मनमोहन सिंह सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सबसे पहले आइपीएल में करप्शन का मसला सामने आया था। इसकी शुरुआत शशि थरूर की प्रेमिका को स्वेट इक्विटी देने के मामले से हुइ्र्र थी। उस मामले के उछलने के बाद अन्य अनेक लोगों के नाम कई तरह के करप्शन के मामलो मे उछले। शरद पवार का नाम आया। उनकी बेटी का नाम भी आया। उनके दामाद का नाम आया। प्रफुल पटेल का भी नाम आया। आइपीएल से जुड़े अनेक लोगों के नाम तरह तरह के घोटालेबाजों के रूप में सामने आये। यह आरोप लगा कि विदेशों में काले धन को सफेद बनाकर भारत लाने के लिए आइपीएल का इस्तेमाल हो रहा है। पूरे मामले में सिर्फ दो लोगों के खिलाफ कुछ हुआ। श्री थरूर को मंत्रिपद से हटा दिया गया और ललित मोदी को आइपील के प्रमुख के पद से दफा कर दिया गया। लेकिन करप्शन के अन्य मामलोे में कुछ भी नहीं हुआ। सीबीआई, आयकर विभाग और प्रवत्र्तन निदेशालय ने अनेक छापे मारे थे। उनका क्या हश्र हुआ किसी को कुछ नहीं पता। जाहिर है आइपीएल घोटालों में उपजे संदेहों को सरकार अभी तक निररूत नहीं कर पाई है।
आइपीएल के बाद कामनवेल्थ खेलों में भारी करप्शन का मामला सामने आया। उसमें करप्शन बहुआयामी थी। एक लाख करोड़ रुपए उन खेलों की तैयारी और आयोजन के नाम पर खर्च हुए थे। जांच का दिखावा तो उसमें भी किया गया, लेकिन जांच की जद में सिर्फ आयोजन समिति को ही रखा गया है, जबकि तैयारी के दौरान भी भारी भ्रश्टाचार हुए। सच तो यह है कि 95 फीसदी रकम तो तैयारी पर ही खर्च हुई थी। सिर्फ 5 फीसदी आयोजन पर खर्च हुई थी। जांच के दौरान 95 फीसदी खर्च की गई रकम में हुए करप्शन की उपेक्षा कर दी गई है। यानी इसमें भी सरकार ने लोगों को निराश ही किया है। सुरेश कलमाड़ी आयोजन समिति के चेयरमैन थे। करप्शन में वह समिति सलिप्त थी, लेकिन अन्य अनेक लोग भी लूट में लिप्त थे। उनके खिलाफ किस तरह की जाच हो रही है, यह किसी को पता नहीं है। दिल्ली की सरकार ने हजारों करोड़ रुपए कामनवेल्थ के नाम पर खर्च किए थे। उसमें भी भारी घोटाला हुआ था, लेकिन लगता है कि वे खर्च जांच के दायरे में हैं ही नहीं। उन खर्चों से जुड़े सभी लोग अपने अपने पदों पर बने हुए हैं।
2 जी स्पेक्ट्रम का महाघोटाला तो सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है। उसमें तो घोटाले के कारण सरकारी खजाने को हुए नुकसान की राशि के 176 हजार करोड़ तक पहुंचने के अनुमान हैंं। सरकारी खजाने का इतना बड़ा नुकसान सोच कर भी किसी का सिर चकरा सकता है। वह घोटाला मनमोहन सिंह की सरकार के पहले कार्यकाल में ही हुआ था। उसकी चर्चा भी पहले से ही की जाती थी। जब ए राजा को फिर से संचार मंत्री बनाया गया था, तो अनेक लोगों ने उस पर आपत्ति की थी। लेकिन आपत्तियों के बाद भी श्री राजा को संचार मंत्रालय दे दिया गया था। कामनवेल्थ घोटाले की चर्चा के बीच ही 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटाले की चर्चा तेज हो गई। सरकारी एजेंसियों ने नीरा राडिया की बातचीत को लंबे समय तक टेप किया था। उन टेपों को लीक किया जाने लगा। सरकारी अधिकारी उन्हें लीक क्यों कर रहे थे, इसके बारे में दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सिर्फ अनुमान लगाए जा सकते हैं। एक अनुमान तो यह लगाया जा सकता है कि कामनवेल्थ घोटाले से लोगों का घ्यान हटाने के लिए राडिया टेप को सार्वजनिक किया जाने लगा। कामनवेल्थ घोटाले का मीडिया कुछ ज्यादा ही जोरशोर से उछाल रहा था। राडिया टेप के पहले शिकार कुछ पत्रकार ही हुए। पत्रकार बरखादत्त की हुई बातचीत का टेप पहले लीक किया गया। फिर वीर सिंघवी का टेप सामने आया। प्रभु चावला से जुड़ी बातें भी चर्चा में आईं। जाहिर है टेप की लीक का पहला उद्देश्य उस मीडिया की विश्वसनीयता समाप्त करनी थी, जो कामनवेल्थ खेल में हुए घोटालो और तैयारियों में हुए विलंब को बहुत ज्यादा उत्साह के साथ देश और दुनिया के सामने ला रहा था। लीक हो रहे टेपों के बीच महालेखा परीक्षक और नियंत्रक की एक रिपार्ट सामने आ गई, जिसके अनुसार सरकारी खजाने के नुकसान की सीमा 176 करोड़ रुपए तक पहुंचने की आशंका व्यक्त की गई थी। उसके बाद तो फिर देश में विपक्षी पार्टियों ने तूफान ही खड़ा कर दिया। मुंबई के आदर्श सोसायटी घोटाले का भी मामला सामने आ गया।
