सबसे पहले उनके कथन एवं स्पष्टीकरण पर नजर डालें। दिल्ली सिटी सेंटर के उद्घाटन कार्यक्रम में उनसे हाल में हुए सामूहिक बलात्कार एवं अपराध रोकने में पुलिस की विफलता संबंधी प्रश्न किया गया था। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि यद्यपि दिल्ली में अपराध घटा है, लेकिन दिल्ली में भारी संख्या में प्रवासी आते हैं। यहां भारी संख्या में अनधिकृत कॉलोनियां हैं। जो प्रवासी शहर के उत्तर पश्चिमी भाग में बसते हैं, वे कुछ ऐसे व्यवहार करते हैं जिन्हें आधुनिक शहर में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस कारण अपराध होते हैं। इन पंक्तियों में ऐसा कुछ नहीं है जिसका अर्थ अस्पष्ट हो। अपने स्पष्टीकरण में वे कहते हैं कि उन्होंने कहा था कि प्रवासी, अनधिकृत कालोनियों और कुछ व्यक्तियों के व्यवहार को इसके लिए दोषी समझा जा सकता है, जो अस्वीकार्य है। ये बातें दोनों समान हैं। केवल स्पष्टीकरण में कुछ व्यक्तियों के व्यवहार कहा गया है, जबकि मूल उत्तर में ऐसा नहीं है। उनके स्पष्टीकरण को भी स्वीकार कर लिया जाए तो वे मानते है कि प्रवासियों में से ही कुछ लोग अपराधों को अंजाम देते हैं। उनके अनुसार उन्होंने किसी राज्य, भाषा, जाति या धर्म के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी। उन्होंने प्रवासी शब्द का प्रयोग उन सभी लोगों के लिए किया जो दिल्ली में काम की तलाश में आते हैं, जिनमें वे खुद भी शामिल हैं। जैसा सामान्यतः होता है चिदम्बरम ने इसे संदर्भ से काटकर प्रवासी शब्द पर विवाद पैदा करने का कारनामा बता दिया।
चिदम्बरम दक्षिण भारत के हैं और उनकी पत्नी भी दिल्ली में वकालत करतीं हैं। इस नाते वे भी प्रवासी ही हैं। किंतु उन्हें भी यह पता है कि हाल के सालों में जब भी किसी प्रदेश या शहर की समस्या के लिए किसी प्रवासी वर्ग का उल्लेख किया जाता है तो उसका अर्थ एक विशेष भौगालिक क्षेत्र से आए लोग ही होते हैं। क्या चिदम्बरम मुंबई में राज ठाकरे द्वारा प्रवासियों के नाम पर बिहार, झारखंड एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को निशाना बनाने की कार्रवाइयां भूल गए थे? आखिर दिल्ली में इसके पूर्व भी इस प्रकार का बयान यहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर की ओर से आ चुका है। एक बार मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के माध्यम से भी ऐसा ही वक्तव्य आया था, जिसका उन्होंने खंडन किया। वास्तव मंे ऐसी सोच व मंशा रखने वाले चिदम्बरम अकेले नहीं है। निजी बातचीत मंे देश के अनेक नेता एवं नौकरशाह यह कहते हैं कि दिल्ली तो बाहर से आए लोगों द्वारा बरबाद हो रही है। बाहर से आए लोगों का अर्थ क्या है यह सभी जानते हैं। चिदम्बरम के क्षेत्र के लोगों को दिल्ली, मुंबई या अन्य जगहों पर खलनायक नहीं माना जाता। किसी समस्या के लिए जब भी इन दिनों प्रवासी शब्द का प्रयोग होता है उसका अर्थ बिल्कुल साफ होता है। इसलिए हम यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि चिदम्बरम ने अपराध के लिए प्रवासियों को जिम्मेवार ठहराने वाले बयान में किसी खास भौगोलिक क्षेत्र का ध्यान नहीं रखा होगा।
हालांकि दिल्ली में घटित अपराधांें का अधिकृत विश्लेषण चिदम्बरम की सोच को गलत साबित करता है। एक समय था जब दिल्ली में अधिकांश जघन्य अपराध पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा के अपराधी करते थे। किंतु उनमें से अधिकतर अपराधी या तो गिरफ्तार हुए या मार डाले गए। इसके बाद से दिल्ली के अपराध का भूगोल यहीं सीमित है। दिल्ली पुलिस का रिकॉर्ड बताता है कि इस वर्ष विभिन्न अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों में से 83 प्रतिशत दिल्ली के हैं और केवल 17 प्रतिशत बाहरी हैं। यह सामान्य चिंता की बात नहीं है कि गृह मंत्री को इसका पता तक नहीं, जबकि दिल्ली की कानून व्यवस्था का दायित्व गृह मंत्रालय का है और दिल्ली पुलिस उसके अधीन काम करती है। चिदम्बरम जैसे