इस तरह की मांग खुले रूप में पहली बार राहुल गांधी की एक सभा में ही की गई थी। उस सभा में मांग की गई थी कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस की तरफ से राज्य में पार्टी की बागडोर सौंप दी जानी चाहिए। उस मांग के बाद ही वहां राहुल गांधी का भाषण हुआ था, लेकिन अपने भाषण में श्री गांधी उस महत्वपूर्ण मांग पर चुप्पी साध गए। उस माग का अथवा प्रियंका का उन्होंने अपने भाषण में जिक्र तक नहीं किया था।
पर उसके बाद उस मांग की चर्चा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं की जुबान पर आ गई। यह चर्चा राज्य भर में चल रही है कि प्रियंका ही कांग्रेस की नैया विधानसभा चुनाव में पार लगा सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी जीत चाहते हैं और उनकी हार्दिक इच्छा अपनी सरकार बनाने की है। पर उन्हें अब लगने लगा है कि राहुल गांधी का जादू लोगांे के ऊपर नहीं चल रहा है और प्रियंका ही कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने मे सक्षम हो सकती है।
दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेसियों को राहुल गांधी पर ही भरोसा हो गया था। उन्हें लग रहा था कि लोकसभा चुनाव में जो स्थिति सुधरी है वह लगातार सुधरती जाएगी और 2012 के विधानसभा चुनाव आते आते पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में होगी। पर लोकसभा चुनाव के बाद हुए अनेक उपचुनावों में कांग्रेस की करारी हार होती रही है। अघिकांश विधानसभा क्षेत्रों में तो कांग्रेस मुख्य मुकाबले में थी ही नहीं और उसके उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गई। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद तो राहुल गांधी के प्रति उनका विश्वास बुरी तरह हिल गया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति बिहार की राजनीति से मिलती जुलती है और माना जा रहा है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बिहार की पुनरावृर्त्ति हो सकती है।
राहुल गांधी अपने तरीके से जनसंपर्क अभियान पहले की भांति ही चला रहे हैं। दलितों के घरों में जाकर वे साधारण खाना खाते हैं और उनके साथ अपना समय बिताते है। पर कांग्रेस कार्यकर्त्ता मान रहे हैं कि विधानसभा चुनावों में इन संपर्क कार्यक्रमों का कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है, क्योकि उस तरह के कार्यक्रमों का प्रभाव लघुकालीन होता है।
कांग्रेसी कार्यकर्त्ता बताते हैं कि 1999 में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में प्रियंका गांधी की एक सभा ने वहां की समां बदल कर रख दी थी। प्रियंका के उस चुनावी भाषण के पहले भाजपा उम्मीदवार अरुण नेहरू चुनाव प्रचार में सबसे आगे चल रहे थे और कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन सतीश शर्मा के पक्ष में माहौल बन ही नहीं पा रहा था। तब एक सभा में भाषण देते हुए प्रियंका ने कहा था कि आपलोगों ने अरुण नेहरू जैसे व्यक्ति को रायबरेली में प्रवेश करने ही क्यों दिया, जो राहुल गांधी की पीठ में छूरा घोंपने का काम कर चुके हैं। उस एक भाषण के बाद अरूण नेहरू का सितारा गर्दिश में चला गया। सतीश शर्मा मुख्य मुकाबले में आ गए। वे चुनाव जीत भी गए और अरूण नेहरू की तो जमानत ही जब्त हो गई।
उस घटना को कांग्रेसी कार्यकर्त्ता याद करते हैं और कहते हैं कि प्रियंका को अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, क्योंकि उनका जादू पूरे प्रदेश में चलता है। (संवाद)
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उत्तर प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में नया मोड़
राहुल की जगह प्रियंका को नेता के रूप में चाहते हैं कार्यकर्त्ता
प्रदीप कपूर - 2011-02-28 18:55
लखनऊः उत्तर प्रदेश में कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं ने राहुल गांधी को एक बड़ा झटका दे डाला है। वे अब प्रियका गांधी को पार्टी की मुख्य स्टार प्रचारक बनाने की मांग करने लगे हैं। उनका मानना है कि राहुल गांधी मुख्यमंत्री मायावती, मुलायम सिंह यादव और भारतीय जनता पार्टी की चुनौतियों का सामना करते हुए पार्टी को राज्य विधानसभा के चुनावों में जिताने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए वे प्रियंका गांधी को राज्य की राजनीति में सक्रिय देखना चाहते हैं।