भ्रष्टाचार के कुछ मामलों की जेपीसी जांच करवाने के लिा विपक्ष अड़ा हुआ है और सरकार उस मांग को न मानने के लिए अड़ गई है। सरकार के पास जेपीसी जांच नहीं करवाने के कोई ठोस तर्क है ही नही। कुछ मामलों में भ्रष्टाचार के जो आयाम रहे हैं, उनके सामन सीबीआई बौनी साबित हो रही है। नीतियों के स्तर तक भ्रष्टाचार हुए। भला सीबीआई उस नीतिगत भ्रष्टाचार की जांच कैसे कर सकती है? जाहिर है जेपीसी की जांच की मांग में दम है और उसे नहीं मानकर सरकार अपनी स्थिति लोगों के बीच दयनीय बना रही है।
जब से मतमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथग्रहण किया है, उस समय से ही उनकी किरकिरी हो रही है। सरकार गठन के तत्काल बाद महंगाई की समस्या विकराल होने लगी और पूरा देश त्राहि त्राहि करने लगा। लोकसभा में पिछले चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करने के कारण कांग्रेस और उनके नेताआंे का आत्म विश्वास बढ़ा हुआ था। वाम दलों के दबाव से मुक्त होकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपने को पहले से ज्यादातर ताकतवर महसूस कर रहे थे और माना जा रहा था कि यूपीए 2 पहले कार्यकाल की अपेक्षा बेहतर काम कर पाएगी। लेकिन कुछ महीने में ही साफ होने लगा कि वामपंथी लगाम के दबाव में ही सरकार बेहतर कर रही थी, उस लगाम के हटने के बाद सरकार के काम करने की दिशा ही बदल गई है।
महंगाई के बाद भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे। महंगाई पर घिर रही सरकार ने महिला आरक्षण का पत्ता फेंककर विपक्ष को विभाजित कर दिया। राज्य सभा में उसने मार्शल की ताकत का इस्तेमाल कर महिला आरक्षण को पारित भी करवा लिया, लेकिन संसद के अंदर बल का प्रयोग करने से सरकार की छवि कोई अच्छी नहीं हुई। राज्य सभा के बाद वह लोकसभा में उसे पेश कर पारित कराने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई। महिला आरक्षण का इस्तेमाल कर महंगाई के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष को विभाजित करने की उसकी रणनीति भी उसकी साख को घटाने ही वाली थी। उसने हद तो तब कर दी, जब उनके कुछ मंत्री संकेतों में कहने लगे कि जेपीसी की मांग पर एक जुट हुए विपक्ष को तोड़ने के लिए वह अब लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक को पेश करेगी। यह पिछले सत्र की बात है। अच्छा हुआ कि सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक का इस्तेमाल उस काम के लिए नहीं किया, वरना उसकी और भी हंसी होती और महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पारित हो जाता, इसकी कोई गारंटी नहीं थी, क्योकि अधिकांश पुरुष सांसद महिला आरक्षण विधेयक के अपने व्यक्तिगत कारणों से खिलाफ हैं और जब सरकार के खिलाफ इस तरह का हंगामा हो रहा हो, वैसी हालत में कांग्रेस के लिए भी अपने सभी पुरुष सांसदों को महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में मत करवाना आसान नहीं है।
एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। अब तो खुद प्रधानमंत्री के दरवाजे पर भ्रष्टाचार खड़ा दिखाई पड़ता है। सेटेलाइट बैंड के आबंटन में केन्द्र सरकार को 2 लाख करोड़ रुपए का चूना लगाने का इेतजाम कर दिया गया है। जिस विभाग ने यह काम किया है, प्रधानमंत्री खुद उसके मंत्री हैं। प्रधानमंत्री अब तो यह नहीं कह सकते कि जिस सरकारी कंपनी अंतरिक्ष कार्पोरेशन ने यह अनुबंध किया, उसके काम में वह हस्तक्षेप नहीं करते थे। प्रधानमंत्री यह भी नहीं कह सकते कि जिस अंतरिक्ष आयोग ने उसके फैसले को आगे बढ़ाया, वह उनके अंदर तो है, लेकिन उस आयोग के वे सदस्य नहीं हैं। प्रधानमंत्री को यह बताना पड़ेगा कि सरकारी खजाने को दो लाख करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले उस अनुबंध के बारे में जानकारी क्यों नहीे थी। उस अनुबंध को कैबिनेट की भी मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री यह तो नहीें कह सकते कि जब उस अनुबंध को कैबिनेट मंजूर कर रहा था, तो उस समय भी उसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी, क्योंकि विभाग के मंत्री ने उन्हें उसके बारे में साफ साफ नहीं बताया था। इस तरह की सफाई किसी विभाग के मुखिया को शोभा नहीं देती। इस तरह की सफाई देकर कोई व्यक्ति अपने पद पर बना नहीं रह सकता।
