भ्रष्टाचार को राजनैतिक मसला बनाने में कांग्रेस ने भी अपने आपको किसी से पीछे नहीं रखा है। उसने बुराड़ी के अपने सम्मेलन में भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता को देश के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौती करार दिया। सोनिया गांधी सम्मेलन के दौरान पांच सूत्री कार्यक्रम लेकर आईं, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि वे 2 जी स्पेक्ट्रम की बिक्री के मसले पर संसद की पब्लिक एकाउंट कमिटी के सामने उपस्थित होने के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने बाद में पत्र लिखकर पीएसी के सामने हाजिर होने की अपनी इच्छा का इजहार भी कर दिया। बजट सत्र में लोकपाल बिल लाने की उन्होंने घोषणा भी कर दी है।

लेकिन इस सबके बावजूद कांग्रेस चैन की सांस नहीं ले सकती, क्योंकि विपक्ष उसके खिलाफ लामबंद है और मीडिया मंे भ्रष्टाचार के नए नए किस्से सामने आ रहे है। न्यायपालिका भी भ्रष्टाचार के मामले को लेकर सक्रिय हो गया है। मुख्य सतर्कता आयुक्त के रूप में पी जे थामस की नियुक्ति प्रधानमंत्री के गले का फंदा बन गई है। महंगाई के मोर्चे पर भी देश का बुरा हाल है और उसके लिए कांग्रेस की छवि को झटका लग रहा है। सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं और सभी आवश्यक उपभोग की वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं।

गौहाटी में हुए अपनी कार्यकारिणी की बैठक में भारतीय जनता पार्टी ने भी भ्रष्टाचार के मसले को अपना मुख्य राजनैतिक मसला बनाने का निर्णय किया है। कांग्रेस को निशाना बनाते हुए वह दोतरफा रणनीति अपना रही है। एक तरफ तो बोफोर्स मसले पर वह सोनिया गांधी को निशाना बना रही है, तो दूसरी तरफ 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निशाना बना रही है। प्रधानमंत्री को निशाना उनकी लाचारी को लकर बनाया जा रहा है।

भाजपा का नेतृत्ववाला राजग और वामपंथी पार्टियां भ्रष्टाचार पर हंगामा करते हुए सुर से सुुर मिला रही है। संक्षेप में कहें तो सारे विपक्ष की कोशिश भ्रष्टाचार के मसले पर तापक्रम बढ़ाए रखने की है, ताकि विधानसभाओं के आमचुनाव को इस मसले से प्रभावित किया जा सके।

क्या भ्रष्टाचार को लेकर विभिन्न पार्टियों के नेता वाकई में गंभीर हैं? उनकी गंभीरता पर सवाल उठाने वाले लोग भी इस बात का स्वागत कर रहे हैं कि कम से कम इस मसले पर चिंता तो व्यक्त की जा रही है। इसके कारण वे एक दूसरे के भ्रष्टाचार पर लगाम तो लगाकर रख सकते हैं। लेकिन सच यह भी है कि जुबानी जमाखर्च से बात नहीं बनने वाली। भाजपा का उदाहरण सामने है। वह कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के लिए हमला कर रही है, लेकिन उसकी पार्टी की सरकार के मुखिया कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदुरप्पा पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं जिनका कोई जवाब उनके पास नहीं है। पर भाजपा नेतृत्व उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा।

भ्रष्टाचार में शामिल होने वाले आरोपियों के खिलाफ कांग्रेस ने कुछ कार्रवाई अवश्य की है। ए राजा को सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, हालांकि उनके खिलाफ अभी तक कोई मुकदमा नहीं दायर किया गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चौहान को भी हटा दिया गया है, पर उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाया गया है। सुरेश कलमाड़ी को भी पार्टी के एक छोटे से पद से हटा दिया गया है।

कांग्रेस के अन निर्णयों के बावजूद विपक्ष का विरोध कम नहीं हुआ है, बल्कि वह दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। विपक्ष 2 जी और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार की जांच जेपीसी से करवाने की मांग कर रहा है और केन्द्र सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। फिलहाल भ्रष्टाचार के मसले पर केन्द्र सरकार और विपक्ष के बीच खींचतान का मुख्य कारण यही है।

भ्रष्टाचार के इस शोर में कांग्रेस की स्थिति निश्चय ही सबसे खराब हो रही है। वह इस पर रक्षात्मक होने के बदले आक्रामक होती दिखाई पड़ रही है और भाजपा को यदुरप्पा के खिलाफ कार्रवाई करने की चुनौती दे रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की स्वच्छ छवि के पीछे भी यह अपना चेहरा छिपाने की कोशिश कर रही है। उसके इस प्रयास में खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि भी खराब हो रही है। उन पर अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार का मुखिया होने का आरोप लगने लगा है, जिसे धोना कांग्रेस की वश की बात नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऊपर भ्रष्ट लोगों को बचाने का आरोप भी लग रहा है। इन आरोपों के बीच उनकी अपनी स्वच्छ छवि लगातार धंुधली होती जा रही है। (संवाद)