ए राजा को जिस तरह केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बाहर निकाला गया और उनके निकालने के बाद कांग्रेस जिस तरह की राजनीति कर रही है, वह आखिरकार उसका डीएमके के साथ गठजोड़ तोड़ने की भूमिका हो सकती है। संचार घोटाले पर वैसे भी कांग्रेस और केन्द्र सरकार ए राजा को हटाने के लिए भारी दबाव का सामना कर रही थी। मनमोहन सिंह सरकार के पास बहुमत नहीं है। वह बहुत मुश्किल से केन्द्र की अपनी सरकार चला रही है और निर्णायक मौके पर किसी तरह से अपना बहुमत का जुगाड़ लोकसभा में कर लेती है। राज्य सभा में तो वह स्पष्ठ रूप से अल्पमत में है। इसके कारण वह डीएमके के दबाव में आ जाती है। डीएमके ही नहीं, बल्कि शरद पवार की एनसीपी और ममता की तृणमूल कांग्रेस के सामने भी असहाय सी दिखती है, पर पिछले कुछ समय से वह अपनी तीनों सहयोगी पार्टियों के खिलाफ कड़ा रुख भी अपनाने लगी है। पश्चिम बंगाल में वहां के स्थानीय नेताओं के साथ ममता बनर्जी की तू तू मैं मैं हो रही है। महाराष्ट्र में शरद पवार की इच्छा के खिलाफ कांग्रेस ने पृथ्वीराज चौहान को मुख्यमंत्री बना दिया है। तमिलनाडु में ए राजा को हटाकर संचार मंत्रालय कांग्रेस ने अपने पास ले लिया है। करुणानिधि चाहते हैं कि संचार मंत्रालय उनकी पार्टी के किसी व्यक्ति के पास ही होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं हो रही है। टी आर बालू तो साफ साफ कह भी चुके हैं कि यह मंत्रालय उनकी पार्टी के पास ही रहेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और कांग्रेस की ओर से इस तरह के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं कि यह मंत्रालय फिर डीएमके को लौटाया भी जा सकता है। भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के दौर में शायद डीएमके को इसे देना उचित भी नहीं माना जाए।
एक समय था जब करुणानिधि के एक इशारे पर केन्द्र सरकार ने न्येविली लिग्नाइट के विनिवेश से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। लेकिन ए राजा के मामले पर प्रधानमंत्री ने कड़ा रुख अपनाया। करुणानिधि ए राजा के हटाए जाने के सख्त खिलाफ थे। पर मनमोहन सिंह पे साफ कर दिया था कि यदि राजा नहीं हटे तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। जाहिर है उन्होंने करुणानिधि से समर्थन वापसी की स्थिति का सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था। उसमें जयललिता द्वारा 18 लोकसभा सांसदों का समर्थन जुटाने कर एलान भी उनके पक्ष में था।
तमिलनाडु की राजनीति में कांग्रेस की भूमिका इस मायने में महत्वपूर्ण है कि वह डीएमके और अन्ना डीएमके, जिस किसी के साथ चुनाव में होती है, उसका पलड़ा भारी हो जाता है। यही कारण है कि अब अन्ना डीएमके की जयललिता कांग्रेस के साथ जुड़ने की इच्छा दिखा रही है। इस संकट के दौरान मनमोहन सिंह सरकार को डीएमके के समर्थन के बिना भी बचाने का कोई न कोई फार्मूला तैयार किया गया था। जाहिर है उसके बाद करुणानिधि पर मनमोहन सिंह की निर्भरता पहले जैसी नहीं रही।
जयललिता तो कांग्रेस से हाथ मिलाना चाह ही रही है, रामदॉस की पार्टी पीएमके भी कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना चाहती है। पिछले लोकसभा चुनाव में पीएमके ने जयललिता के पार्टी से मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। उसके बाद वह जयललिता के गठबंधन से बाहर आ गई है। अब वह चाहती है कि तमिलनाडु के कांग्रेस के नेतृत्व में एक तीसरा मोर्चा बने। कांग्रेस के पास जयललिता के अलावा एक विकल्प यह भी है।
दूसरी तरफ करुणानिधि के लिए आने वाले दिन आसान नहीं हैं। ए राजा के खिलाफ लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से उनकी पार्टी को जूझना पड़ रहा है। ए राजा दलित हैं और वे दलित कार्ड खेलकर उनका बचाव कर रहे हैं, लेकिन संचार मंत्रालय के घोटाले की खबरें जितनी विस्तार से सामने आ रही हैं, करुणानिधि का काम उतना ही कठिन होता जा रहा है। जयललिता करुणानिधि के खिलाफ बहुत ही जोरदार अभियान चला रही हैं। वह उनके परिवारवाद पर जमकर आक्रमण कर रही हैं। वह कह रही है कि दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में करुणाकरन के परिवारवाद की बराबरी नहीं हो सकती। करुणाकरन खुद मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने अपने एक बेटे को उपमुख्यमंत्री बना रखा है। उनका एक अन्य बेटा केन्द्र में मंत्री है। उनका एक नाती भी केन्द्र में मंत्री है और उन्होंने अपनी एक बेटी को राज्य सभा का सदस्य बना रखा है। अस राजनैतिक प्रोफाइल पर लगातार हो रहे हमले और कांग्रेस द्वारा अपने आपको तमिलनाडु की राजनीति में खड़ा करने के प्रयासों के बीच तमिलनाडु मुख्यमंत्री करुणानिधि के आने वाले दिन आसान नहीं होंगे। (संवाद)
तमिलनाडु में कांग्रेस अपना उभार चाहती है
आने वाले दिन करुणानिधि के लिए कठिन होंगे
कल्याणी शंकर - 2010-11-18 17:25
सारे संकेत बताते हैं कि कांग्रेस अब तमिलनाडु में अपने आपको फिर से मजबूत करने की रणनीति बना रही है, ताकि वह वहां किसी पार्टी की पिछलग्गू की भूमिका में नहीं रहे। 1960 के दशक में वहां उसके हाथ से सत्ता निकल गई थी, जो दुबारा उसे कभी नहीं मिली हैं। अब वह फिर से राज्य की सत्ता में वापस होना चाहती है।