इसका जवाब देना अभी आसान नहीे है। यह आने वाले दिनों की घटनाओं पर निर्भर करेगा कि जगन की राजनीति कौन सा रूप प्राप्त करेगी। हालांकि उनकी राजनीति राज्य के लिए कोई नई चीज नहीं है। यह परिवारवाद की पुरानी पड़ गई राजनीति का ही एक ताजा संस्करण है। इसकी शुरुआत एनटी रामाराव ने की थी। उन्होंने अपने दो दामादों को राजनीति में आगे बढ़ाया था। उनमें से एक चन्द्रबाबू नायडू थे, तो दूसरे वेंकटेश्वरराव। कुछ ही सालों में चन्द्रबाबु नायडू ने अपने ससुर एनटीआर का पत्ता साफ कर दिया और खुद ही पार्टी और सरकार पर कब्जा कर लिया।

जब वाइएसआर ने राज्य की सत्ता संभाली, तो उन्होंने भी परिवारवाद का सहारा लिया और अपने भाई विवेकानंद रेड्डी को सांसद बना डाला। उसके बाद फिर अपने बेटे को भी सांसद बना डाला। अब उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे जगन उनकी जबह मुख्यमंत्री बनने के लिए हाथ पांव चला रहे हैं।

जगन की कांग्रेस नेतृत्व से शिकायत कोई राजनैतिक नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत है। उनकी शिकायत है कि उन्हें उनके पिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया, जबकि उस समय उनको 150 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। उस समय तो रोसैया को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उनके हटने की प्रतीक्षा जगन करते रहे। प्रतीक्षा करते करते 14 महीने बीत गए। श्री रोसैया हटे भी, लेकिन मुख्यमंत्री का ताज जगन को नहीं मिला। वह ताज मिल गया किरण कुमार रेड्डी को। अब जगन के धीरज का बांध टूट गया है। कांग्रेस में रहकर वह और इूतजार नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने अब उससे हटकर अलग पार्टी बनाने का फैसला कर लिया है।

लेकिन क्या जगन को राजनीति की जमीनी हकीकत की जानकारी है? क्या उन्हें पता है कि अब उनके साथ पहले जितना विधायक नहीं हैं। राज्य के विधायक नहीं चाहते कि चुनाव हो जाए इसलिए वे जगन के साथ जाकर विधानसभा को भंग करवाने का खतरा मोल नहीं ले सकते। कांग्रेस क्या अन्य पार्टियों के विधायक भी चुनाव से बचना चाहेंगे।

दूसरी सच्चाई यह भी है कि उन्हें लोगों की कोई सहानुभूति इस कारण नहीं मिलेगा कि उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। लोगों का समर्थन पाने के लिए उन्हें कोई न कोई राजनैतिक अथवा भावनात्मक मुद्दा तलाशना होगा। 1970 के दशक में चेन्ना रेड्डी ने तेलंगना के मुद्दे पर अपनी राजनीति की थी और अपनी एक अलग पहचान बनाई थी, जिसके कारण बाद में कांग्रेस ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बना डाला। 1980 के दशक में एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश के स्वाभिमान को ही मुद्दा बना डाला था, क्योंकि उस समय कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व ताश के पत्तों की तरह उस प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को बदल रहा था। वे तो अपनी पार्टी लांच करने के 9 महीने के अंदर ही सत्ता पर काबिज हो गए थें। टीआरएस के प्रमुख चन्द्रशेखर राव अलग तेलंगना की राजनीति कर रहे हैं। चिरंजीवी ने प्रजा राज्यम पार्टी बनाकर पिछड़े वर्गो के लोगों की राजनीति शुरू कर दी है।

जगन के पास फिलहाल अपनी राजनीति के लिए कोई मुद्दा है। उनकी राजनीति का भविष्य दरअसल नये मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी की सफलता अथवा विफलता पर निर्भर करता है। यदि वे विफल रहे, तो जगन की राजनीति को जीवन मिलेगा और यदि सफल रहे, तो शायद जगन की रानजीति अपनी अंतिम सांस जल्द ही ले ले। किरण के सामने समस्या मंत्रिमंडल के गठन और मंत्रालयों के बंटवारे के साथ ही आनी शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में वे राज्य के राजनैतिक विरोधाभासों से कैसे निपटते हैं, इस पर भी उनकी सफलता निर्भर करेगी।

आंध्र प्रदेश के सामने सबसे बड़ी राजनैतिक समस्या आज अलग तेलंगना राज्य के गठन का है। केन्द्र सरकार ने इसके गठन पर सहमति दे दी है। और इसके गठन से संबंधित सुझाव के लिए एक श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट अब आने वाली है। उस रिपोर्ट के आने के बाद राज्य भर में भयंकर राजनैतिक तूफान आना तय है, क्योंकि अलग राज्य के पक्ष में जितना मजबूत आंदोलन है, उतना ही मजबूत आंदोलन अलग राज्य के विरोध में भी है। जगन उसका इंतजार कर रहे होंगे। लेकिन उस बवंडर में अपनी राजनीति चमकाने की कला यह युवा नेता जानता है- इसके बारे में दावे के साथ अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। (संवाद)