जब लगा कि बजट सत्र के दौरान जेपीसी का गठन हो जाएगा और सत्ता तथा विपक्ष के बीच का राजनैतिक गतिरोध समाप्त हो जाएगा, तब शेयर बाजार के संभलने का माहौल बनना चाहिए था, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। शेयर बाजार औंधे मुह गिरता रहा। उसका एक कारण तो बजट को लेकर कार्पोरेट सेक्टर का डर था। दूसरा कारण उत्तरी अफ्रीका और अरब देशों में आया राजनैतिक तूफान था। उस तूफान ने ट्यूनिशिया और मिश्र की सत्ता बदल दी। लीबिया में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बना दी। बहरीन, यमन, और जॉर्डन में भी सत्ता के खिलाफ बड़े बडे प्रदर्शन होने लगा। वे अशांत क्षेत्र मुख्य तेल उत्पादक देश हैं। जाहिर है दुनिया को तेल का एक बड़ा झटका लगने का खतरा पैदा हो गया। भारत तो एक शुद्ध तेल आयातक देश है। इसलिए यहां भी तेल की कीमतों को लेकर डर का माहौल बना हुआ है। इस माहौल ने शेयर बाजार को प्रभावित करना जाहिर रखा और बजट पेश होने के ठीक पहले तक बाजार सहमें रहे।
पर बजट भाषण शुरू होते ही शेयर बाजार सुधरने लगा। सच तो यह है कि आर्थिक समीक्षा मंे ही सरकार ने संकेत दे दिए थे कि बजट का मूल बिंदू होगा देश की आर्थिक विकास की दर को तेज बनाए रखना। समीक्षा पेश होने के दो दिन बाद बजट पेश हो रहा था और उसके पहले के दोनों दिन छुट्टियां होने के कारण शेयर बाजार बंद थे। लिहाजा शेयर बाजार ने सुधरने के पहले प्रणब मुखर्जी के बजट भाषण तक का इंजजार नहीं किया। मान लिया गया कि सरकार महंगाई के ऊपर विकास को तरजीह दे रही है। प्रणब मुखर्जी के भाषण के केन्द्र में भी यही था कि सरकार महंगाई खत्म करना चाहती है, लेकिन इसके लिए वह विकास दर को कुर्बान नहीं करना चाहती है।
सरकार का यह दर्शन पूरे बजट का आधार है। जब दुनिया भर में आर्थिक मंदी चल रही थी, तो देश को उस मंदी के प्रभाव से बचाने के लिए सरकार ने अनेक राजकाषीय प्रोत्साहन दे रखे थे। बाजार को डर लग रहा था कि कहीं सरकार ये प्रोत्साह हटा न ले। लेकिन सरकार ने उस दिशा में वैसा कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। जाहिर है बाजार की वह आशंका निर्मूल साबित हुई। उसके कारण बाजार में उत्साह का माहौल बना और शेयर सूचकांकों को पर मिल गए।
केन्द्र सरकार महंगाई की समस्या के साथ काले धन और भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना बजट आने के पहले कर रही थी। काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था भी बाजार पर हावी है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि वह काला धन भी बाजार और खासकर शेयर बाजार को प्रभावित करता है। उस काले धन के बारे में सरकार क्या नीति अपना रही है, इसका भी असर शेयर बाजार पर पड़ना लाजिमी है। आजकल विदेशों में जमा काले धन की कुछ ज्यादा ही चर्चा होती है। विदेशों से काला धन कैसे भारत लाया जाए, यह आज का एक बड़ा सवाल है।
अनेक लोग मानते हैं कि शेयर बाजार में जो विदेशी संस्थागत निवेशकों के नाम से जो निवेश होते हैं, उनमें ज्यादातर वे पैसे हैं, जो भारतीयों ने विदेशों में जमा कर रखे हैं। वे पैसे विदशी संस्थागत निवेशक बनकर भारतीय ही शेयरबाजार में लगाते हैं इस तरह भारत का पैसा ही विदेशी पैसा बनकर शेयर बाजार में आता है। वैसे यह भी सच है कि कुछ असली संस्थागत निवेशक भी हैं, लेकिन उसमें ज्यादा पैसा मूल रूप से भारतीय ही है। इसलिए जब बजट में विदेशों में जमा काले धन के बारे में कोई ठोस नीति की घोषणा नहीं की गई, तो वैसे लोगों का उत्साह बढ़ा है और सरकार के किसी भावी कदम से बचने के लिए उनका पैसा भी शेसर बाजार में आना तेज हो गया है। इसके कारण शेयर बाजार को पंख लग गए हैं।