केन्द्र सरकार कह रही है कि सैटेलाइट बैंड अनुबंध में सरकारी खजाने को कोई घाटा नहीं हुआ है, लेकिन घाटा होने से रोकने में सरकार की कोई भूमिका नहीं रही है। अनुबंध उस बैंड के लिए हुआ है, जो दो उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद अस्तित्व में आता। अपनी तय योजना के मुताबिक दोनों उपग्रहों को 2010 में ही प्रक्षेपित होना था, पर उसमें विलंब हो गया और उनके प्रक्षेपण का अभी भी इंतजार हो रहा है। यानी समय पर दोनों उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की इसरो भी विफलता ने उस अनुबंध के अमल को रोक रखा है और अनुबंध के अनुसार आगे का काम नहीं हुआ है, वरना 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाने की सारी तैयारी तो प्रधानमंत्री के सीधे नेत्त्व वाले अंतरिक्ष विभाग ने कर ही रखी थी।
जाहिर है, अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सीधे निशाने पर आ गए हैं। अब उनके सामने कोई ए राजा नहीं है, जो उनपर होने वाले वार को अपने ऊपर ले लेगा। पृथ्वीराज चौहान उस अनुबंध के समय पीएमओ में राज्य मंत्री थे। उन्होंने इस मसले से पल्ला झाड़ लिया है। उन्हें प्रधानमंत्री बलि का बकरा नहीं बना सकते। अशोक चौहान के आदर्श सोसाइटी घोटाले में शामिल होने के आरोप के बाद पृथ्वीराज को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया है। यदि सेटेलाइट बैड घोटाले में पृथ्वीराज चौहान को बलि का बकरा बनाया जाता है, तो महाराष्ट्र में कांग्रेस का बेड़ा गर्क हो सकता है। यानी इस घोटाले में प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी किसी और के ऊपर डाल ही नहीं सकते। वे बस इस बात का संतोष कर सकते हैं कि जिस बैंड को औने पौने दाम में आबंटित किया गया था, वह अभी अस्तित्व में ही नहीं आया है और केन्द्र के खजाने को अभी कोई नुकसान नहीं हुआ है। उस अनुबंध को रद्द कर सरकार अपने आपको कुछ राहत दे सकती है, लंकिन वह करार हुआ ही क्यों, इसके बारे मे कहने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है।
जिस तरह के विश्वास के संकट में केन्द्र सरकार फंस गई है, वह अभूतपूर्व है। भाजपा पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री के कथित भ्रष्टाचार पर आक्रामकता दिखा कर वह अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों को कमजोर करना चाह रही है, लेकिन इसमें वह विफल हो रही है। इसका कारण यह है कि केन्द्र सरकार में घोटाले की जो राशि आ रही है वह अच्छे अच्छे लोगों का दिमाब खराब कर देने वाली है। यदि केन्द्र सरकार अपनी खोई विश्वसनीयता को हासिल करना चाहती है, तो उसे सबसे पहला काम तो जेपीसी का गठन कर उससे 2 जी सपेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल और आदर्श सोसाइटी घोटाले की जांच की घोषणा कर देनी चाहिए। (संवाद)
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मनमोहन सरकार के सामने विश्वास का संकट
जेपीसी का गठन कर केन्द्र अपनी साख कुछ बचा सकता है
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-02-14 13:14
मनमोहन सिंह सरकार जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर रही है, उस तरह दुनिया की शायद ही कोई सरकार कभी घिरी है। एक से एक भ्रष्टाचार के मामले आ रहे हैं और सरकार के पास उनका कोई जवाब नहीं है। सच तो यह है कि इन मामलों की लीपापोती करने की हालत में भी सरकार नहीं है।