांग्रेस के पक्ष में हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को जिम्मेदार बता रहे हैं। इसमें कुछ सच्चाई भी हैख् लेकिन हार के लिए और भी फैक्टर जिम्मेदार रहे हैं।

सीपीआई और आरएसपी के नेता इस हार के लिए सीपीएम को जिम्मेदार बता रहे हैं। उनका कहना है कि सीपीएम के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान उनको विश्वास में नहीं लिया और मिली जुली रणनीति नहीं बनी। उनके कार्यकर्त्ताओं को प्रचार में पूरी तरह सहयोग करने का मौका ही नहीं दिया गया। इसके अलावा सीपीआई के नेता सीपीएम के राज्य सचिव विजयन के कुछ बयानों को भी हार के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं।

इस बार मुसलमानों का समर्थन सत्तारूढ़ मोर्चे को कम मिला। इसके कुछ सहयोगी घटक इसका साथ छोड़ चुके थे। उससे मुस्लिम मतों पर असर पड़ा। कुछ मुस्लिम नेता भी पार्टी छोड़कर कांग्रेस के नतृत्व वाले मोर्चे के साथ चले गए थे। उनके मोर्चे से बाहर जाने के बाद जिस तरह की बयानबाजी विजयन ने की उसके कारण भी मुस्लिम मत मोर्चे से छिटके, ऐसा आरोप सीपीआई नेता विजयन पर लगा रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के अब 7 महीने रह गए हैं। इन सात महीनों में सत्तारूढ़ मोर्चे को अपनी गलतियों से सीखना होगा। सीपीएम के शीर्ष नेताओं में मतभेद भी उसके लिए भारी साबित हो रहे हैं। उन्हें अपने मतभेदों को भी मिटाना होगा, नहीं तो सेमीफाइनल की यह हार फाइनल में भी दुहराई जा सकती है। (संवाद)