केन्द्रीय बजट में केन्द्र सरकार के बांडों में भी विदेशी निवेशकों को सौदा करने का अघिकार दे दिया गया है। यानी अब विदेशों में जमा भारतीय धन को भारतीय विदेशी धन बताकर वे बांड खरीद सकेंगे। 40 हजार करोड़ रुपए के बांड जारी करने का निर्णय केन्द्र सरकार ने किया है। उसके पहले रेल मंत्री ने भी 10 हजार करोड़ रुपए के बांड जारी करने का फैसला किया था। यानी 50 हजार करोड़ रूपए के बांड में विदेशी निवेशक भी सौदा कर सकते है। यह निर्णय भी बाजार में उत्साह भरने वाला था।
इसके अलावा कार्पोरेट टैक्स पर लगाए गए 10 फीसदी के सरचार्ज को घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया। यह भी कार्पोरेट सेक्टर को सरकार की तरफ से मिला एक तोहफा है, जिससे भी शेयर बाजार में उत्साह आए। अब भारतीय कंपनियां अपने विदेशी मातहत कंपनियों से प्राप्त डिविडेंड पर कम टैक्स अदा करेगी। यह भी विदेश आए पैसे को सुगम बनाने वाला एक निर्णय है और इसका प्रभाव भी शेयर बाजार पर पड़ना ही था।
कुछ सेवाओं को सरकार ने बजट प्रावधानों से महंगा भी कर दिया है। सेवा कर के दायरे को थोड़ा बड़ा कर दिया गया है। विमान की यात्रा भी महगी कर दी गई है और एसी हास्पीटल मंे कराए जाने वाला इलाज भी महंगा हो गया है। लेकिन इन सबसे पड़ने वाला बोझ कोई बहुत बड़ा नहीं है। जाहिर है उसके कारण बाजार को झटका लगने जैसी कोई बात नहीं है।
सवाल उठता है कि आने वाले दिनों में शेयर बाजार की स्थिति क्या होगी? वर्तमान संकेत तो यही बताते हैं कि निकट भविष्य में इस पर किसी तरह का खतरा मंडराता नहीं दिखाई पड़ रहा है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर जेपीसी के गठन की घोषणा के बाद देश का राजनैतिक तापमान कम हो गया है। आने वाले दिनों में 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। राजनीति का केन्द्र उस बीच दिल्ली हटकर चुनाव वाले राज्यों में बिखर जाएगा। इन चुनावों मे केन्द्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस अपनी स्थिति बेहतर बनाने की उम्मीद कर रही है, यदि वह इसमें सफल हो जाती है, तो उसकी सरकार की स्थिरता और भी बढ़ जाएगी। इस प्रकार शेयर बाजार के लिए बेहतर राजनैतिक माहौल बना रहेगा। हां, लीबिया की घटनाओं पर नजर रखनी होगी। यदि वहां स्थिति बहुत खराब हुई, तो तेल संकट के कारण शेयर बाजार सहित देश की पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। (संवाद)
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शेयर बाजार की तेजी के पीछे क्या है
लीबिया की घटनाएं खेल बिगाड़ सकती हैं
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-03-03 09:25
बजट पेश होने के बाद शेयर बाजार ने इसका जो स्वागत किया है, वह देखने लायक है। बजट पेश होने के पहले देश भर के शेयर बाजार घराशाई हो रहे थे। निफ्टी 5200 के अंक को छूने के लिए बेताब हो रहा था, तो संवेदनशील सूचकांक (सेंसेक्स) 1800 अंकों के नीचे डुबकी लगा चुका था। हाल ही कुछ महीने पहले सेंसेक्स 21000 के अंक को छू रहा था। जाहिर है कुछ महीनों की खुशहाली के बाद शेयर बाजार में मातम का माहौल था। भ्रष्टाचार के किस्से रोज के रोज आ रहे थे। संसद का शीतकालीन सत्र पूरा का पूरा भ्रष्टाचार के मसले को लेकर बिना किसी काम काज के समाप्त हो गया था। बजट सत्र पर भी अनिश्चय के बाद मंडरा रहे थे और उसके साथ ही देश में राजनैतिक अनिश्चितता का खतरा भी बढ़ गया था। जाहिर है शेयर बाजार उससे प्रभावित हो रहा था।