यदि उम्मीद के अनुसार कांग्रेस को सफलता मिल जाती है, तो वह विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे आरोपों से अपने को मुक्त महसूस कर सकती है। जिन 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वे हैं- असम पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी।

पश्चिम बंगाल और केल में तो इसका मुकाबला वामपंथी पार्टियों के साथ है। केरल में कांग्रेस एक मोर्चा का नेतृत्व करती हुई चुनाव लड़ेगी। उस चुनाव में वह फायदे में दिखाई पड़ रही है। इसका एक कारण तो यह है कि सत्ताधारी मोर्चे का नेतृत्व कर रही सीपीएम अपने आंतरिक कलह से जूझ रही है। पिछले 5 सालों से राज्य के मुख्यमंत्री और राज्य ईकाई के प्रमुख के बीच घमासान चल रहा है और उस बीच हुए लोकसभा तथा स्थानीय निकायों के चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे ने सीपीएम के नेतृत्व वाले मोर्चे को पराजित किया है। इसके अलावे केरल के विधानसभाओं का इतिहास रहा है कि एक बार कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा जीतता है, तो दूसरी बार सीपीएम के नेतृत्व वाला मोर्चा। इस बार बारी कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे की है। यही कारण है कि कांग्रेस वहां अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिखाई पड़ रही है।

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की जूनियर पार्टनर के रूप में चुनाव मैदान में उतर रही है। वहां पिछले 34 सालों से वामपंथी सरकार है और वहां की जनता इस बार बदलाव के मूड मे है। पिछले लोकसभा चुनाव और उसके बाद में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव के बाद यह साफ हो गया है कि वहां इस बार वामपंथी पार्टियों के हाथ से सत्ता निकल रही है। हालांकि कांग्रेस वहां अकेले सत्ता पाने की हालत में नहीं है और उसे दोयम दर्जे की भूमिका निभानी है, फिर भी यदि वह तृणमूल की जूनियर पार्टनर के रूप में भी सत्ता पर काबिज होती है, तो यह उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।

पुदुचेरी मंे इस समय भी कांग्रेस का ही मुख्यमंत्री है। दक्षिण भारत का यह राज्य तमिलनाडु की राजनीति की छाया से प्रभावित होता है। तमिलनाडु में कांग्रेस, पीएमके और डीएमके एक साथ आ खड़ी हुई है। उसका असर पुदुचेरी पर भी पड़े बिना नहीं रह सकता। यही कारण है कि कांग्रेस वहां भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त जनर आ रही है।

असम में कांग्रेस लगातार दो बार से सत्ता में है। वह तीसरी बार लगातार सत्ता पाने के लिए वहां वह चुनाव लड़ रही है। वहां केन्द्र सरकार उल्फा के साथ शांति वार्ता चला रही है। उल्फा के नेता बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हो गए है। उनके नेताओं की दिल्ली में गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के साथ एक दौर की बातचीत भी हो चुकी है। उनकी बातचीत का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है और विधानसभा चुनाव के पहले कोई नतीजा निकलने की उम्मीद भी नहीं है, लेकिन बातचीत शुरू हो जाना भी राज्य सरकार की एक उपलब्धि मानी जाएगी। और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में इसे सफलतापूर्वक भुना सकती है। इसके अलावा असम में विपक्ष की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। असम गण परिषद की हालत खराब है और भाजपा भी पतन की ओर बढ़ रही है। दोनों पार्टियों के बीच कांग्रेस के खिलाफ कोई तालमेल नहीं हो रहा है। जाहिर है बिखरे हुए विपक्ष का फायदा भी कांग्रेस को ही होगा। इन परिस्थितियों में कांग्रेस को लगता है कि वह असम में अपनी जीत की हैट्रिक बनाने में सफल हो जाएगी।

कांग्रेस के लिए उलझन भरी स्थिति तमिलनाडु है, जहां डीएमके के करुणानिधि की सरकार है। पीएमके के सत्तारूढ़ मोर्चे में आ जाने से यूपीए की स्थिति वहां भी मजबूत हुई है, लेकिन 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटाले का मसला सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा वहीं बनेगा। यूपीए के खिलाफ जयललिता भी मोर्चाबंदी में लगी हुई है। सीपीआई, सीपीएम, एमडीएमके जैसी पार्टियां तो उनके साथ मोर्चे में है ही, सिने स्टार विजयकांत की डीएमडीके भी उस मोर्चे में शामिल होने वाला है। उसके बाद दोनों के बीच मुकाबला बराबरी का हो जाएगा। यदि घोटालों ने राज्य की आबादी के एक छोटे हिस्से के मतदान को भी प्रभावित कर दिया, तो करुणानिधि की जीत मुश्किल में पड़ जाएगी।

बहरहाल, तमिलनाडु में जीत दिलाने की जिम्मेदारी करुणानिधि और उनकी पार्टी की है, कांग्रेस की नहीं। इसलिए उम्मीद के अनुसार यदि 4 राज्यों में भी कांग्रेस की जीत हो जाती है, तो उसके हौसले को पंख लग जाएंगे। (संवाद)