सोनकर जब अध्यक्ष थे तो सरकारी बैंको के अध्यक्षो को पत्र लिख कर पूछते थे कि आप के यहां अनुसूचित जाति,जनजाति के इतने कर्मचारियों की भर्ती नहीं हुई । आपके यहां इन जातियों के कर्मचारियों के साथ भेद-भाव करने की बहुत शिकायत आ रही है। क्यों नही आपके विरूद्ध कार्रवाई की जाय। तब आरोप लगा था कि यह धमकी देकर उन मैनेजरो को दबाव में लेकर वसूली का खेल होता है।
इसी तरह कुछ बड़ी प्राइवेट कम्पनियो में यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन -जाति के कर्मचारी हैं और उनके किसी बड़ी गलती पर कोई नोटिस दिया जाता है तो वह कर्मचारी प्रबंधन के खिलाफ आयोग में शिकायत कर देता है।जिसे आधार बनाकर आयोग के अध्यक्ष और उसके कारिंदे उस कम्पनी या फैक्ट्री के मालिक के खिलाफ लगभग दलित एक्ट में जेल भेजने की नोटिस भेजवाते हैं । उस नोटिस के बाद प्रबंधक या मालिक से सौदेबाजी शुरू हो जाती है।
सूत्रो के मुताबिक इसमें प्रमुख भूमिका अध्यक्ष के पी.एस. आदि की रहती है।बताया जाता है कि सोनकर के समय उनका पी.एस. चन्द्रशेखर राय,उसका एक रिश्तेदार,स्टाफ के एक सिख कर्मचारी और डा.त्रिपाठी की इसमें प्रमुख भूमिका रहती थी। सूत्रो के मुताबिक बाद में तो यह एक रैकेट की तरह काम करने लगा। ऊगाही के लिए छोटे,मझोले उद्योगपतियो,कुछ बड़े उद्योगपतियों के कर्मचारियों से मालिको या प्रबंधन के खिलाफ आयोग में शिकायत दर्ज कराई जाने लगी,और उस शिकायत के आधार पर उद्योगपतियों को चंगुल में लेकर सौदेबाजी शुरू हो जाती है। विजय सोनकर शास्त्री ने अपने जीतने प्राइवेट सेक्रेटरी बनाये थे, यदि उन सबको सी.बी.आई. हिरासत में लेकर पूछताछ करे तो इसका खुलासा हो सकता है।
तरह-तरह के आरोप के चलते विजय सोनकर शास्त्री को जब आयोग के अध्यक्ष पद से हटाया गया और आयोग का दो फाड़ करके अनुसूचित आयोग अलग बनाकर उसका अध्यक्ष सूरजभान को बनाया गया तो उन्होने विजय सोनकर के ही प्राइवेट सेक्रेटरी व ज्यादेतर दलाल स्टाफ को अपना स्टाफ बना लिया।जिसके चलते उनके समय में भी ऊगाही का खेल चलते रहने का आरोप लगा।सूरजभान के बाद बूटा सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। जिसने सोनकर के समय से चले आ रहे तथाकथित डीलर चन्द्रशेखर को तो अपने स्टाफ में नही रखा,लेकिन डा.त्रिपाठी को रख लिया।जो एक माह पहले तक तो उसके स्टाफ में थे।
इस बारे में भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे का कहना है कि इस पूरे रैकेट की जांच होनी चाहिए।इसके लिए कई पूर्व अध्यक्षो के जो भी चर्चित दलाल प्रकृति के व्यक्ति लगातार स्टाफ रहे हैं उनसे भी पूछताछ की जानी चाहिए।तभी लंबे समय से चल रहे इस ऊगाही के धंधे का कच्चा चिट्ठा पूरी तरह खुल सकेगा। बूटा सिंह ने 15 वीं लोकसभा का चुनाव लड़ते समय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था या नहीं,दिया था तो स्वीकार हुआ था या नहीं, इसकी भी जांच कराने की मांग की है। #
क्या राअजाआ उद्योगपतियों को फंसाकर ऊगाही का केन्द्र हो गया है?
बूटा लो.स.चुनाव लड़ते समय आयोग से इस्तीफा दिये थे या नहीं,जांच की मांग
कृष्णमोहन सिंह - 2009-08-07 09:51
नई दिल्ली। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग काली कमाई का केन्द्र बन गया है। विजय सोनकर शास्त्री जब राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-अनुसूचित जन-जाति आयोग के अध्यक्ष थे, तब से यह परवान चढ़ा। उस समय सोनकर ने वही सब हथकंडे अपनाने शुरू किये थे जो अब इतना बड़ा रूप ले लिया कि इस आयोग के अध्यक्ष के सगे पुत्र ही केवल एक पार्टी से 3 करोड़ रूपये तक की ऊगाही करने लगे।