वैसे तो जब से मनमोहन सिंह की सरकार दूसरी बार सत्ता में आई है, तब से ही वह एक के बाद एक संकट में फंसती जा रही है और उसकी प्रतिष्ठा लगातार धूमिल होती जा रही है, पर पिछले 15 दिनों में जो कुछ हुआ है, उसने तो उसे अपनी सफाई में कुछ भी कहने के लायक ही नहीं छोड़ा है। 15 दिन के पहले राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने के पहल वाले पखवारे में तो देश की दुनिया भर में फजीहत होती रही। हमारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजाक उड़ता रहा। खेल समाप्त होने के बाद उन खेलों में भ्रष्टाचार के मामले की जांच की बात उठी, तो खुद प्रधानमंत्री कार्यालय और केन्द्रीय कैबिनेट को ही भाजपा के अध्यक्ष ने भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार बता दिया।

राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार के बाद एक बार फिर 2 जी स्पेक्ट्रम के भ्रष्टाचार का मामला कैग रिपोर्ट के साथ हरा हुआ। उस मामले में ए राजा का इस्तीफा भी हुआ। लेकिन उसके बाद स्थिति और भी बदतर हो गई। क्योंकि विपक्ष भ्रष्टाचार के उस मामले केी जेपीसी से जांच चाहता है और केन्द्र सरकार ने तो प्रण सा कर लिया है कि वह जेपीसी जांच कराएगी ही नहीं चाहे इसके कारण जो भी हो जाए।

केंन्द्र सरकार का यह रुख आम लोगों को नागवार गुजरने वाला है, क्योंकि सरकार की एजेंसियां अब विश्वास के काबिल रही ही नहीं है। सीबीआई सत्ता से जुड़े किसी व्यक्ति के खिलाफ सही जांच कर पाएगी, यह मानने के लिए आज कोई तैयार ही नहीं है। लालू यादव के खिलाफ एक अपील तक सीबीआई नहीं कर पाई। पिछले बजट सत्र के दौरान ही सीबीआई का इस्तेमाल कर सरकार द्वारा बजट कटौती प्रस्तावों पर विपक्ष को पराजित करने का आरोप लगा। कहा गया कि शीबू सोरेन का वोट भी सीबीआई का डर दिखा कर ही प्राप्त किया गया था। उसके बाद सीबीआई की जांच पर अब किसी को कोई भरोसा रह ही नहीं गया है। वैसे भी आइपीएल घोटाले की जांच में सीबीआई अभी तक किसी को कुछ कर नहीं पाई है।

केन्द्र सरकार की विपक्ष द्वारा ही फजीहत नहीं हो रही है, अल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी उसे लताड़ लग रही है। एक लताड़ तो ए राजा के खिलाफ मुकदमा चलानें की इजाजत देने से संबंधित मामलों मंे लगी, जिसके जद में खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही आ गए। किसी तरह से उस मामले में लीपापोती से काम चलाया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय का जारी किए गए नोटिस के कुछ दिनांे के बाद ही मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) की नियुक्ति का मामला फिर एक बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा को आघात पहुचा गया है।

सीबीआई की जांच सीवीसी की निगरानी में होता है। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद इसकी व्यवस्था की गई है, ताकि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के दबाव से वह जांच एजेंसी मुक्त रह सके। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है और उस जांच एजेंसी की निगरानी करने का जिम्मा सीवीसी जे थामस की है। दिलचस्प बात है कि जिस समय 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ था, उस समय जे थामस ही संचार सचिव थे। जाहिर है कि घोटाले की जांच की जद में श्री थॉमस भी आ जाते हैं। कहने का मतलब है कि उनके 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच खुद जे थामस के खिलाफ भी जांच है और यही जनाब सीवीसी की हैसियत से यह निगरानी कर रहे हैं कि जांच सही तरीके से हो रही है अथवा नहीं। ऐसी स्थिति कभी भी पैदा नहीं हुई होगी कि जिस व्यक्ति के खिलाफ जांच चल रही हो, वही व्यक्ति जांच एजेंसी का सुपर बॉस बना हुआ हो। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट को सरकार से यह पूछना पड़ा कि श्री थामस संचार घोटाले की सीबीआई जांच की निगरानी कैसे कर पाएंगे।

