2014 लोकसभा चुनाव में अपने बूते बहुमत लाने के लिए कांग्रेस को बिहार झारखंड में बेहतर प्रदर्शन करने के अलावा उत्तर प्रदेश में भी अपनी स्थिति में सुधार करना होगा। वैसे लंबे समय तक वहां चौथे नंबर की पार्टी के रूप में रहकर कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में 22 सीटें हासिल कर राज्य की पहली तीन पार्टियों में अपना स्ािान बना लिया। फिरोजाबाद उपचुनाव में राजबब्बर की जीत के बाद लगा कि कांग्रेस वहां की दो पहली पार्टियों में शामिल हो गई है। पहली दो पार्टियो में उसका शामिल होना इसलिए महत्वपूर्ण है कि जब मतों का घ्रुवीकरण हो घ्रवों पर होता है, तो फिर तीसरे और चौथे नंबर की पार्टी की भारी भद्द पिट जाती है।

लेकिन फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बाद उत्तर प्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों के उपचुनावों ने यह साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की दो सबसे ताकतवर पार्टियां बसपा और सपा ही हैं। कांग्रेस भाजपा के साथ तीसरे और चौथे नंबर की पार्टी बनने के लिए अभी भी संधर्ष कर रही है। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का मिशन 2012 खतरे में पड़ता दिखाई पड़ रहा है। गौरतलब है कि राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश मिशन 2012 वहां के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभारने की है और इस मिशन को पूरा करने के लिए श्री गांधी हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

पर उत्तर प्रदेश की राजनीति अब राहुल के लिए बिहार के रास्ते पर जाती दिखाई पड़ रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता वहां के लिए अब बीते दिनों की बात नजर आ रही है। राहुल गांधी का वहां का अभियान पहले निर्विघ्न संपन्न हो जाता था। अपनी इच्छानुसार वे किसी दलित बस्ती में पहुंच जाते थे और दलितों के साथ कुछ समय बिताकर दिल्ली लौट जाते थे। उनकी बाहबाही होती थी। उसी तरह वे छात्रों को संबोधित करने के लिए उनके अध्ययन के संस्थानांें में पहुंच जाते थे और वहां अपना व्याख्यान देकर लौट आते थे। वहां भी उन्हें सिर्फ बाहबाही ही मिलती थी। देश की दशा अथवा दुर्दशा के लिए उनसे कोई सवाल नहीं पूछता था। केन्द्र की सरकार क्या कर रही है और क्या नहीं कर रही है, उसे बताना वे जरूरी नहीं समझते थे और कोई उनसे इसके बारे में पूछना भी जरूरी नहीं समझता था।

पर अब हालात बदल गए हैं। अब पहले की तरह राहुल गांधी का युवाओं के साथ संवाद एकतरफा नहीं रह गया। यह अब दुतरफा हो गया है। युवाआंे और छात्रांे के अनेक सवालों का जवाब उनके पास नहीं है। वे जवाब से बचते हैं, तब भी अपनी स्थिति कमजोर करते हैं और कमजोर जवाब देकर भी अपनी स्थिति कमजोर ही कर लेते हैं। आज महंगाई और भ्रष्टाचार देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं हैं। देश के जनमानस को ये दो समस्याएं आज जितना उद्वेलित कर रही है, उतना उद्वेलित आतंकवाद भी नहीं कर रहा है। इन दोनों मामलोे में कांग्रेस ही चौतरफा आक्रमण का सामना कर रही है। कांग्रेस के नेता होने के नाते राहुल गांधी को इन दोनों पर जवाब देना आवश्यक है, लेकिन उनके पास जवाब देने के लिए कुछ है ही नहीं और यदि वे जवाब देने भी लगें, तो अपने लिए कोई नई समस्या खड़ी कर लेते हैं।

एक उदाहरण महंगाई पर दिए गए उनके बयान का है। उन्होंने कह डाला कि महंगाई गठबंधन सरकार की मजबूरी है। लोगों को वह इस जवाब से संतुष्ट तो नहीं कर पाए, लेकिन यूपीए के अंदर एक विवाद जरूर खड़ा हो गया। लोगों को पता है कि अटन बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भी गठबंधन की सरकार 6 साल तक चली थी। तब तो महंगाई इतनी ज्यादा नहीं थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के समय ही इतनी महंगाई क्यांे है। उसी तरह 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले पर भी बोलने के लिए राहुल गांधी के पास कुछ भी नहीं है।

सवाल उठता है कि जब देश क ज्वलंत मसलों पर बोलने के लिए राहुल गांधी के पास कुछ है ही नहीं, तो फिर वे दलितों और युवाओं के पास किस तरह का संवाद करेंगे? उत्तर प्रदेश की विपक्षी पार्टियांें को राहुल गांधी की इस कमजोरी का अहसास हो गया है, इसलिए अब उन्होने अपनी युवा इकाइयों को राहुल गांधी से कैफियत तलब करने के लिए लगा दिया है। पिछले दिनों राहुल गांधी की उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान समाजवादी पार्टी की युवा इकाई और कुछ वामपंथी छात्र संगठनों का विरोध प्रदर्शन इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यदि देश क हालात अच्छे होते। देश में इतनी महंगाई नहीं होते। भ्रष्टाचार के मामले नहीं होते, तो राहुल गांधी के खिलाफ होने वाला विरोध प्रदर्शन अंततः कांग्रेस को ही फायदा पहुंचाता और लोगों को लगता कि कुछ विरोधी पार्टियां बेवजह एक शरीफ और बेदाग युवा नेता को परेशान कर रही हैं।

पर आज वैसी हालत है नहीं। हालत तो यह है कि यदि उन विरोध प्रदर्शनों के सामने राहुल गांधी भागते नजर आएंगे, तो इससे यही साबित होगा कि उनके पास उन विरोधों का सामना करने का नैतिक साहस है ही नहीं। इसके कारण उनका अभियान उनकी पार्टी के खिलाफ ही जाएगा। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी विपक्ष की मुख्य भूमिका में है। मायावती से सत्ता छीनने तक सपा ही वहां अपने आपको विपक्ष की मुख्य भूमिका में रखना चाहेगी। जाहिर है राहुल गांधी को मायावती से पहले मुलायम को परास्त करना होगा और पहले कांग्रेस को वहां मुख्य विपक्षी की भूमिका में लाना होगा। समाजवादी पार्टी उन्हें वैसा करने क्यों देगी? यही कारण है कि उसकी युवा इकाई ने राहुल के अभियान पर ही हमला बोल दिया है।

लिहाजा उत्तर प्रदेश के मिशन 2012 को सफल बनाने के लिए राहुए गांधी को महंगाई और भ्रष्टाचार की दो राष्ट्रीय समस्याओं पर अपनी पार्टी कांग्रेस को पहले पाक साफ दिखाना होगा। केन्द्र सरकार जब तब महंगाई को अंकुश में नहीं लगाती और भ्रष्टाचार की जांच और भ्रष्ट लोगों को दंडित करने की कठोर कार्रवाई करती नहीं दिखाई देती, तबतक राहुए गांधी का मिशन यूपी पार्टी के ऊपर ही भारी पड़ता दिखाई देगा। (संवाद)