कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस यदुरप्पा पर अपने रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है। कांग्रेस और जनता दल (एस) की ओर से उनके इस्तीफे की मांग भी की जा रही है। भाजपा के नेतृत्व का एक वर्ग उन्हें अपने पद से हटाना भी चाहता है, लेकिन अब तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने अपना मन इस्तीफा देने के लिए तैयार ही नहीं किया है। उनका मुख्यमंत्री पद पर बना रहना भारतीय जनता पार्टी के कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के मामले को लेकर किए जा रहे हमले को कमजोर कर रहा है। उसके कारण भाजपा वह राजनैतिक फायदा नहीं उठा पा रही है, जो वह देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में उठा सकती थी।

श्री येदुरप्पा भारतीय जनता पार्टी नेत्त्व के लिए पहले से ही समस्या के कारण बने हुए हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पार्टी के कुछ विधायकों ने बगावत कर दी थी। सरकार को समर्थन दे रहे कुछ निर्दलीय विधायको ने भी सरकार का साथ छोड़ दिया था। उसके कारण भाजपा की पहली दक्षिण भारतीय राज्य की सरकार के अस्तित्व को ही संकट का सामना करना पड़ रहा था। किसी तरह येदुरप्पा की सरकार तो बच गई, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उन पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लग रहे हैं, उसके कारण कर्नाटक की भाजपा सरकार के सामने एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया है।

कांग्रेस के सामने तो यह मसला बहुत बड़ी चुनौती पेश कर ही रहा है। उसके कारण उसे अशोक चौहान को मुख्यमंत्री के पद से हटाना पड़ा। उसके कारण ही सुरेश कलमाड़ी को भी कांग्रेस के संसदीय सचिव के पद से हटाना पड़ा। अपने सहयोगी डीएमके के ए राजा को भी हटाने का निर्णय भी तो आखिरकार कांग्रेस का ही था, जिसने यह मन बना लिया था कि डीएमके खुश हो या नाराज, ए राजा को सरकार से हटना ही पड़ेगा।

कांग्रेस संचार मंत्री ए राजा को हटाने के लिए जितना चिंतित थी, डीएमके उतना ही निश्चिंत। डीएमके नेता करुणानिधि को भ्रष्टाचार के मसले पर अपनी पार्टी की फजीहत होने का कोई डर न तो पहले था और न ही आज है। ए राजा को हटाए जाने का विरोध वे दलित कार्ड खेलकर करते थे और कहते थे कि दलित होने के कारण लोग राजा के पीछे पड़़े हुए हैं। अब जब राजा हटाए जा चुके हैं, तब भी करुणानिधि को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके कारण अगले साल के मध्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी पर इसका कोई असर पड़ भी सकता है। इसका कारण यह है कि उनकी तमिलनाडु में मुख्य प्रतिद्वंद्वी कुमारी जयललिता हैं और उन पर भी एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार के आरोप अतीत में ल्र चुके हैं। इसके कारण उन्हें लगता है कि तमिलनाडु में भ्रष्टाचार कोई मसला ही नहीं है।

करुणानिधि की तरह ही शायद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस यदुरप्पा भी सोचते हैं। वे पिछले एक साल में अपनी सरकार गिराने के दो प्रयासों को सफलतापूर्वक विफल कर चुके हैं। उन पर लगे भ्रष्टाचार के इस आरोप को वे एक तीसरे प्रयास के रूप में देखेते हैं। वहां तो उनकी सरकार ही आपरेशन लोटस के जरिए बनी थी, जिसके तहत विपक्षी पार्टियों के कुछ विधायकों और कुछ निर्दलीयों को मालामाल करके उनका समर्थन हासिल किया गया था। और उस तरीके से ही भाजपा की पहली दक्षिण भारतीय राज्य की सरकार ने अपना बहुमत साबित किया था। उतना सबकुछ हो जाने के बाद अब भ्रष्टाचार उन्हें कोई ऐसा मसला नहीं लगता, जिसके कारण वे अपना मुख्यमंत्री का पद छोड़ दें।

जाहिर है आज भ्रष्टाचार के आरोपों से देश की दोनों बड़ी पार्टियों के नेता घिर गए हैं। इसमें कांग्रेस का दांव पर ज्यादा लगा हुआ है, क्योंकि वह केन्द्र में सरकार में हैं और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार से उसके नेता ही जुड़े हुए हैं। कांग्रेस तो अपने नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने मे कुछ ज्यादा बेहतर स्थिति में है। उसने तो अपने एक मुख्यमंत्री को हटा भी दिया है, पर भाजपा के लिए उस तरह का निर्णय कठिन है। दबाव में आकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदुरप्पा ने केन्द्रीय आलाकमान की बात मानने की बात तो स्वीकार कर ली है, लेकिन उनके हटाने के बाद उस राज्य से भाजपा की सत्ता चले जाने का डर भी भाजपा के केन्द्रीय नेताओं का सता रहा है।

कांग्रेस और भाजपा की आज जो भी राजनीति हो, भ्रष्टाचार के मसले ने देश की राजनीति में केन्द्रीय स्ािान प्राप्त कर लिया है। (संवाद)