आंकड़ों के बादशाह माने जाने वाले नेता का यह स्वरूप किसी दृष्टि से हमंे राहत प्रदान करने वाला नहीं है। वैसे भी भारत देश के अंदर कोई भारतीय प्रवासी कैसे हो सकता है? ऐसा शब्द प्रयोग ही आपत्तिजनक होना चाहिए। अपराध अपराध है, उसे निवासी और प्रवासी के चश्मे से देखना या किसी भौगोलिक क्षेत्र को उसका स्रोत मानना उचित नहीं है। जहां तक दिल्ली का संबंध है तो यह देश की राजधानी है और इस नाते यहां हर भाग के लोग रहते हैं। कौन मूल निवासी और कौन प्रवासी है अगर इसकी छानबीन की जाए तो कई प्रकार की सामाजिक और सांप्रदायिक समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। अच्छा हो इस प्रकार की सोच की यहीं अंत्येष्टि कर दी जाए। इसी प्रकार अधिकृत और अनधिकृत बस्ती की अवधारण पर भी एक राय नहीं हो सकती। सरकारी परिभाषा के अनुसार तो यहां की आधी बस्ती भी पूर्ण अधिकृत नहीं मानी जा सकती। गृह मंत्री ने जितने सहज तरीके से ऐसा कह दिया उतना आसान नहीं है इसका निर्धारण। अगर उनकी मंशा यह है कि अनधिकृत बस्तियां नहीं होनी चाहिएं तो फिर देश का आर्थिक एंव राजनीतिक ढांचा बदलना होगा। आखिर कोई अपने क्षेत्र से, अपने परिवार से दूर यूं ही अनजाने स्थल पर जाना नहीं चाहता। व्यवस्था ने लोगों को उनके मूल स्थान पर आवश्यकताएं पूरी होने की स्थिति पैदा नहीं की तभी तो उन्हें मजबूर होकर अपने देश में ही प्रवासी बनना पड़ता है। यह किसकी विफलता है?
वास्तव में समस्या प्रवासी या निवासी नहीं, लोगों की बढ़ती कठिनाइयां एवं मजबुरियां हैं। दिल्ली में अपराध के आरोपों में गिरफ्तार लोगों का वर्गीकरण करंे तो इनमें से बहुसंख्य समाज के निचले तबके से आते हैं। गिरफ्तार व्यक्तियों में से केवल 11 प्रतिशत उच्च वर्ग के तथा करीब 22 प्रतिशत मध्यमवर्ग के हैं। इस तथ्य के बाद क्या अपराध के पीछे निजी, सामाजिक, स्थानिक कारकों का सच आईने की तरह नहीं झलकता? पुलिस का रिकॉर्ड यह भी बताता है कि पिछले साल 90 प्रतिशत अपराध वैसे लोगों ने किया जिनका वह पहला अपराध था। केवल 1.3 प्रतिषत अपराध ही उनके द्वारा किया गया जिन्हें आप अभ्यस्त अपराधी कह सकते हैं। 50 प्रतिशत अभियुक्त बीच में विद्यालय छोड़ने वाले हैं। इसके अलावा 22 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्होंने दसवीं पास की हैं। जरा सोचिए, विद्यालयी शिक्षा के बीच पढ़ाई छोड़ने वाले या 10 वीं के बाद शिक्षा ग्रहण नहीं करने वालांे में ज्यादातर किस तबके के नवजवान होंगे? तो सबकी जड़ गरीबी में है। अशिक्षा, सामाजिक पिछड़ापन, गंदी बस्तियां... आदि सब इसके प्रतिफल हैं। कुछ बड़े परिवारों के लोग भी अपराध करते हैं, कुछ अपराधों के पीछे आसानी से शानो-शौकत पाने की उत्प्रेरणा भी होती है, पर बहुसंख्य अपराध के पीछे गरीबी है और इसका स्वरूप काफी हद तक स्थानिक है। (संवाद)
चिदम्बरम का बयान और सफाई
ऐसी सोच का आधार ही गलत है
अवधेश कुमार - 2010-12-27 11:28
गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने अपने बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि विवाद खत्म करने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि मैं संबंधित प्रश्न पर अपना जवाब वापस ले लूं और मैंने वही किया है। चिदम्बरम एक बुद्धिमान राजनेता और वकील हैं और उन्होंने अपने वक्तव्य पर उठते गुब्बार को भांप लिया होगा, इसलिए ऐसा किया। लेकिन चिदम्बरम एक- एक शब्द सोच- समझकर बोलने वाले नेता हैं। कोई यदि तीव्र आक्रोश, क्षोभ या गुस्से की मनःस्थिति में नहीं हैं तो जो कुछ भी बोलता है वह उसकी सोच की ही अभिव्यक्ति होती है। कोई यह कह दे कि हमने अपना कहा वापस ले लिया उससे विवाद पर भले पूर्ण विराम लग सकता है, पर कई प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। ऐसा ही इस मामले में है। चिदम्बरम ने जो कहा क्या वह तथ्यों की कसौटी पर सच है? ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा क्या थी एवं इस मंशे का अर्थ क्या है?