केरल की राजनीति और खास करके केरल की कांग्रेसी राजनीति अब पहले की तरह नहीं रह पाएगी। पिछले 7 दशकों से राज्य की राजनीति के करुणाकरण के साये के नीचे हो रही थी।

करुणाकरण एक ऐसा नेता थे, जिनकी छवि बहुत तेजी से निर्णय लेने वाले औरउतनी ही तेजी से उसे अमल में लोने वाले प्रशासक की थी। अपनी इस छवि के अनुरूप वे काम भी करते थे।उनके निधन के बाद सबसे पहले तो राज्य की कांग्रेस के अंदर फिर से नए समीकरण बनने लगेंगे।

फिलहाल केरल की कांग्रेस के अंदर दो ताकतवर गुट हैं। एक गुट तो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चेनिंथाला का है और दूसरा गुट विधानसभा में विपक्ष के नेता ओमेन चांडी का है। दोनों गुट की कोशिश रहेगी कि वे करुणाकरण के समर्थकों को अपने साथ लाने में सफल हों।

एक संभावना यह भी है कि करुणाकरण से जुड़े रहे लोग दोनों में से किसी भी गुट से जुड़ने से इनकार कर दें और अपनी बलग पहचान बनाएं रखें।

गुटों के बीच चली इस प्रतियोगिता का परिणाम चाहे जो कुछ भी कांग्रेस के लिए करुणाकरण का महाप्रस्थान काफी मायने रखता है, क्योंकि अगले 5 महीनों के अंदर ही वहां विधानसभा के आमचुनाव होने वाले हैं।

यह देखा जाना भी बाकी है कि करुणाकरण के बेटे मुरलीधरण की कांग्रेस में वापसी हो पाती है अथवा नहीं। गौरतलब है कि करुणाकरण अपने बेटे को कांग्रेस में वापस करवाने की बहुत कोशिश कर रहे थे, जिसमें जीते जी वे सफल नहीं हो पाए।

मुरली ने अपनी कांग्रेस में वापसी का एक मजबूत आधार तैयार भी कर लिया है। उन्होंने हाल ही में संपन्न स्थानीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस का पूरे मन के साथ साथ दिया और पार्टी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पार्टी के अंदर के कुछ लोग मुरली को वापस लेने की वकालत कर रहे हैं। लेकिन उनकी वापसी के बारे में अंतिम निर्णय लेने में केन्द्रीय रक्षा मंत्री ए के अंटोनी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, क्योंकि दिल्ली में आलाकमान के ऊपर उनका अच्छा प्रभाव है। (संवाद)