केन्द्र सरकार की जाच एजेंसियो ने आइपीएल घोटाले में कुछ भी नहीं किया था और कामनवेल्थ घोटाले की जांच भी आधे मन से हो रही थी। बजट सत्र के दौरान केन्द्र सरकार ने अपन बहुमत बनाए रखने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया था। सीबीआई के इस्तेमाल से मायावती, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और सीबू सोरेन को सरकार के खिलाफ लाए गए कटौती प्रस्ताव के पक्ष में मतदान नहीं करने दिया गया था। इसलिए सीबीआई की विश्वसनीयता पहले की समाप्त हो गई थी। यही कारण है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर कैग की रिपोर्ट आने के बाद सभी बड़े घोटालों की जेपीसी जांच की मांग की जाने लगी और इसके कारण संसद का एक सत्र बिना किसी कामकाज के समाप्त हो गया।
करप्शन के मामले में केन्द्र सरकार चारों ओर से घिर चुकी थी। बोफोर्स का भूत फिर सामने आ गया। आयकर के न्यायाधिकरण के एक फैसले ने उस भूत को फिर सक्रिय कर दिया। न्याधिकरण ने यह माना कि घूस के पैसे क्वात्रोची के खाते में गए थे। उन खातों को अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में सरकार ने फ्रीज करवा दिया था। पर मनमोहन सिंह सरकार ने फ्रिज समाप्त करवा दिया और क्वात्रोची उस खाते में जमा रकम को निकालने में सफल हो गए। इस तरह सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने और एक अपराधी को बचाने का आरोप केन्द्र सरकार पर लगने लगा।
सीवीसी की नियुक्ति के मामले में भी केन्द्र सरकार की छिछालेदर हो रही है। श्री थामस को विपक्ष की नेता की आपत्ति के बावजूद सीवीसी बना दिया। श्री थामस पर केरल के पामोलीन घोटाले का एक मुकदमा चल रहा था। विपक्ष की नेता ने उसकी जानकारी नियुक्ति करने वाले पैनल के सामने रख दी थी। वे खुद भी उस पैनल की सदस्य थी। वैसे श्री थामस के बारे मे सारी जानकारी पैनल को उपलब्ध कराने का जिम्मा उस परसनोल विभाग का था, जिसके मंत्री खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही है। जाहिर है उनकी नियुक्ति में भारी गड़बड़ी हुई है। श्री थामस उस संचार मंत्रालय में सचिव भी रह चुके थे, जिसमें 2 जी स्पेक्ट्रम का महाघोटाला हुआ था।
यानी करप्शन के मामले में आज सरकार चारों तरफ से बुरी तरह घिर चुकी है। उसके सामने उसकी विश्वसनीयता का संकट है। ए राजा की गिरफ्तारी एक सही कदम है, लेकिन इस एक से काम नहीं चलने वाला। देश के लोगों को विदेशों में जमा भारतीयों के अवैध खाते के बारे में भी जानकारी चाहिए। सरकार यह बताए कि जिन 26 लोगों के नाम की जानकारी उसके पास है, वे लोग कौन हैं। इसके अलावा और भी बहुत कुछ सरकार को करना है। तभी वह कह सकती है कि बिना जेपीसी के गठन के ही वह करप्शन के मामले में उचित कार्रवाई करने में सक्षम है।(संवाद)
भारत
राजा की गिरफ्तारी और उसके बाद
क्या सरकार कार्रवाई जारी रखेगी
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-02-03 11:50
संचार घोटाले में ए राजा की गिरफ्तारी एक अच्छा कदम है। जब से भ्रष्टाचार देश के सामने एक बड़ा और चर्चित मसला बना है, तब से सरकार ने इस पर अपना ढुलमुल और टालू रवैया अपना रखा था। लोगों को लग रहा था कि सरकार इस मसले पर कुछ करना ही नहीं चाहती है।