उत्तर प्रदेश की 21 फीसदी आबादी दलितों की है और मुख्यमंत्री मायावती की राजनीति का मुख्य जनाधार भी यही वर्ग है। उनपर हो रहे अत्याचार में वृद्धि का आरोप सीधे मुख्यमंत्री मायावती की राजनीति को चोट पहुंचाता है। यह आरोप यदि राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष की ओर से लगाया जाय, तो यह और भी संवेदनशील हो जाता है। अध्यक्ष पुनिया लंबे समय तक एक नौकरशाह के रूप में उत्तर प्रदेश से जुड़े रहे हैं। मायावती के पहले के कार्यकाल में वे उनके खासमखास भी हुआ करते थे और वे मायावती सरकार तें मुख्य सचिव तक रह चुके हैं।
श्री पुनिया ने मायावती सरकार पर एक नहीं, बल्कि अनेक संगीन आरोप लगाए हैं। पहला आरोप राज्य में दलित उत्पीड़न में आई वृद्धि का है। राज्य सरकार उनके आरोप का खंडन करती है और आंकड़ा देकर बताती है कि दलितों पर अत्याचार कम हुए हैं। श्री पुनिया का कहना है कि वे आंकड़े झूठे हैं, क्योंकि दलितों पर हो जुर्म की अधिकांश शिकायतों को दर्ज ही नहीं किया जा रहा है। गौरतबलब है कि दर्ज शिकायत के आंकड़ों के हवाले से ही राज्य सरकार दलित उत्पीड़न में कमी आने का दावा कर रही है।
श्री पुनिया की दूसरी शिकायत यह है कि दर्ज मामलों में भी सुनवाई में देर की जा रही है। उनका कहना है कि दलित मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनी हुई हैं। लेकिन सरकार उन अदालतों पर अन्य मुकदमों का बोझ भी डाल रही हैं, जिसके कारण उन अदालतों में दलित मुकदमों की सुनवाई तेजी से हो ही नहीं पा रही है और इसके कारण दलितों को समय पर न्याय नहीं मिल रहा है।
श्री पुनिया का तीसरा आरोप दलितों के लिए आबंटित राशि को अन्य कार्यो में खर्च कर देने से संबंधित है। उनका कहना है कि राज्य सरकार ने दलितों के लिए खर्च की जाने वाली रकम के एक हिस्से को दो मेडिकल कॉलेजों की निर्माण में कर दिए हैं, जो दलितों के साथ एक बड़ी नाइंसाफी है। राज्य सरकार इस आरोप का खंडन करती है, लेकिन श्री पुनिया बताते हैं कि मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया ने तो एक कॉलेज को मान्यता देने से मात्र इसीलिए मना कर दिया है, क्योंकि वह दलितों के कोष से तैयार किया गया है।
राज्य सरकार पर राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के साथ सहयोग नहीं करने का आरोप भी लगाया जा रहा है। श्री पुनिया का कहना है कि दलितों के उत्पीड़न से संबंधित उनके पत्र को राज्य सरकार के अघिकारी गंभीरता से लेते ही नहीं। उनका कभी जवाब नहीं दिया जाता। उनकी पावती तक की सूचना नहीं दी जाती। दूसरी तरफ जब उन्होंने राज्य में अपनी यात्रा की सूचना राज्य के अघिकारियों को दी, तो उन्होंने राज्य में आने से मना करते हुए 5 पत्र लिख डाले और अपनी व्यस्तता का हवाला देकर उन्हें आने से मना किया।
श्री पुनिया का आरोप यहीं समाप्त नहीं होता। उनका कहना है कि लखनऊ की उनकी यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री ने उनके साथ बैठक नहीं की और न की मुख्य सचिव ने उनसे मिलने की जहमत उठाई। गौरतलब है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके अध्यक्ष का पद एक संवैधानिक पद है। दलित उत्पीड़न के मसले पर यदि अध्यक्ष किसी राज्य के मुख्यमंत्री अथवा मुख्य सचिव से उस राज्य की राजधानी में मुलाकात करना चाहते हैं तो उस राजय के मुख्यमंत्री अथवा मुख्य सचिव का यह सांवैधानिक कर्तव्य बनता है कि उनके साथ बैठक करें।
श्री पुनिया का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा उनकी उपेक्षा किए जाने के बावजूद वे उत्तर प्रदेश का अपना दौरा जारी रखेगे और दलित उत्पीड़न के मामले पर सरकार से कैफियत तलब करते रहेंगे। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न की राजनीति
मायावती के साथ पुनिया का टकराव
प्रदीप कपूर - 2010-11-13 18:43
लखनऊः राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी एल पुनिया द्वारा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ दलित उत्पीड़न के खिलाफ मोर्चाबंदी को राज्य की राजनीति में बहुत महत्व मिल रहा है। श्री पुनिया का आरोप है कि राज्य में दलितों पर उत्पीड़न बढ़ा है और प्रशासन उनके उत्पीड़न को नजरअंदाज कर रहा है।