जूलियस सीजर के एक्टा डायरना के ईसा पूर्व 59 में प्रकाशित और प्रसारित दुनिया के पहले दैनिक समाचार बुलेटिन के बाद लगभग 1500 वर्षों तक कोई खास प्रगति नहीं हुई। पंद्रहवीं सदी के मध्य में जब प्रिंटिंग प्रेस का प्रचलन यूरोप में शुरु हुआ तब जाकर इसमें गति आयी। आधुनिक प्रकारिता का इतिहास लगभग यहीं से शुरु होता है लेकिन इसका अर्थ वह नहीं था जो आज है। आज जिस अर्थ में पत्रकारिता प्रचलित है वह 17 वीं सदी की देन है और तभी से इसे प्रेस के रुप में जाना जाता रहा है। लेकिन 20वीं सदी में रेडियो टेलिविजन और इंटरनेट के आने के कारण सूचनाओं के अनेक माध्यम हो गये और इसे मीडिया कहा जाने लगा। इस तरह प्रिंट पत्रकारिता, रेडियो पत्रकारिता, टीवी पत्रकारिता आदि के रुप में इनका वर्गीकरण होने लगा। साथ-साथ पुराना वर्गीकरण भी चलता रहा – जैसे संददीय प्रकारिता, खेल पत्रकारिता, फिल्म पत्रकारिता आदि। पहले तरह का वर्गीकरण जहां एक ओर पत्रकारिता का नहीं बल्कि पत्रकारिता के माध्यमों का वर्गीकरण था वहीं दूसरे तरह का वर्गीकरण पत्रकारिता का नहीं बल्कि पत्रकारिता के विषयों का वर्गीकरण था। पत्रकारिता की पढ़ाई 19 वीं सदी के अंतिम वर्षों में शुरु हुई थी और 1900 तक सिर्फ दो पुस्तकें ही प्रकाशित हो पायी थीं। बीसवीं सदी के 20 की दशक में विख्यात अमेरिकी दार्शनिक और मानवशास्त्री जार्ज हर्बर्ट मीड ने सही दिशा में इसके वर्गीकरण की शुरुआत अपने एक आलेख में किया और कहा कि पत्रकारिता सिर्फ दो तरह की होती है – सूचनात्मक और कथात्मक। बाद में विख्यत अमेरिकी प्राध्यापक सर एडविन डायमंड, जो विख्यात टीवी शख्सीयत भी रहे, ने 1982 में नयी पत्रकारिता को डिस्को पत्रकारिता माना लेकिन उन्होंने ही बाद में कहा कि ऐसा कहना अतिरंजना थी। इस तरह उन्होंने भी दो तरह की पत्रकारिता पर ही रजामंदी जाहिर की जिनका प्रतिपादन हर्बर्ट मीड ने किया था।

लेकिन पत्रकारिता इतनी ही नहीं रह गयी है। सूचनात्मक पत्रकारिता में जहां एक ओर तथ्यों को ज्यों का त्यों रखा जाता है वहीं कथात्मक पत्रकारिता में सत्य को सौन्दर्य बोध के साथ कुछ इस तरह से पेश किया जाता है कि उसे समझना ज्यादा आसान हो जाये। स्पष्ट है कि साहित्य में कहानी का जो लक्ष्य है वही लक्ष्य कथात्मक पत्रकारिता का भी है, लेकिन कथात्मक पत्रकारिता कला में कहानी की प्रस्तुति से अलग इसलिए है क्योंकि इसमें सूचनाओं को सटीक रखने का मौलिक कर्तव्य भी शामिल है। इसलिए शुरु में समझा यह गया था कि कहानी में जो कहानी का सार अंत में होता है उसे समाचारों में सबसे पहले रखा जाये और कहानी की तरह समाचार कहने के पहले कोई भूमिका न बनायी जाये।
जॉन मिल्टन ने सैमसन और डेलिला की जो कहानी कही उसके नाट्यरुपांतर में जब एक सूचनादाता सैमसन के पिता को समाचार सुनाने के पहले भूमिका बांधने लगता है तो उसे वह कहते हैं कि रहस्य और विलंबित संप्रेषण सूचना के लिए ही घातक है। फिर वह सूचनादाता उन्हें सीधे सीधे बताता है कि सैमसन मर चुका है। उसके बाद कब, कैसे, क्यों, कहां, कौन, कब आदि बातें भी बताता है।
