स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट केरल सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य राज्य का विकास करना है और उसके कारण युवाओं के लिए काम के अवसर भी पैदा होने वाले हैं। इस प्रोजेक्ट मे दुबई स्थित एक कंपनी को शामिल किया गया था। उस कंपनी के साथ केरल सरकार के मतभेद हो गए थे, जिसके कारण इस पर काम नहीं हो पा रहा था।

वह कंपनी प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाले भूखंड के 12 प्रतिशत हिस्से पर अपना मालिकाना हक चाह रही थी। वह यह भी चाहती थी कि उस 12 प्रतिशत जमीन को वह अपनी इच्छानुसार किसी को बेच सके। केरल सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। उसका कहना था कि देश का कानून उसे इस तरह का अनुबंध करने की इजाजत नहीं देता। प्रोजेक्ट के लिए भूखंड का अधिग्रहन स्पेशल इकनॉतिक जोन प्रावधान के तहत किया गया है और उस प्रावधान के तहत अधिगृहित जमीन का कोई हिस्सा किसी निजी व्यक्ति या कंपनी को नहीं दिया जा सकता।

केरल सरकार की उस दलील को मानते हुए कंपनी ने अपनी शर्तों में थोड़ा बदलाव कर दिया था। अब उसका कहना था कि उसे जमीन प्रोजेक्ट के भूखड के बाहर के हिस्सों मे दिया जाय। केरल सरकार इसके लिए भी तैयार नहीं थी। एक कंपनी को देने के लिए वे न तो अतिरिक्त जमीन का अधिग्रहन कर सकती थी और न ही किसी और काम के लिए अधिगृहित जमीन को किसी कंपनी के व्यावसायिक लाभ के लिए उसे दे सकती थी।

इस विवाद के कारण स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का काम अधर में लटका हुआ था। राज्य सरकार ने उस कंपनी को धमकी भी दे रखी थी कि यदि उसने काम शुरू नहीं किया तो प्रोजेक्ट उसके हाथ से लेकर किसी और के हाथ में दिया जा सकता है। पर उस कंपनी पर केरल सरकार की उस धमकी का भी असर नहीं पड़ रहा था। धमकी को अमल मे लाने का खतरा यह था कि इसके बाद पूरा मामला ही अदालत में चला जाता और फिर लंबे समय के लिए इस परियोजना का काम रुक जाता।

यानी इस परियोजना पर काम जहां का तहां रूका पड़ा था। सच कहा जाय, तो काम शुरू ही नहीं हुआ था। पर दो फरवरी का दुबई सरकार के प्रतिनिधियों के साथ केरल सरकार के हुए करार के बाद सबकुछ ठीक हो गया है।

इस करार की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि केरल सरकार ने कंपनी के साथ कोई रियासत नहीे बरती। कंपनी की 12 फीसदी जमीन पर मालिकाना हक और उसको बेचने के अधिकार को नहीं माना गया। प्रोजेक्ट क्षेत्र के बाहर भी जमीन के किसी टुकडे़ को देने की बात नहीं मानी गई।

यानी कंपनी को ही सरकार के सामने झुकना पड़ा। कंपनी और सरकार के बीच इस समझौते में केरल के दुबई स्थित व्यवसायी एम ए युसुफ अली ने बहुत ही महत्वपूर्ण भुमिका निभाई। पिछले दिसंबर महीने में श्री अली ने इस मिशन पर काम शुरू किया। वह टेकाम कंपनी के प्रबंधकों को यह समझाने में सफल रहे कि बिना 12 फीसदी जमीन के भी यह प्रोजेक्ट उनके लिए लाभ का सौदा है। वे केरल सरकार के देश के कानून के साथ बंधे होने की बात को भी समझाने मे सफल रहे। इस तरह दुबई की टेकाम कंपनी ने अपनी जिद छोड़ दी है और अब इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ना संभव हो गया है।

राज्य में विधानसभा के चुनाव के 100 दिन भी नहीं रह गए हैं। ऐसे माहौल में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के काम को आगे बढ़ाने मे केरल सरकार को मिली सफलता पर सत्तारूढ़ दल राहत की सांस ले रहे हैं। इसे वे अपनी सफलता के रूप में मतदाताओं के सामने पेश कर सकेंगे और विपक्ष की आलोचनाओं से भी बच सकेंगे।

विपक्षी कांग्रेस ने भी इस प्रोजेक्ट पर समाप्त हुए गतिरोध का स्वागत किया है, लेकिन इस पर हुए विलंब के लिए वह केरल सरकार की आलाचना करने से अपने आपको रोक नहीं पा रही है। कांग्रेस नेता ओमन चंडी का कहना है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट कांग्रेस की ब्रेनचाइल्ड है और एलडीएफ सरकार के कारण इसमें विलंब हुआ है।

इसपर राजनैतिक बयानबाजी चाहे जो भी हो, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर मिली इस सफलता से अच्युतानंदंन सरकार के आलोचक कमजोर हो गए हैं। अब वे यह नहीं कह सकते कि यह सरकार विकास विरोधी है अथवा निवेश के रास्ते में रोड़ा डाल रही है। (संवाद)