ये टेप सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकारी रिकार्ड के रूप में प्रस्तुत भी कर दिए गए हैं। इसलिए ये पब्लिक डोमेन में आ गए हैं। ये सभी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं। आउटलुकइंडिया के साइट पर जाकर उन्हें कोई भी सुन सकता है। फोरेंसिक प्रयोगशाला मे उन टेपों के असली होने को नहीं परखा गया है, लेकिन इसके असली होने में किसी को संदेह नहीं है, क्योंकि उन टेपों में जिनकी आवाजें कैंद हैं, उन्होंने खुद भी उनके असली होने को अबतक चुनौती नहीं दी है।

बातचीत को टेप करने का निर्णय आयकर विभाग का था और उनके आग्रह पर ही गृहमंत्रालय ने उन्हे टेप करवाया था। कुल 5851 टेप मौजूद हैं और उनमें से 104 टेपों के आघार पर अब तक की खबरें आई हैं। उन टेपों में कुछ प्रभावशाली पत्रकारों की बातचीत भी बंद हैं, जिनसे यह पता चलता है कि वे पत्रकार किस तरह पत्रकारिता की नैतिकता को ताक पर रखकर सरकार की नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करने का काम कर रहे थे और किस तरह कार्पोरेट घरानों के हाथों में पैसे के लिए खेल रहे थे। इससे यह पता चलता है कि पत्रकारिता का उनके कारण कितना पतन हो गया है। व्यवस्था के सड़ांध के प्रमाण हैं वे टेप।

उन टेपों की बातचीत से पता चलता है कि नीरा राडिया ने हिन्दुस्तान टाइम्स के वीर सिंघवी और एनडीटीवी की बरखा दत्त को अपनी सेवा में लगा रखा था और ये दोनों पत्रकार सुश्री राडिया के लिए बिचौलिए का काम कर रहे थे। जब 2009 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल का गठन हो रहा था और मंत्रालय बांटे जा रहे थे, उस समय ये लोग मंत्रालय वितरण की प्रक्रिया को उस तरह प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे, जिससे सुश्री राडिया और उनके कार्पोरेट आकाओं को फायदा हो। बरखा दत्त और वीर सिंधवी का एक लक्ष्य ए राजा को फिर से संचार मंत्रालय दिलवाना था और उसमें वे सफल भी रहे। गौरतलब है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री के तौर पर ए राजा ही अब तक केन्द्रीय भूमिका में दिखाई पड़ रहे हैं।

टेप की बातचीत का एक अन्य मसला भी है। वह मुम्बई हाई कोर्ट में चल रहे उस मुकदमे से ताल्लुक रखता है, जिसमें अनिल और मुकेश अंबानी नेचरल गैस की कीमतों को लेकर आपस में लड़ रहे थे। वह कृष्णा गोदावरी बेसिन की गैस का मामला था जो राष्ट्र की संपत्ति है। इसमे सुश्री राडिया अनिल अंबानी के खिलाफ वीर सिंधवी को मुकेश अंबानी के लिए इस्तेमाल करती दिखाई पड़ रही हैं। वीर सिंधवी ने मुकेश अंबानी के पक्ष में हिंदुस्तान टाइम्स में लेख भी लिखे। वे लेख थे तो वीर सिंघवी के नाम, लेकिन उसमें विचार और शब्द नीरा राडिया के थे।

2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले और राडिया टेप्स से यह पता चलता है कि भारत की सार्वजनिक संपत्ति को कुछ व्यापारिक घरानों और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों द्वारा बेदर्दी से लूटा जा रहा है और कुछ पत्रकार उस लूट में बिचौलिए का काम कर रहे हैं। जाहिर है 2 जी स्पेक्ट्रम और गोदावरी बेसिन की गैस की लूट में टेप में शामिल सभी पत्रकार दोषी नजर आ रहे हैं। ये दोनों भ्रष्टाचार के मामले लोगों के सामने ढंग से लाए ही नहीं गए हैं। इसका कारण है कि मीडिया ने उन्हें ब्लैकआउट कर रखा था। मीडिया अपने आपको सच्चाई का पहरुआ होने का दावा करता है, लेकिन गोदावरी गैस घोटाले और 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर अपनाया गया उसका रवैया उसकी असलियत को उजागर कर रहा है।