जो भी हो, बात यहीं तक नहीं रही है। आधुनिक पत्रकारिता सिर्फ सूचनात्मक और कथात्मक ही नहीं है। काफी समय से इसमें रेखाचित्रों, छायाचित्रों, कार्टूनों, ग्राफों, आदि का प्रयोग भी होता रहा है। इस तरह पत्रकारिता का स्वरुप विस्तारित हो गया। इंटरव्यू और परिचर्चाओं ने पत्रकारिता को इंटरेक्टिव बना दिया जिसमें पत्रकारों के अलावा अन्य लोग भी शामिल होते हैं। इस तरह पत्रकारिता में दो और वर्गीकरण सामने आ गये – मिश्रित पत्रकारिता और इंटरेक्टिव पत्रकारिता।
बीसवीं सदी में रेडियो और टेलिविजन में समाचारों की प्रस्तुति में शैली की भिन्नताओं, आर्क लाइट, छवियों का आना और जाना, ट्यून आदि ने पत्रकारिता में एक और वर्गीकरण को आवश्यक बना दिया। जिस तरह नाटकों का मंचन परफोर्मेंस आर्ट हो गया उसी तरह समाचारों की प्रस्तुति परफोरमेंस जर्नलिज्म हो गयी है। हम समाचारों को मंचित करने लग गये हैं।
इस तरह पत्रकारिता के पांच भेद हो गये हैं – इन्फोर्मेशन जर्नलिज्म, स्टोरी फॉर्म ऑफ जर्नलिज्म, मिक्स्ड फॉर्म ऑफ जर्नलिज्म, इंटरेक्टिव जर्नलिज्म और परफॉर्मेंस जर्नलिज्म।
अन्य सभी वर्गीकरण इन्हीं पांचों भेदों में अनिवार्यत: आते हैं। माध्यमों के अनुसार पत्रकारिता का वर्गीकरण गलत होगा ठीक उसी प्रकार जैसे बोतलबंद पानी कहना पानी का एक भेद नहीं बल्कि पानी जिस पात्र में है उसका वर्गीकरण करना है। समाचार जिन पात्रों में है उन पात्रों का वर्गीकरण – प्रिंट, रेडियो, टेलिविजन, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक आदि – समाचार को धारण करने वाले पात्रों का ही वर्गीकरण है न कि पत्रकारिता का।
पत्रकारिता के वर्गीकरण में विषयों – फिल्म, खेल, विधि, अपराध, विज्ञान को विशेषण के रुप में पत्रकारिता के साथ जोड़ देने से कुछ समस्याएं हल हो जाती हैं लेकिन ये भी अनिवार्यत: या तो सूचनात्मक होंगे या कथात्मक, इंटरेक्टिव होंगे या परफॉर्मेंस या मिश्रित।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पत्रकारिता में सत्य को ही प्रकाश में लाने की मूल परिकल्पना होती है लेकिन इसमें अनेकानेक पत्रकार असत्य को ही सत्य की तरह प्रस्तुत करते पाये जाते हैं। संभवत: पीत पत्रकारिता जैसे पारिभाषिक शब्द भी इसी कारण प्रचलित हैं। लेकिन असत्य को पेश करना पत्रकारिता में मान्य नहीं है और इन्हें पत्रकारिता की श्रेणी में ही नहीं रखा जा सकता। इसी तरह रचनात्मक, सकारात्मक, सनसनीखेज आदि वर्गीकरण भी पत्रकारिता का वर्गीकरण नहीं बल्कि उसके प्रभावों का वर्गीकरण है। कुछ विद्वानों ने पत्रकारिता में रचनाधर्मिता की बात कही है और इस संदर्भ में कार्टून तथा कमेंटरी आदि का उल्लेख करते हैं। लेकिन वे इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं कि ऐसी पत्रकारिता रचनाधर्मिता से ज्यादा विश्लेषनात्मक टिप्पणियां हैं।
दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के अध्ययन – अध्यापन और अनुसंधान में पत्रकारिता के पुराने भेदों के बदले नये बदलाव के अनुरुप पाठ्यक्रम बनाये जाने की आवश्यकता को इस संदर्भ में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।#