मध्यावधि चुनाव की कोई आशंका नहीं
चुनाव के लिए कोई भी तैयार नहीं
कल्याणी शंकर - 2010-12-18 11:43
क्या लोकसभा के मध्यावधि चुनाव की संभावना बन रही है? जब यह सवाल भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार का एक मंत्री इस तरह की बात को हवा देने में लगे हुए हैं। उनका उद्देश्य विपक्ष के सांसदों को डराना है ताकि विपक्ष में फूट पड़ जाए।
सवाल उठता है कि क्या वास्तव में देश की राजनैतिक पार्टियां चुनाव के लिए तैयार हैं? इसका एकमात्र जवाब है नहीं। न तो सत्तारूढ़ दल और न ही विपक्षी दल इस समय चुनाव के लिए तैयार हैं। इसका कारण है कि चुनाव के अभी मात्र डेढ़ साल ही हुए हैं। इतने कम समय के बाद आज चुनाव कौन चाहेगा?
आडवाणी का कहना बिल्कुल सही है कि मध्यावधि चुनाव की बात चलाकर सत्तारूढ़ यूपीए विपक्ष के सांसदों को डराना चाहता है। यूपीए पर खुद भारी राजनैतिक दबाव पड़ रहा है। पूरा का पूरा शरदकालीन सत्र बिना किसी काम काज के समाप्त हो गया है। संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी कोई काम नहीं हुआ। विपक्ष जेपीसी की जांच से पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ और केन्द्र सरकार ने भी जेपीसी जांच नहीं करवाने के अपने संकल्प में किसी प्रकार की कमजोरी पैदा नहीं होने दी। सरकार का संकल्प अपनी जगह कायम है और विपक्ष की एकता अपनी जगह। सत्तारूढ़ यूपीए को इसी का डर सता रहा है। यदि 2 जी मसले पर चल रहा यह गतिरोध लंबा खिंचा, तो यूपीए की घटक पार्टियों को आने वाले महीनों मे होने वाले चुनावों में नुकसान पहुंच सकते हैं।
आने वाले कुछ महीनों में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम व केरल में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। आंध्र प्रदेश में भी राजनैतिक अस्थिरता के लक्षण हैं और चुनाव की संभावना वहां भी बन सकती है। इन सभी चुनावों में कांग्रेस व कुछ अन्य यूपीए की घटक पार्टियों का बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है। असम में कांग्रेस को फिर से सत्ता में आना है। केरल में उसके नेतृत्व वाले मोर्चे को सत्ता वामपंथी दलों से छीननी है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल की ममता बनर्जी सत्ता में आने का इंतजार कर रही हैं। तमिलनाडु में भी चुनाव होने हैं और वहां कांग्रेस और डीएमके को लोगों का सामना करना है। ऐसी हालत में 2 जी स्पेक्ट्रम मामले पर चल रहा यह हंगामा अगले बजट सत्र के दौरान भी चलता रहा, तो उसका असर विधानसभा आमचुनावों पर जरूर पड़ेगा और नुकसान यूपीए के घटक दलों को ही होगा। यही कारण है कि कांग्रेस विपक्ष में फूट डालकर इस मामले को यहीं शांत करना चाहती है। और इसी के लिए लोकसभा के मध्यावधि आमचुनाव का भय दिखाया जा रहा है।
दूसरी तरफ भाजपा जेपीसी जांच की मांग की आग को जिंदा रखने के लिए लड़ाई को संसद से सड़क पर ले जाने की घोषणा कर रही है। उसने आंदोलन के कुछ कार्यक्रम भी घोषित कर दिए है। शुरुआत रामलीला मैदान में 22 दिसंबर की रैली से होगी। यह एनडीए के बैनर के नीचे होगा। उसके बाद लुधियाना, जयपुर, रोहतक, लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर, भोपाल, अहमदाबाद, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में भी रैली की जाएगी। बंगलूर में रैली आयोजित करने का अभी तक कोई कार्यक्रम नहीं बना है।
भाजपा केन्द्र सरकार के खिलाफ अभियान तो चला रही है, लेकिन वह खुद यह नहीं चाहेगी कि लोकसभा का तुरत चुनाव हो जाए। उसकी अपनी हालत अच्छी नहीं है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है। संगठन गुटबाजी का शिकार है। इसके सामने नेतृत्व की समस्या भी बनी हुई है। हालांकि इसने बिहार में शानदार सफलता हासिल की है। जनता दल(यू) की अपेक्षा इसका नतीजा बेहतर रहा है। इसके 90 फीसदी उम्मीदवार चुनाव जीत गए, जो अपने आपमें एक रिकार्ड है। इसके बावजूद यह राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा के आमचुनाव का सामना करने के लिए तैयार नहीं है।
दूसरी तरफ यूपीए की मुख्य पार्टी कांग्रेस की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। अभी बिहार में उसको भारी सदमा पहुंचा है। उसे 243 में से मात्र 4 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। बिहार में उसकी उतनी बड़ी दुर्गति कभी हुई ही नहीं थी, जबकि चुनाव में उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। 2 जी स्पेक्ट्रम भ्रष्टाचार की जेपीसी जांच के लिए तो विपक्ष उसके खिलाफ मुहिम चला ही रहा है, राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार का सामना भी उसे करना पड़ रहा है। महंगाई के कारण मतदाताओं में उसके खिलाफ अलग से रोष है। ऐसी हालत में कांग्रेस मतदाताओं का सामना करने की स्थिति में नहीं है।
इसके अलावर राडिया टेप के कारण देश का कार्पोरेट सेक्टर भी कांग्रेस से नाराज है। उसकी सरकार से शिकायत है कि इस तरह की फोन टेपिंग की ही क्यों गई। ऐसे माहौल में यदि चुनाव होता है तो कांग्रेस के सामने फंड की समस्या भी आ सकती है। इसलि कांग्रेस किसी भी सूरत में इस वक्त लोकसभा चुनाव में नहीं जाना चाहेगी। (संवाद)