उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भ्रष्टाचार के निजी आरोल लगे थे। मनमोहन सिंह पर भ्रष्टाचार में निजी तौर पर शामिल होने का आरोप तो नहीं लगा है, लेकिन उन पर आरोप तो लग ही रहे हैं कि वे भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं। यह आरोप इसलिए बहुत ज्यादा संगीन हो गया है, क्योंकि मनमोहन सिंह सरकार एक साथ भ्रष्टाचार के जितने आरोपों का सामना कर ही है, उतने आरोप एक साथ किसी सरकार पर अब तक नहीं लगे।

खाद्य मंत्रालय में भ्रष्टाचार के आरोप सरकार पर लगे और कहा गया कि उनके कारण जरूरत की अनेक सामानों की कीमतें बढ़ीं। फिर आइपीएल में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उसके कारण एक मंत्री को सरकार से जाना पड़ा और दो मंत्रियों के भी भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोपों का सरकार प्रभावी तरीके से खंडन नहीं कर पाई। राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार की श्रृंखलाओं के होने के आरोप लगे। सुरेश कलमाड़ी ही नहीं, बल्कि, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, केन्द्र के कई मंत्रियों, डीडीए, और दिल्ली के उपराज्यपाल भी भ्रष्टाचार के आरोपों के दायरे मं आ गए हैं। सुरेश कलमाड़ी के अलावा अन्य किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई होती नहीं दिखाई पड़ रही है।

राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों के छींटे प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गए हैं। पूरे मंत्रिमंडल को आरोपों के घेरे में ले लिया गया है, क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान किए गए अनाप शनाप खर्चें की स्वीकृति केन्द्रीय मंत्रिमंडल की थी। राहुल गांधी तक को इसमें लपेटा गया और कहा गया कि उनके राजनैतिक सचिव कनिष्क सिंह के एक रिश्तेदार को खेलगांव के निर्माण का ठेका दिया गया, जिसमें 2200 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया।

यानी बोफोर्स के दिनों से भी कांग्रेस के लिए हालत खराब दिखती है। उसका पूरा नेतृत्व सवालों के घेरे में खड़ा हो गया है और उसके नेतृत्व के पास एक भी सवाल को कोई जवाब नहीं है। सीवीसी की नियुक्ति के मामले मे खुद सरकार ने अपने आपको फंसा लिया है। प्रधानमंत्री के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि उन्होंने एक ऐसे अधिकारी को भ्रष्टाचार रोकने वाली एजेंसी की निगरानी के लिए क्यों नियुक्त किया, जिसके खिलाफ खुद भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। प्रधानमंत्री यह भी नहीं कह सकते कि उन्हें उस अघिकारी के अतीत के बारे में जानकारी नहीं थी, क्योंकि नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल लोकसभा मे प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने नियुक्ति का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री को उनके बारे में सबकुछ बता दिया था।

दिल्ली में मंत्रियों के बंगलों और सांसदों के रिहायशी इलाकों में कुछ ऐसे होर्डिंग लगाए गए हैं, जिनमें कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं की ओर से मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद से हटाने की मांग की गई है और उनकी जगह प्रणब मुखर्जी को सरकार का नेतृत्व करने की बात की गई है। बहुत संभव है कि यह होर्डिग किसी कांग्रेस विरोधी की शरारत हो, लेकिन कांग्रेसी नेता भी अब बातचीत में यह मानने लगे हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के संकट की इस घड़ी में सरकार को सही नेतृत्व देने में सफल नहीं हो रहे हैं। वे एक लाचार प्रधानमंत्री के रूप में दिखाई दे रहे हैं, जिनके पास आरोपों का खंडन करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसके कारण कांग्रेस की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान पहुच रहा है।

मीडिया घराने भ्रष्टाचार के मामलों को उछालने में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, क्योंकि उनके अपने अंदरूनी सर्वेक्षणों से पता चल रहा है कि लोग इन मामलों की खबरों में जबर्दस्त रुचि ले रहे हैं। जाहिर है कि केन्द्र सरकार के भ्रष्ट होने की बातें लोगों के गले के नीचे उतर गई है। और मीडिया संस्थान बाजार पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए इस तरह की खबरों को सामने लाने मे एक दूसरे से होड़ करते रहेंगे। (संवाद)