अनाज सुरक्षा और कुड अन्य मसलों को लेकर देश के 9 मजदूर संगठन 23 फरवरी को संसद मार्च का आयोजन कर रहे हैं। उस दिन देश के अनके हिस्से से लोग दिल्ली में एकत्र होंगे। अनाज सुरक्षा कानून के अलावा उनकी अन्य मांगें में बढ़ती महंगाई को रोकना, श्रम कानूनों का अमल व असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा कानों को पुख्ता बनाना शामिल है।
सवाल उठता है कि क्या उस मार्च के बाद केन्द्र सरकार कान पर कोई जूं रेंगेगी। अभी तक तो सरकार ने अनाज सुरक्षा के मसले पर अपना नकारात्मक रवैया ही अपनाया है। पहले देश के सभी लोगों के लिए अनाज सुरक्षा उपलब्ध राने की बात की जा रही थी। पर सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। नेशनल काउंसिल एडवाइजरी ने सरकार के आगे झुकते हुए अपने प्रस्ताव को कुछ कमजोर कर डाला और सौ फीसदी लोगों को इसके दायरे में लाने के बदले 75 फीसदी लोगों को लाने का प्रस्ताव दिया।
लेकिन केन्द्र सरकार ने सी रंगराजन के नेतृत्व में अनाज सुरक्षा से संबंधित उन प्रस्तावों की जांच करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया। समिति में सिर्फ नौकरशाहों को ही रखा गया। श्री रंगराजन खुद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार हैं। उनकी समिति को नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की वे सिफारिशें भी मंजूर नहीं है। यानी केन्द सरकार देश के 75 फीसदी लोगों को भी अनाज सुरक्षा के दायरे में रखना नहीं चाहती।
केन्द सरकार द्वारा गठित अर्जुन सेनगुप्ता आयोग ने यह माना है कि देश के 77 फीसदी लोगों की आय 20 रुपए प्रति दिन से भी कम है। उसे देखते हुए 75 फीसदी लोगों को अनाज सुरक्षा के दायरे में लाने का प्रस्ताव कोई गलत प्रस्ताव नहीं लगता, लेकिन लगता है कि केन्द्र सरकार खुद अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट को मानने के लिए तैयार नहीं है।
सौ फीसदी लोगों को अनाज सुरक्षा उपलब्ध कराना इसलिए जरूरी है, क्योंकि सेलेक्टिव आधार पर फायदा पहुंचाने की सरकारी नीति उन लोगों को फायदा पहुंचा ही नहीं पाती, जिनके लिए वह नीति बनाई जाती है। कमजोर तबके के लोग उस नीति के फायदों से वंचित रह जाते हैं। अबतक का अनुभव यही कहता है कि असंगठित तबके के लोगों को सरकार की नीतियों का लाभ या तो मिलता ही नहीं, अथवा बहुत कम मिलता है। यही कारण है कि अनाज सुरक्षा कानून के दायरे में देश के सभी लोगों को रखने की बात की जा रही थी। पर केन्द्र सरकार को वह मंजूर नही। अब एडवाइजरी काउंसिल ने उसे घटाकर 75 फीसदी कर दिया है, तो उस पर भी सरकार तैयार नहीं हो रही।
इन प्रस्तावों से जुड़ा एक पहलू यह भी है कि इन्हें तैयार करने के पहले केन्द्र सरकार के मंत्रालयों से बातचीत की जा चुकी थी। यह बातचीत इसीलिए की गई थी ताकि प्रस्ताव कुछ वैसा ही हो, जो सरकार को खले नहीं और कानून बनने में कोई विलंब नहीं हो। पर वैसा हो नहीं पा रहा है। इसमें लगातार विलंब होता जा रहा है। सरकार इन प्रस्तावों को कुछ और कमजोर करना चाहती है, लेकिन एडवाइजरी काउंसिल इस मूड में नही है। (संवाद)
मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी आमने सामने
कौन सा रंग दिखाएगा 23 फरवरी का संसद मार्च
नरेन्द्र शर्मा - 2011-02-03 11:42
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच भले ही अन्य मसलों पर एक राय बनी हुई हो, लेकिन अनाज सुरक्षा कानून के मसले पर दोनों आमने सामने हैं। इस मसले पर सरकार और काउंसिल के बीच कोई समहति नहीं बन पा रही है और यह मसला बहुत दिनों से अधर में लटका पड़ा है।