जिन्ना साहब का पहला विवाह सोलह साल की उम्र में ही चौदह साल की इमीबाई के साथ हो गया था। पर अपनी इस पत्नी के साथ वे रह नहीं सके। शादी के तुरंत बाद वे एक नौकरी के सिलसिले में इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। जिन्ना जब इंग्लैंड में थे, तभी भारत में इमीबाई की मृत्यु हो गई। वे जब इंग्लैंड गए थे, तब उनका नाम था – मुहम्मद अली जिणाभाई। यही उनका मूल और पारिवारिक नाम था (उनके पता का नाम था, जिणाभाई पोंजा)। वोलपर्ट के अनुसार, लंदन में जिन्ना ने अपने नाम का अंग्रेजीकरण कर लिया। अब वे एम.ए. जिन्ना हो गए।

जिन्ना का दूसरा विवाह उस समय के उद्योगपति सर दिनशॉ पेतित, जिन्होंने मुंबई में भारत की पहली कपड़ा मिल लगाई और जो जिन्ना के मुवक्किल थे, की हूर जैसी बेटी रत्तनबाई (रत्ती) से हुआ। यह प्रेम विवाह था। दोनों तरफ थी आग बराबर लगी हुई। रत्ती को ‘बंबई का गुल’ कहा जाता था। शादी में रुकावट की एक बड़ी वजह यह थी कि रत्ती पारसी थी और जिन्ना मुसलमान थे। रत्ती के पिता के मन की टोह लेने के लिए जिन्ना ने एक बार उनसे पूछा – अंतर-धार्मिक विवाहों के बारे में आपका क्या खयाल है? सर दिनशॉ का मासूम सा जवाब था – इससे राष्ट्रीय एकता कायम करने में काफी मदद मिलेगी और इसके कारण धर्मों के बीच आपसी मनमुटाव का हल भी निकल सकता है। तब जिन्ना ने यह रहस्य खोला कि मैं आपकी बेटी से शादी करना चाहता हूं। सर दिनशॉ आगबबूला हो गए । उसके बाद उन्होंने जिन्ना से दोस्ताना लहजे में कभी बात नहीं की। रत्ती को कह दिया कि वह जिन्ना से बिलकुल नहीं मिलेगी। उस समय रत्ती सोलह साल की थी (और जिन्ना बयालीस के)। दो साल बाद जब रत्ती बालिग हो गई, तब दोनों ने अदालत में अर्जी डाल कर शादी करने की अनुमति हासिल कर ली। मुंबई में 19 अप्रैल 1917 को दोनों पति-पत्नी हो गए।

यह शादी मुसलमान-पारसी संबंध का नमूना नहीं बन सकी। शादी के पहले रत्ती ने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल किया, जिसके बाद उसका नाम पड़ा मरियम। जिन्ना और मरियम की एकमात्र संतान दीना का जन्म 15 अगस्त 1919 की अलस्सुबह लंदन में हुआ। जिन्ना तहे-दिल से चाहते थे कि उनकी बेटी की परवरिश मुस्लिम लड़की के रूप में हो। उन्होंने यह जिम्मा अपनी बहन फातिमा को सौंपा। फातिमा ने दीना को सलात और कुरआन की शिक्षा देना शुरू कर दिया।

दीना जब बड़ी हुई तो वह एक पारसी युवक, नेविल वाडिया, को दिल दे पैठी। नेविल की मां पारसी ईसाई थीं और पिता पारसी। नेविल का अपना झुकाव पारसी धर्म की ओर था। बाद में (1983) वे पारसी पंचायत द्वारा स्वीकार कर लिए जाने के बाद वे बाकायदा पारसी हो भी गए। जब दीना ने नेविल से शादी करने की अनुमति अपने पिता मुहम्मद अली जिन्ना से मांगी, तो जिन्ना वैसे ही आगबबूला हो उठे जैसे उनके अपने प्रस्ताव पर उनके भावी ससुर सर दिनशॉ आगबबूला हो उठे थे। जिन्ना ने इस विवाह को रोकने की पूरी कोशिश की। यह 1938 की बात है। जिन्ना के जीवनीकार वोलपर्ट जस्टिस चागला को उद्धृत करते हुए बताते हैं, ‘जिन्ना ने अपने दबंग अंदाज में बेटी से कहा कि भारत में करोड़ों मुसलमान लड़के हैं और वह उन्हीं में से किसी को क्यों नहीं चुन लेती, लेकिन वह जवान लड़की अपने पिता से दो कदम आगे निकली। उसने जवाब दिया : ‘फादर, भारत में करोड़ों मुसलमान लड़कियां थीं। आपने उन्हीं में से एक से शादी क्यों नहीं की?’ इस शादी के बाद जिन्ना की अपनी बेटी से कट्टी हो गई। दोनों के बीच चिट्टी आना-जाना जरूर बना रहा, पर जिन्ना ने अपनी बेटी को हमेशा ‘मिसेज वाडिया’ लिख कर ही संबोधित किया।

है न मजेदार किस्सा ! #