अब संध ने भोपाल का नाम बदलने के मसले को उठाना प्रारंभ कर दिया है। उसके नेता कह रहे है कि भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल कर दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि भोज नाम के कई राजा भारत में हुए हैं। इस नाम के एक राजा 11वीं सदी में भी हुए थे। देश के एक बड़े हिस्से पर इस राजा भोज का राज था। वर्तमान मध्यप्रदेश का एक हिस्सा भी राजा भोज के अधीन था।

आरएसएस के नेता उसी राजा भोज के नाम पर वर्तमान भोपाल का फिर से नामकरण करना चाहते हैं। उनका मानना है कि भोपाल का नाम पहले भोजपाल ही था और बाद में यह भोपाल हो गया। उसकी इस मांग के कारण राज्य की राजधानी में सांप्रदायिक उन्माद सा पैदा होने लगा है। राजा भोज हिन्दू थे। एक हिन्दू राजा के नाम पर इस शहर का नाम रखने से यहां के मुस्लिम लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। यही कारण है कि संघ के नेता नामकरण के इस मसले को उठा रहे हैं।

लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि भोपाल से राजा भोज का कोई संबंध कभी रहा ही नहीं। न ही तो इस शहर की स्थापना किसी भोज नाम के राजा ने की और न ही कभी भोपाल राजा भोज के राज्य का हिस्सा था। उनका कहना है कि भोपाल का नाम मुसलमानों का नहीं दिया हुआ है। यह एक संस्क्त शब्द भूपाल का बिगड़ा हुआ रूप है। भूपाल का मतलब जमीन की रक्षा करने वाला होता है। इसका नाम इसी से मायने रखता है।

भोपाल शब्द से एक संस्कृति का भी बोध होता है। भोपाली या भूपाली का एक सांस्कृतिक मायने होता है। यहां के अनेक लोग अपने का भूपाली अथवा भोपाली कहने में गर्व का अनुभव करते हैं। वे लोग पूछ रहे हैं कि आज हम अपने को भोपाली कहते हैं। जब इसका नाम बदलकर भोजपाल हो जाएगा, तो क्या हम अपने को भोजपाली कहेंगे? उनका यह भी पूछना है कि अपने को भोजपाली कहना कैसा लगेगा।

फिल्म शोले का एक किरदार है, जो अपने को शान से शूरमा भोपाली कहता है। उनका कहना है कि अब तक की सबसे ज्यादा सफल फिल्म के शूरमा भोपाली का क्या होगा? फिल्म शोले एक ऐसी फिल्म है, जिसका ऐतिहासिक महत्व हो गया है। यदि आज भोपाल का नाम भोजपाल कर दिया जाए, तो आने वाली पीढ़ियां उस फिल्म को देखकर पूछेंगी कि यह भोपाली क्या होता है।

कुछ दिनों पहले एक बैठक हुई, जिसमें समाजवादी पार्टी, क्म्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस, कुछ मजदूर संघ और कुछ गैर सरकारी संगठनों ने हिस्सा लिया। बैठक में भोपाल का नाम बदलने के प्रस्ताव का विरोध किया गया। इसके लिए लोगों में चेतना पैदा करने का भी संकल्प किया गया। भोपाल के युवा लोग भी नाम बदलने की मुहिम का विरोध कर रहे हैं। वे पत्र लिखकर मुख्यमंत्री को अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं।
नाम बदलने का विरोध करने वालों में एमएन बुच भी शामिल हैं। 71 वर्षीय बुच सेवानिवृत आइएएस अधिकारी हैं। उन्हें वर्तमान भोपाल का आर्किटेक्ट कहा जाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी लिखकर इस मुहिम का विरोध किया है। किसी शहर का नाम तबतक नहीं बदला जा सकता, जबतक केन्द्र सरकार ने उसके लिए अपनी सहमति नहीं दी हो। श्री बुच ने केन्द्र सरकार से कहा है कि वह नाम बदलने के किसी भी प्रस्ताव को साफ मना कर दे।

अपने पत्र में श्री बुच ने भोपाल के इतिहास का भी जिक्र किया है और कहा है कि भोपाल नाम का मुसलमानों से कोई संबंध नहीं है। भोपाल संस्कृत शब्द भूपाल से निकला है और उसका मतलब जमीन की रक्षा करने वाला होता है। उन्होंने कहा है कि भोपाल का नाम उस व्यक्ति पर रखने का कोई मतलब नहीं बनता, जिसने न तो इसकी स्थापना की और जो न ही किसी अन्य रूप से इस शहर से कभी जुड़ा रहा है।

भोपाल का नाम भोजपाल करने का विरोध डाक्टर भगवतीलाल राजपुरोहित भी कर रहे हैं। वे उज्जैन स्थित महारजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक हैं। उन्होंने राजा भोज पर पीएचडी भी कर रखा है। उनका कहना है कि भोपाल कभी भी भोजपाल के नाम से नहीं जाना जाता था। (संवाद)