राजीव गांधी जिस समय यह बात कर रहे थे, उस समय संसद में उन्हें बहुत भारी बहुमत प्राप्त था, फिर भी पार्टी के अंदर के सत्ता के दलालों से वह उबर नहीं पा रहे थे। यही कारण है कि उन्हें अपने गुस्से को पार्टी के मंच से अभियुक्त करना पड़ा। अब जब कांग्रेस का दिल्ली महाधिवेशन हुआ, तो उस समय कांग्रेस उस समय की अपेक्षा बहुत ही कमजोर हालत में है। आज केन्द्र में खुद उसकी अपनी सरकार नहीं है, बल्कि वह एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है। गठबंधन सरकार को भी लोकसभा में सपष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हैं। सरकार अपने को बचाने के लिए जोड़ तोड़ और सीबीआई का सहारा लेते दिखाई पड़ती है। राज्य सभा में तो यह स्पष्ट रूप से अल्पमत में है और वहां जोड़ तोड़ कर भी अपना बहुमत प्राप्त नहीं कर पाती। यानी पार्टी कमजोर है और उस पर दलालों का तंत्र हावी हो गया है।

आज तो स्थिति ऐसी हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को ए राजा को इसलिए लताड़ना होता है कि उसने प्रधानमंत्री के आदेशो का उल्लंधन किया। सुप्रीम कोर्ट यह बात उस समय कर रही है, जब प्रधानमंत्री को अपने आदेश की अपने मातहत मंत्रियों द्वारा अवमानना की कोई चिंता नहीं है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। देवेगौड़ा ओर इन्द्रकुमार गुजराल को कमजोर प्रधानमंत्री माना जाता है, लेकिन उनके समय में भी ऐसा कभी नहीं हुआ था।

कांग्रेस के लिए आज राहत की बात सिर्फ इतनी है कि भ्रष्टाचार के चौतरफा आरोपों के बीच संगठन की ओर अंगुली नहीं उठ रही है। इसका कारण यह है कि संगठन ने सरकार से थोड़ी दूरी बना रखी है। वह सरकार के काम में अब सीधे दखल देती नजर नहीं आती, बल्कि बाहर से कभी कभी उसकी किसी खास मुददे पर शिकायत करती अथवा उसके किसी निर्णय पर टिप्पणी करती दिखाई पड़ती है।

राडिया टेप ने तो पूरी व्यवस्था को नंगा कर दिया है। इससे यूपीए सरकार की प्रतिष्ठा को भारी चोट पहुंची है और लगता है कि भ्रष्टाचार का कीड़ा सर्वव्यापी हो गया है। सरकार के सामने एक ऐसा संकट खड़ा हो गया है, जिससे वह तभी छुटकारा पा सकती है, जब वह कोई जबर्दस्त निर्णय ले और अपने अंदर व्यापक फेरबदल करे। भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच भाजपा के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का खेल कांग्रेस अथवा सरकार को कोई राहत देने वाला नहीं है।

कांग्रेस और सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना तो करना पड़ ही रहा है। उस पर एक और बड़ा आरोप लग रहा है वह यह है कि बड़े बड़े निर्णय अब खुद प्रधानमंत्री नहीं लेते, बल्कि अब वे निर्णय बड़े बड़े व्यापारिक घराने लेते हैं और विदेशी लॉबी तक भारत सरकार के निर्णयों को प्रभावकारी रूप में प्रभावित करने की क्षमता रखती है। सरकार को इस तरह के संदेहों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन वे ऐसा करती दिखाई ही नहीं पड़ रही है। वह मामले को सिर्फ टालना चाहती है। लेकिन वह ऐसा करने में सफल हो नहीं पाएगी। (संवाद)