यानी सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केन्द्र सरकार को एक और बड़ा झटका लगा है और उसके बाद सीवीसी का अपने पद पर बना रहना कठिन है। सरकार को तो उन्हें तत्काल हटा देना चाहिए था, लेकिन उसका वकील कोर्ट में यह दलील लेकर पहुच गया कि सीवीसी उस जांच की निगरानी नहीं करेेंगे, बल्कि उनके जो जूनियर आयुक्त है, वे उसकी निगरानी करेंगे। यानी केन्द्र सरकार ने सीवीसी (मुख्य निगरानी आयुक्त) को बचाने की कोशिश करती दिखाई पड़ी। बाद में पता चला कि श्री थॉमस के खिलाफ तो पामोलिन आयात घोटाले का एक 17 साल पुराना केस पेंडिंग पड़ा हुआ है।

श्री थामस की नियुक्ति जिस तरीके हुई, उससे भी केन्द्र सरकार की छवि खराब हुई है। सीवीसी की नियुक्ति प्रक्रिया के तहत लोकसभा में विपक्ष के नेता की राय भी उनकी नियुक्ति की पहले ली जाती है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की राय उनकी नियुक्ति के पहले ली गई थी और उन्होंने उनकी नियुक्ति का यह कहते हुए विरोध किया था कि उनका अतीत दागनुमा है और वह सीवीसी के पद के योग्य ही नहीं है। सुश्री स्वराज की राय की उपेक्षा करके केन्द्र सरकार ने उनकी नियुक्ति कुछ दिन पहले ही की थी और श्री थामस के शपथग्रहण समारोह को श्री लालकुष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज ने यह कहते हुए बहिष्कार किया था कि उनकी नियुक्ति किया जाना गलत था और इसलिए वे उनके शपथग्रहण समारोह का हिस्सा नहीं हो सकते। गौरतलग है कि सीवीसी को शपथ देश का राष्ट्रपति दिलवाता है।

जाहिर है सीवीसी की नियुक्ति के मामले में भी केन्द्र की सरकार ने अपनी फजीहत करवा ली है और विपक्ष के इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष द्वारा श्री थामस के दागदार अतीत की चेतावनी के बाद भी उनकी नियुक्ति क्यों की गई? अब केन्द्र की सरकार कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच के खिलाफ वह नहीं है। पर सवाल उठता है कि आखिर जेपीसी जांच से उसको आपत्ति क्यों है? खुद सरकार ने अपने विवादास्पद निर्णयों से सीवीसी जैसे सांवैधानिक पद और सीबीआई जैसी जांच एजेंसी की चियवसनीयता को समाप्त कर दिया है, तो फिर जेपीसी की जांच के अलावा और कौन सा विकल्प बच जाता है?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गिनती एक ऐसी व्यक्ति के रूप में होती है, जिनका व्यक्तित्व बेदाग है। वे देश में अनेक बड़े पदों पर रह चुके हैं। अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के कारण ही वे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। पिछला लोकसभा चुनाव भी उनके कारण ही कांग्रेस जीती है, क्योंकि लोगों को लगा कि देश का प्रधानमंत्री एक ऐसा व्यक्ति है, जो सत्ता के बड़े बड़े पदों पर रहकर भी उसका दुरुपयोग अपने परिवार के हित में नहीं किया। लेकिन आज जिस तरह का राजनैतिक गतिरोध बना हुआ है और उनसे जुड़े लोगों पर भ्रष्टाचार के जिस तरह के आरोप लग रहे हैं, उनसे मनमोहन सिंह की निजी प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंच रही है। इसलिए प्रधानमंत्री को अब राजनीति से उठकर कुछ ठोस निर्णय लेने चाहिए, जो उनकी अपनी पृष्ठभूमि के अनुरूप हो। (संवाद)