विपक्ष का निशाना मात्र ही बने रहतेए तब भी गनीमत थी, लेकिन अब तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के सवालों का भी जवाब देना पड़ा कि आखिर ए राजा के खिलाफ मुकदमों के बारे में अपनी राय देने में उन्होंने देर क्यों की। भाजपा अध्यक्ष गडकरी राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार के मामले में प्रघानमंत्री कार्यालय को दोषी करार दे रहे हैं।
विपक्षी आक्रमण का यह आलम है कि संसद ही अनेक दिनों तक नहीं चली। जाहिर है, दिल्ली में कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले यूपीए को भारी फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए जेपीसी के गठन की मांग कर रहा है। केन्द्र सरकार उसके लिए कतई तैयार नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि उसे संसद में बहुमत का समर्थन हासिल ही नहीं है। लोकसभा में उसे बहुमत से दो तीन सीटें कम ही हैं और राज्य सभा में तो वह स्पष्ट रूप से अल्पमत में है। जाहिर है किसी भी जेपीसी में विपक्षी सांसदों की संख्या ज्यादा होगी और उसकी कार्रवाई केन्द्र सरकार के लिए बहुत ही मारक साबित हो सकती है। यही कारण है कि केन्द्र सरकार विपक्ष के तमाम दबावों के बावजूद इसके जेपीसी जांच के लिए तैयार ही नहीं है।
दिल्ली की समस्या के बीच बिहार के चुनाव ने भी कांग्रेस का हिला कर रख दिया है। उसे बिहार में अबतक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उसके मात्र 4 विधायक ही जीत पाए, जबकि कांग्रेस ने वहां अपनी सारी ताकत झोंक रखी थी। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में उसे जितने मत मिले थे, उसका आधा भी इस बार वहां उसे नहीं मिला। कहां, तो वह लोकसभा के अपने प्रदर्शन को वहां सुधारने चली थी, कहां उसे एक ऐसी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, जिसने उसके नेताओं की बोलती बंद कर रखी है। उत्तर प्रदेश में भी दो उपचुनाव हो रहे थे और उसमें बसपा ने अपने उम्मीदवार भी नहीं खड़े किए थे। इसके बावजूद कांग्रेस को उन दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा और बाजी समाजवादी पार्टी के हाथ लगी। इस तरह से कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के मुख्य राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी होने के अपने रुतबे पर खुद सवालिया निशान लगा दिया है।
भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर हो रही राष्ट्रव्यापी फजीहत और बिहार व उत्तर प्रदेश की हार के बाद अब दक्षिण में कांग्रेस की हालत पतली होती दिखाई पड़ रही है। केरल के पंचायती चुनावों मे तो उसकी जीत हो गई है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी चनौती आंध््राप्रदेश और तमिलनाडु में है। आंध्रप्रदेश में उसने एकाएक अपने मुख्यमंत्री को बदल डाला है। रोसैया की जगह उसने किरण रेड्डी को वहां का मुख्यमंत्री बना दिया है। इससे उसकी समस्या का वहां अंत होने वाला नहीं है, क्योंकि जगनमोहन रेड्डी का असंतोष अभी वहां समाप्त नहीं हुआ है। जगनमोहन से भी बड़ी समस्या कांग्रेस के लिए तेलंगाना का सवाल है। श्री कृष्ण आयोग का कार्यकाल पूरा होने वाला है। जल्द ही उसकी रिपोर्ट सामने आने वाली है। रिपोर्ट में चाहे जो कुछ भी कहा जाए, राज्य भर में व्याापक असंतोष होना ही होना है। तेलगना राज्य के पक्ष और विपक्ष दोनों ओर भावनाओं का ज्वारर पैदा होता है। कांग्रेस अभी यह तय नहीं कर पाई है कि तेलंगना के मसले को उसे कैसे सुलझाना है।
आंध्र प्रदेश के साथ साथ तमिलनाडु में भी उसके सामने जबर्दस्त चुनौती है। वहां अगले 6 महीने के अंदर ही विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उसे वहां डीएमके के साथ अपने संबंधों को लेकर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है। फिलहाल वह राज्य में बाहर से करुणानिधि की अल्पमत सरकार का समर्थन कर रही है। कांग्रेस के ऊपर वहां करुणानिधि की शर्तें भारी पड़ती हैं। वह चाहकर भी राज्य मे ंसत्ता की भागीदारी नहीं कर पा रही है। केन्द्र की 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला के केन्द्र में भी डीएमके के ए राजा ही हैं। उस घोटाले का असर भी तमिलनाडु में पड़ेगा। दक्षिण के इस राज्य में अब कांग्रेस एक जूनियर पार्टनर की भूमिका से बाहर निकलना चाहती है। वह डीएमके के साथ बराबरी का समझौता करना चाहती है, लेकिन करुणानिधि इसके लिए तैयार ही नहीं हैं।
कांग्रेस और यूपीए के सामने आज विश्वास का संकट आ खड़ा हुआ है। उसे इस संकट को समझना चाहिए। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद उसकी सुशासन पर ही सवाल खड़े हुए हैं। महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है और उस मसले पर केन्द्र सरकार संवदेनशील रवैया नहीं अपना रही है। बिहार व उत्तर प्रदेश की उसकी हार में बढ़ती महंगाई के कारण लोगों का कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश भी एक बड़ा कारण है। यदि सरकार इसी तरह काम करती रही और उसकी अक्षमता के किस्से लोगों के सामने आते रहे, तो मानना पड़ेगा कि आने वाले महीने और और आने वाला साल उसके लिए सुकुन का पैगाम नहीं, बल्कि तबाही का संदेश लेकर आएगा। (संवाद)
बिहार के बाद अब कांग्रेस की दक्षिण में आफत आने वाली है
अच्छे प्रशासन के बिना यूपीए कुड हासिल नहीं कर पाएगा
एस सेतुरमन - 2010-11-26 16:26
नवंबर का महीना कांग्रेस के लिए काफी क्रूर साबित हुआ है। इस महीने में भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर उसे काफी फजीहत का सामना करना पड़ा है। आदर्श सोसाइटी घोटाले में तो उसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तक को बदल देना पड़ा। सहयोगी डीएमके के ए राजा को भी उसे केन्द्र सरकार से बाहर करना पड़ा। राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार को लेकर भी उसकी खासी फजीहत हो रही है। कांग्रेस के लिए उससे भी बड़ी चिंता का विषय यह है कि अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के मामले को लेकर सीधे विपक्ष का निशाना बन रहे हैं।