उनकी यह घोषणा अभूतपूर्व है। यदि वे वास्तव में अनशन की अपनी घोषणा पर कायम रहते हैं और अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ जाते हैं, तो वह भारत में एक इतिहास बनाएंगे। उनका वह अनशन इस मामले में ऐतिहासिक होगा कि अब तक किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ कभी अनशन जैसी विरोध व्यक्त करने की कार्रवाई नहीं की है।

1967 के विधानसभा चुनावों के बाद अनेक राज्यों में संविद सरकारें बनी थी। कई गैरकांग्रेसी नेता पहली बार मंत्री बने थे। उस समय भी उनमें से कुछ मंत्रियों ने केन्द्र सरकार के खिलाफ विरोध का इजहार करते हुए अनशन पर बैठने की घोषणा कर दी थी, पर उनकी पार्टियों ने उन्हें हिदायत दी कि अनशन करने के पहले वे मंत्री के पद से इस्तीफा दे दें।

मंत्री पद पर रहते हुए अनशन जैसी कार्रवाई करने को उचित नहीं माना गया। उसके बाद भी कभी किसी राज्य के मंत्री या मुख्यमंत्री ने इस तरह की राजनैतिक कार्रवाई केन्द्र सरकार के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करते हुए अथवा अपनी किसी मांग को मनवाने के लिए नहीं की। जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह घोषणा अनूठी है।

सवाल उठता है कि क्या भाजपा संगठन की ओर से मुख्यमंत्री को अनशन पर बैठने से रोका जाएगा? इसकी संभावना बहुत ही कम लगती है। इसका कारण यह है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री का बचाव करते हुए कुछ दिन पहले ही कहा है कि अपने रिश्तेदारों को मकान का आबंटन कर यदुरप्पा ने कोई अवैध काम नहीं किया था, हालांकि उनका काम अनैतिक था। और अनैतिक काम के बावजूद उन्होंने यदुरप्पा के इस्तीफे की जरूरत महसूस नहीं की।

जाहिर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनैतिक अनशन को भी भाजपा अध्यक्ष राजनैतिक रूप से गलत नहीं मानेंगे और कहेंगे कि वैसा करने में गलत कुछ भी नहीं है, क्योंकि अनशन करके वह कोई गैरकानूनी काम नहीं कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री का वह अनशन किसानों की खातिर होगा। उनका कहना है कि राज्य के किसानों की हालत बहुत ही खराब है और खराब मौसम के कारण फसलों का भारी नुकसान हुआ है। उसके कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। वे आत्महत्या न करें, इसके लिए मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार से करीब 15 हजार करोड़ रुपए की सहायता राशि की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनका वह अनशन उस समय तक जारी रहा, जबतक केन्द्र सरकार राज्य को उक्त राशि की सहायता करने की मांग नहीं मान लेती। जाहिर है उनका वह अनशन आमरण अनशन का रूप ले सकता है।

राज्य के किसानों की स्थिति वास्तव में काफी भयावह है। उनके सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न होने वाली है। पिछले दिनों पड़े पाले ने दलहन की फसलों को नष्ट कर दिया है। दलहनों में भी अरहर और चना की फसलें किसानों ने ज्यादा लगाई थीं। दलहनों की माग उनकी आपूर्त्ति की अपेक्षा ज्यादा होती है। यही कारण है कि उनकी कीमतें बाजार में किसानों को लाभकारी दिखाई देती है। यही सोचते हुए किसानों ने अरहर और चना की फसलों को बोने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई थी। लेकिन पाले के कारण उनकी आशाओं पर भी तुषारापात हो गया हैं और वे भारी संख्या में आत्महत्या करने पर उतारु हो गए हैं।

किसानों की समस्याओं को उठाते हुए आरएसएस ने पिछले दिनों भोपाल में मुख्यमंत्री आवास की घेराबंदी तक कर डाली थी। वह घटना भी अभूतपूर्व थी, क्योंकि किसानों के मसले पर मुख्यमंत्री का घेराव वे ही लोग कर रहे थे, जो उनके राजनैतिक समर्थक माने जाते हैं। उस समय तो मुख्यमंत्री ने कुछ वायदे करके उन्हें शांत किया था और तब उनकी घेराबंदी उठी थी।

पर अब मुख्यमंत्री खुद किसानों के हितों के लिए केन्द्र सरकार के खिलाफ आमरण अनशन करने जा रहे हैं। उनके इस कदम पर कांग्रेस चुप नहीं है। उसके नेता मुख्यमंत्री की इसके लिए भारी आलोचना कर रहे हैं और कह रहें हैं कि मुख्यमंत्री को किसानों के कल्याण के लिए कुछ करना चाहिए न कि उनके नोम पर अनशन की राजनीति करनी चाहिए। (संवाद)