पिछली घटना 21 जनवरी की है। उस दिन इलाहाबाद में पुलिस ने किसानों पर लाठी चार्ज किया और उसके बाद गोली भी चलाई। यह करछाना विधानसभा के कचरी गांव की घटना है। पुलिस और किसानों के बीच जमकर मारपीट हुई। किसानों ने पहले तो एडीएम और एसपी को खदेड़ दिया था और दो सरकारी वाहनों मे भी आग लगा दी थी। उसके बाद पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें एक किसान की मौत हो गई व 12 अन्य घायल हो गए।

उस इलाके में एक पावर स्टेशन बन रहा है। उसके लिए राज्य सरकार किसानों की जमीन का अधिग्रहन कर रही है। किसान अधिगृहित जमीन के लिए ज्यादा कीमत मांग रहे हैं। अपनी इसी मांग के समर्थन में वे आंदोलन कर रहे हैं। यह गोलीबारी उसी आंदोलन के तहत हुई है।

गौरतलब है कि इस इलाके में बिजली स्टेशन खुद सरकार नहीं बना रही है, बल्कि सरकार ने जेपी ग्रुप को बिजली उत्पादन स्टेशन बनाने की इजाजत दी है। बिजली स्टेशन के लिए जमीन अधिग्रहन का जिम्मा खुद राज्य सरकार ने अपने ऊपर ले रखा है। किसानों की शिकायत है कि उन्हें जमीन का उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। मुआवजे के अलावा वे अपने लिए अन्य सहूलियतों की मांग की भी कर रहे हैं। उन बिजली स्टेशन के कारण 8 गांवों के लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है। उनकी मांग है कि विस्थापित होने वाले प्रत्येक परिवार के कम से कम एक सदस्य को उसमें नौकरी मिलनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि उसने किसानों को उनके मुआवजे का उचित भुगतान कर दिया है। वह कहती है कि प्रति बीघा 3 लाख रूपए का भुगतान किया गया है। पर किसान चाहते हैं कि 9 या कम से कम 8 लाख प्रति बीघा जमीन की दर से उन्हें मुआवजा दिया जाए। वे कह रहे हैं कि ग्रेटर नोएडा और अलीगढ़ के किसानों को 5 लाख प्रति बीघा जमीन की दर से मुआवजा दिया गया था। उसके बाद जमीन की कीमत और भी बढ़ी है। इसलिए उन्हें उनकी जमीन के लिए कम से कम 8 लाख रूपए प्रति बीघा जमीन की दर से मुआवजा मिलना चाहिए।

करछना के पहले अलीगढ़ के टप्पल में भी किसानों पर पुलिय फायरिंग हुई थी। उस समय एक पुलिसमैन और किसान की मौत हो गई थी और दर्जानों अन्य घायल हो गए थे। उस समय भी किसान अपनी जमीन के लिए ज्यादा मुआवजे की मांग कर रहे थे। उस आंदोलन का विस्तार मथुरा तक में किया गया था।

उस समय किसानों के पक्ष में लगभग सभी पार्टियां आ गई थीं और उन्होंने संसद का घेराव तक कर डाला था। यह पिछले साल अगस्त की बात है। उस समय संसद का सत्र चल रहा था और किसानों ने 21 अगस्त को संसद का घेराव किया था।

दो जनवरी को झांसी में भी किसानों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था। वे सरकार द्वारा उनकी जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ नारे लगा रहे थे।

किसानों के असंतोष पर राजनीति होना स्वाभाविक है। समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इलाहाबाद में हुई पुलिय फायरिंग की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्होेने कहा कि किसान बहुत दिनो से शांतिपूर्वक तरीके से अपनी मांग को उठा रहे थे, लेकिन सरकार ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष सुश्री रीता बहुगुणा ने मायावती सरकार को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि वह किसानो की जमीन औने पौने भाव में खरीद रही है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के साथ बहुत ही बर्बरतापूर्ण तरीके से पेश आती है। उन्होंने मारे गए किसान के परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने की मांग की और घायलों को 5 लाख रुपया देने को कहा।

भाजपा के प्रवक्ता राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि मायावती की सरकार किसान विरोधी नहीं, बल्कि गरीब विरोधी भी है। वह गरीबों की कीमत पर अमीर पूंजपितियों के हितों का पोषण करने की नीति पर चल रही है।

इस बीच उत्तर प्रदेश पावर वर्कर्स संयुक्त मोर्चा ने कहा है कि जब से बारा करछाना पावर प्लांट को एक निजी हाथों में सौपा गया है, उसी समय से समस्या खड़ी हो रही है, इसलिए अब इस प्रोजेक्ट को निजी हाथ से लेकर उत्तर प्रदेश बिजली उत्पादन निगम को सौंप दिया जाना चाहिए। (संवाद)