2 जी स्पेक्ट्रम को कम कीमत पर बेचने के सरकारी फैसले ने देश के सरकारी खजाने को 66 हजार करोड़ रुपए से एक लाख 77 हजार करोड़ रुपए का नुकसान पहुचाया। यह देश के नियंत्रक लेखा महापरीक्षक (कैग) का कहना है। इसकी तुलना हम पिछले दो दशकों मंे हुए घोटाले से कर सकते हैं। इस दौरान का सबसे चर्चित घोटाला था बोफोर्स घोटाला, जिसमें 64 करोड़ रुपए की राशि शामिल थी। उसकी तुलना यदि एक लाख 77 हजार करोड़ रुपए के घोटाले से करें, तो साफ दिखाई पड़ता है कि एक तिल है तो दूसरा ताड़।

ए राजा ने चार तरीकों से इस घोटाले को अंजाम दिया। सबसे पहले तो उन्होंने उसकी कीमत ही बहुत कम रखी। 1651 करोड़ रुपया एक क्षेत्र की ईकाई के लिए तय किया गया। उनके कुछ खराददारों ने तो खरीद के कुछ सप्ताह के अंदर ही उन्हें 12,000 करोड़ रुपए प्रति इकाई के हिसाब से बेच दिया। यानी सौ रुपए में सरकार से खरीदे गए माल को साढे सात सौ रुपए में उन्होंने कुछ दिनों में ही बेच दिया।

दूसरा गलत काम ए राजा ने आवेदन की तिथि बदलकर किया। तिथि अपने पसंदीदा बिजनेस घरानों को फायदा पहुचाने के लिए बदली गई। तीसरा गलत काम किया गया कुछ बिजनेस घरानों को कुछ कंपनियों में अपने शेयरों के मालिकाना हक को छिपाने की सहूलियत देकर किया गया। चौथी गड़बड़ी एक स्पेक्ट्रम इस्तेमाल की शर्तो में ढील देकर की गई। शर्त के अनुसार खरीद के एक साल के अंदर 10 प्रतिशत स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू हो जाना था और तीन साल के अंदर सारे स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू होना था। इस शर्त का भारी उल्लंधन हुआ और इसे क्रियान्वित करने के लिए कुछ नहीं किया गया।

एक और भारी गड़बड़ी की गई 37 हजार करोड़ रुपए के स्पेक्ट्रम मुफ्त में बांटकर। सरकारी कंपनी एमटीएनएल और बीएसएनएल को भी मुफ्त में स्पेक्ट्रम दिए गए। ये दोनों सरकारी कंपनियां सरकार की नीतियों के अनुसार कम फायदे वाले ग्रामीण इलाकों में आपरेट करती हैं। इसलिए वहां हो रहे उनके नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें फ्री में स्पेक्ट्रम देना तो समझ मंे आता है, लेकिन निजी कंपनियों को फ्री में स्पेक्ट्रम बेचना तो सरकारी संपत्ति की लूट के अलावा और कुछ भी हो ही नहीं सकता। भ्रष्टाचार की कहानी तो और भी लंबी है। अब जरा टेप की ओर नजर दौड़ाएं।

टेप की बातचीत से जाहिर होता है कि वीर सिंधवी और बरखा दत्त राडिया को यह आश्वस्त कर रहे थे कि कांग्रेस नेताओं से बातचीत कर यह सुनिश्चित करेंगे संचार मंत्रालय ए राजा को ही मिले। संचार मंत्रालय पर दयानिधि मारन की भी नजर थी। डीएमके प्रमुख करुण्ररनिधि की बेटी कानीमोझी ए राजा को संचार मंत्री बनाना चाह रही थीं। करुणाििनधि मारन की जगह राजा पर ही संचार मंत्रालय के लिए अपनी सहमति दें, इसके लिए कांग्रेस नेताओं से करुणानिधि पर दबाव डालने की बातें टेप में कैद है। क्या पत्रकारों का यही काम है? (संवाद)