मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रही वरिष्ठ कांग्रेसी जमुना देवी के निधन और सोनकच्छ में कांग्रेसी विधायक सज्जन सिंह वर्मा का लोकसभा के लिए निर्वाचित हो जाने के कारण संपन्न विधानसभा चुनावों में दोनों पर भाजपा के उम्मीदवार निर्वाचित हुए हैं। परंपरागत रूप से दोनों सीटें कांग्रेस की रही है और कुक्षी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, तो सोनकच्छ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि कांग्रेस को इस चुनाव से दोहरी हार हुई है, क्योंकि कांग्रेस ने अपनी दोनों सीटों को गंवाने के साथ ही अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति में जनाधार भी गंवाया है।

कुक्षी में जमुना देवी की भतीजी एवं कांग्रेसी उम्मीदवार सुश्री निशा सिंघार को महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री के पति एवं भाजपा उम्मीदवार मुकाम सिंह किराड़े ने 16116 मतों से हराया। श्री किराड़े को 60294 मत मिले, तो सुश्री सिंघार को सिर्फ 44178 मत मिले। सोनकच्छ में पूर्व सांसद फूलचंद वर्मा के पुत्र एवं भाजपा उम्मीदवार राजेंद्र वर्मा ने कांग्रेस सांसद सज्जन सिंह वर्मा के भाई एवं कांग्रेसी उम्मीदवार अर्जुन वर्मा को 19457 मतों से हराया। राजेंद्र वर्मा को 74356 एवं अर्जुन वर्मा को 54899 मत मिले।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी कांग्रेस की हार पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, ’’भाजपा ने इन उपचुनावों में जीत के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, जिनमें भारी धनबल, बाहुबल एवं शासकीय मषीनरी का दुरूपयोग किया गया।‘‘ भले ही श्री पचौरी परिणामों की समीक्षा करें, पर कांग्रेस के आम कार्यकर्ता बार-बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की आपसी दूरियां कांग्रेस का बेड़ागर्क कर रही है।

लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे में रही दोनों सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा बहुत ही उत्साहित है। ऐसा इसलिए भी है कि अजजा एवं अजा समुदाय में भाजपा का जनाधार कम है और इन दोनों समुदाय में अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहती है। भाजपा ने इन वर्गों में पैठ के लिए उप चुनाव को द्वार माना था और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने इसके लिए लगभग 3 माह पहले से ही रणनीति बनाकर काम शुरू कर दिया था। झा कहते हैं, ’’इस जीत ने दिखा दिया कि सत्ता के काम का लाभ जनता को मिल रहा है और संगठन की ताकत जमीनी स्तर तक है. हमें संगठन को और विस्तार देना है, जिससे कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उन सभी सीटों पर हराया जाए, जहां वह काबिज है। इस जीत से उत्साहित होने के बजाए हमें अपने जनाधार को ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है।‘‘

निकाय चुनावों में कांग्रेस को मात देकर भाजपा ने 2011 की अच्छी शुरुआत की, जिसे इस उपचुनाव में भी बरकरार रखा। चुनाव प्रबंधन में कांग्रेस पर भारी पड़ रही भाजपा मजबूत होती जा रही है, दूसरी ओर कांग्रेस गुटबंदी के कारण जमीनी आधार खोती जा रही है। ऐसे में 2013 के विधानसभा चुनाव तक क्या कांग्रेस इस स्थिति में आ पाएगी कि वह भाजपा को चुनौती दे सके, इस सवाल का जवाब अब एक बार फिर विधानसभा की दो सीटें जबेरा एवं महेश्वर के उप चुनावों के परिणाम से पता चलेगा। उल्लेखनीय है कि उक्त दोनों सीटें भी कांग्रेस के कब्जे में रही हैं। (संवाद)