प्रधानमंत्री की छवि एक ईमानदार राजनेता की रही है। उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि वे निजी तैार पर ईमानदार हैं और उनकी निजी ईमानदारी का एक लंबा इतिहास रहा है। अपनी ईमानदारी के कारण में राजनीति में नहीं होते हुए भी प्रधानमंत्री जैसे राजनैतिक पद पर बैठने का मौका पा सके। यही कारण है कि लोग उन्हें संपादको के साथ बातचीत के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से बात करने वाले एक राजनेता के रूप में देखना चाहते थे। लोग उनके मुह से सुनना चाहते थे कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे, भले ही ऐसा करते हुए वे अपनी कुर्सी तक गंवा बैठें

पर प्रधानमंत्री ने उम्मीदों के ठीक उल्टी बात की। भ्रष्टाचार को वे गठबंधन राजनीति की मजबूरी बता बैठे और अपना कार्यकाल पूरा करने का संकल्प व्यक्त कर डाला। उन्होंने यह भी कहा कि उनके हाथ में प्रधानमंत्री के रूप में कुछ टास्क हैं और उन्हें वे टास्क पूरे करने हैं। यानी अपने पद पर बने रहने के लिए वे अपने अधूरे काम का हवाला दे रहे थे। किसी ने उनसे यह पूछा ही नहीं कि उनके वे अधूरे काम क्या हैं, जिन्हें करने के लिए वे प्रधानमंत्री बने रहना चाहते हैं।

अपने पद पर बने रहने की बात उन्होंने कोई पहली बार नहीं की है। एक बार पहले भी वे कह चुके हैं कि बीच में उनका पद छोड़ने का कोई इरादा नहीं है और वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। वैसे संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री को कोई तय कार्यकाल नहीं होता। लोकसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है और उस बीच एक से ज्यादा प्रधानमंत्री बन सकता है। कभी कभी लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती और समय से पहले ही वह भंग हो जाती है। पर प्रधानमंत्री का कोई तय कार्यकाल नहीं होता। वह किसी लोकसभा के कार्यकाल के तहत तबतक प्रधानमंत्री रहता है, जबतक उसे लोकसभा का विश्वास हासिल रहता है।

पर मनमोहन सिंह जब कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करेंगे और बीच में इस्तीफा नहीं देंगे, तो इसका मतलब वर्तमान लोकसभा की शेष अवधि तक प्रधानमंत्री बने रहने की वे बात कर रहे होते हैं। यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि मनमोहन सिंह से प्रधानमंत्री पद छोड़ने की माग नहीं की जा रही है। विपक्ष भ्रष्टाचार के मामलों की जेपीसी जांच की मांग कर रहा है, न कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है। किसी भी पार्टी ने औपचारिक रूप से अभी तक मनमोहन सिंह से प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के लिए नहीं किया है, यह दूसरी बात है कि भाजपा के दोयम दर्जे के कुछ नेता अपनी निजी हैसियत से श्री सिंह से इस्तीफा देने को कह चुके हैं। लेकिन पार्र्टी के मंच से न तो भाजपा ने और न ही किसी अन्य पार्टी ने अबतक मनमोहन सिंह से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा है।

तो फिर मनमोहन सिंह इस्तीफा न देने की बात कर ही क्यों रहे हैं? संदेह उठना स्वाभाविक है कि क्या पार्टी के अंदर से प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के लिए उन पर दबाव है? यह बात तो अबतक जाहिर हो गई है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ उनका पहले जैसा तालमेल और विश्वास का भाव नहीं रहा। सूचना के अधिकार के मसले पर सोनिया गांधी से उनका मतभेद हो चुका है। वे नौकरशाही को प्रसन्न करने के लिए इस कानून को कमजोर करना चाहते थे, पर सोनिया गांधी ने उन्हें वैसा करने नहीं दिया। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के मसले पर भी दोनों के बीच मतभेद जबजाहिर हो चुके हैं। सुश्री गांधी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को ज्यादा से ज्यादा व्यापक बनान चाहती है, लेकिन प्रधानमंत्री इसके लिए तैयार नहीं हैं। वे संसाधनो का हवाला देकर एक ऐसा कानून बनाना चाहते हैं जिसका अमल में आकर अपने उद्देश्य को पूरा करना संदिग्ध है।

इस बीच राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने वाले कुछ कांग्रेसी नेता भी व्याकुल हैं। 2014 के बाद राहुल को देश क प्रधानमंत्री के रूप में पहले वे कांग्रेसी नेता देख रहे थे। लेकिन बिहार विधानसभा के चुनाव ने उनको निराश कर दिया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मिली थोड़ी सफलता को वे राहुल बाबा का चमत्कार समझ रहे थे और उन्हें लग रहा था कि वह छोटी सफलता आने वाले दिनों में बड़ी सफलता का रूप धारण करेगी। शुरुआत बिहार से होनी थी, जिसकी राजनीति उत्तर प्रदेश की राजनीति से मिलती जुलती है। पर बिहार विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का सफाया ही हो गया। उतनी बुरी हार बिहार में कांगेस को कभी भी नसीब नहीं हुई थी। उसके मात्र 4 उम्मीदवार जीते।

उसके बाद तो राहुल को प्रधानमंत्री बनाने वाले कांग्रेसी नेताओं को अहसास होने लगा है कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की स्थिति बेहतर होने की संभावना नहीं के बराबर है और डर है कि पार्टी की लोकसभा में सीटें घटकर कहीं वर्तमान की आघी न हो जाए। एक के बाद एक आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों ने भी उनकी नींद हराम कर रखी है। पूरे देश का राजनैतिक माहौल कांग्रेस के खिलाफ होता जा रहा है। उपचुनावों के नतीजे कांग्रेस के खिलाफ जा रहे हैं। जाहिर है आने वाले दिनों में कांग्रेस की हालत और भी खराब होने की आशंका है। इसलिए अब वे लोग चाहते हैं कि इसी लोकसभा के दौरान राहुल गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया जाए। पर इसके लिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली हो।

तो क्या वे लोग डाक्टर मनमोहन सिंह पर राहुल गांधी के लिए अपनी कुर्सी खाली करने के लिए दबाव डाल रहे हैं? और क्या इस्तीफा नहीं देने की बात श्री सिंह उन्हीं लोगों को सबोधित करते हुए कर रहे हैं? कुछ महीने पहले कुछ कांग्रेसी नेता आकलन लगा रहे थे कि 2012 में मनमोहन सिंह को देश का राष्ट्रपति बनाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली करवा ली जाएगी। पर सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की स्थिति में है? इसका सवाल नकारात्मक है, क्येंकि राष्ट्रपति के मतदाता मंडल में कांग्रेस भारी संख्या से अल्पमत में है और यह अपनी पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति नहीं बना सकती। लिहाजा वे मनमोहन सिंह द्वारा स्वेच्छा से प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद की स्थिति में ही राहुल को प्रधानमंत्री के पद पर बैठाने की सोच सकते हैं। लेकिन मनमोहन सिंह ने साफ साफ कह दिया है कि वे बीच में अपना पद छोड़ने का इरादा नहीं रखते। (संवाद)