लेकिन अब कांग्रेस ने भी अपनी तरफ से जवाब देना शुरू कर दिया है। वह न केवल जवाब देने लगी है, बल्कि खुद भी अब आक्रामक होकर वाम मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए बाध्य करने लगी है।

केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने मुख्यमंत्री भट्टाचार्य को राज्य की कानून व्यवस्था के मसले पर पत्र लिखकर आक्रामक रुख अपनाया और उसके बाद तो पश्चिम बंगाल की सरकार ही नहीं, बल्कि बल्कि सत्तारूढ़ दलों के नेताओं में भी हलचल मचने लगी। बात पी चिदंबरम तक ही सीमित नहीं रह गई है। केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी वामदलों के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना लिए हैं।

पी चिदंबरम माओवादी समस्या को लेकर पश्चिम बंगाल पर पहले से ही बयानबाजी करते रहे हैं, पर प्रणब मुखर्जी ने जो अपना नया तेवर दिखाया है, वह वामपंथी नेताओं के लिए नया लगता है। इसका कारण यह है कि श्री मुखर्जी पिछले कई महीनों से पश्चिम बंगाल को लेकर इस तरह के बयान नहीं दे रहे थे।

तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने देश की सबसे बड़ी पार्टी के खिलाफ शिकायत के लहजे में बात करना अपना प्रिय शगल बना लिया था। राहुल गांधी तक को सुश्री ममता बनर्जी ने नहीं छोड़ा था। पश्चिम बंगाल में जब राहुल गांधी अपना अभियान चला रहे थे, तो उन्हें ममता ने मौसमी पक्षी कह दिया था, जो खास मौसम में ही कूकता है और उन्हें डुमरी का फूल तक कह डाला था, जो कभी कभी ही दिखाई पड़ता है। उस समय भी कांग्रेस चुप रह गई थी।

देश की सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ ममता बनर्जी अपने तेवर दिखाते रही हैं। वह बीच बीच में यह भी संकेत देती रहती हैं कि कांग्रेस के बिना भी वह चुनाव में जा सकती हैं। 2009 में लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र सरकार के अंदर दबाव बनाती रही है कि राज्य में विधानसभा का चुनाव जल्द हो और नियत समय का इंतजार नहीं किया जाए। कांग्रेस द्वारा उनकी इस मांग को नहीं माने जाने पर वह लगातार अपना विक्षुब्ध रवैया दिखाती रही है।

लेकिन अब कांग्रेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वहां चुनाव अपने समय पर ही हांेगं। अब तृणमूल को इस बात से कोई परेशानी भी नहीं है, क्योंकि वह तय समय अब सिर पर आ गया है और उस समय सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं, बल्कि कुछ अन्य प्रदेशों में भी चुनाव होने वाले हैं।

तृणमूल कांग्रेस यदि आज कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक नहीं है, तो इसका कारण यही है कि उसे भी उसका महत्व पता है और उसे आखिरकार उसके साथ मिलकर ही चुनाव लड़ना है। ममता बनर्जी की पार्टी की जीत के लिए माओवादियों द्वारा उसे मिला समर्थन भी एक बड़ा फैक्टर रहा है, लेकिन अब माओवादी भी ममता बनर्जी के खिलाफ बोलने लगे हैं। उनके एक नेता ने साफ कहा है कि उन्हें मूर्ख नहीं समझा जाए और यह नहीं बताया जाय कि केन्द्र की सरकार निर्णय लेने के पहले ममता बनर्जी से सलाह मशविरा नहीं करती। जाहिर है, बदले माहौल में राज्य की सत्ता पर कब्जा पाने के लिए ममता बनर्जी के लिए कांग्रेस का महत्व बढ़ गया है। कांग्रेस भी इस बात को समझती है। और यही कारण है कि अब कांग्रेस के नेता पश्चिम बंगाल की अपनी राजनीति को लेकर ज्यादा आत्मविश्वास से भरे दिखाई पड़ रहे हैं। (संवाद)