हमारा देश कभी भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं रहा है। चाहे सरकार जिसकी भी रही हो, भ्रष्टाचार हमेशा लोगों को सताता रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस मसले पर देश में जितनी चर्चा हो रही है, उतनी कभी नहीं हुई। इसका कारण यह है कि भ्रष्टाचार से जुड़ी रकम इतना ज्यादा है कि खुद भ्रष्ट लोगों के दिमाग को भी चक्कर आने लगा है। केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले पर जो रवैया अपनाया अथवा यह कहें कि उसने जिस तरह से अपनी प्रतिक्रिया दिखाई, उसके कारण भी भ्रष्टाचार की गंभीरता और भी बढ़ गई है। केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले सर्वाच्च पद केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पर एक ऐसे व्यक्ति को बैठा दिया, जिसके खिलाफ खुद भ्रष्टाचार का एक मामला चल रहा है। उसके बाद सरकार ने उस व्यक्ति की नियुक्ति को अदालत में जाकर उचित भी बताया। यह देश के अधिकांश लोगों को पसंद नहीं आया। अंत में अदालत द्वारा उस व्यक्ति की नियुक्ति को अवैध करार दिए जाने के बाद केन्द्र सरकार ने भी अपनी गलती स्वीकार कर ली।
विदेशी बैंकों में जमा काले धन को लेकर केन्द्र सरकार का रवैया भी बहुत लोगांे को आपत्तिजनक लग रहा है। केन्द्र सरकार के पास उस अवैध घन से संबंधित जितनी सूचनाएं उपलब्ध हैं, उन सूचनाओं को भी वे सार्वजनिक करने के लिए तैयार नहीं है। यही नहीं 2 जी भ्रष्टाचार के जेपीसी जांच की मांग का सरकार ने दृढ़ता से विरोध किया था, हालांकि काफी फजीहत होने के बाद अंत में सरकार उसके लिए तैयार हो गई, लेकिन विलंब के कारण भ्रष्टाचार का मसला देश भर में गुंजता रहा। कहने की जरूरत नहीं कि केन्द्र सरकार की पार्टियों ने इस मसले पर अपनी अच्छी खासी फजीहत करवाई है। उनमें भी कांग्रेस और एनसीपी की ज्यादा भद्द पिटी है।
अब जब चुनाव हो रहे हैं तो पार्टिया इस मसले को उठाएंगी ही, क्योंकि यह आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इस मुद्दे पर कांग्रेस रक्षात्मक स्थिति में है, हालांकि भाजपा के खिलाफ वह आक्रामक भी हो जाती है। पर विधानसभा कु चुनाव जिन राज्यों में हो रहे हैं, उनमें से असम को छोड़कर भाजपा कहीं कोई राजनैतिक फैक्टर है ही नहीं। असम में भी कांग्रेस के खिलाफ वह कोई अकेली विपक्षी पार्टी नहीं है। अन्य 4 राज्यों में तो उसके चुनाव लड़ने या न लड़ने का भी कोई मतलब नहीं है।
सवाल उठता है कि क्या इन राज्यों के चुनावों में भ्रष्टाचार कोई बड़ा मसला बन पाएगा और यह चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर पाएगा? चुनावों के भ्रष्टाचार के मसले से प्रभावित होने का मतलब आज के दिन में कांग्रेस और उसकी सहयागी पाटियों का नुकसान है, क्योंकि सभी राज्यों में कांग्रेस और उसकी समर्थक पार्टी महत्वपूर्ण राजनैतिक ताकते हैं। असम में कांग्रेस अकेली चुाव लड़ रही है। वह दो बार से लगातार वहां सरकार में है और तीसरी बार वहां सरकार बनाने का दावा करती हुई चुनाव लड़ रही है। वहां उसका सामना बसम गण परिषद और भाजपा के साथ है। कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि वह वहां जीत की तिकड़ी लगाकर रहेगी। उसे इस बात की चिंता नहीं है कि आज वह देश भर में भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़ी है।
पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस अपनी पार्टनर तृणमूल कांग्रेस के साथ सत्ता की प्रबल दावेदार बनी हुई है। वहां वह ममता बनर्जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही हैं और ममता के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है। वामपंथी दल वहां सत्ता बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, हालांकि उनकी जीत की उम्मीद बहुत ही कम है। अपनी हार से बचने के लिए वे भ्रष्टाचार और महंगाई को जरूर भुनाना चाहेंगे। प्रश्न है कि क्या सत्ता बदलने के लिए आतुर बंगाल की जनता क्या वामदलों की डूबती नैया को पार लगा सकेंगे अथवा वहां भ्रष्टाचार कोई मसा ही नहीं बन पाएगा?
यदि यह मसला कहीं सबसे ज्यादा जोर शोर से उठेगा, तो वह तमिलनाडु है, जहां करूणानिधि फिर से सत्ता पाने के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में खुद करुणानिधि और उनकी पार्टी आ चुकी है। 2 जी घोटाला में उनकी पार्टी के ए राजा जेल के अंदर हैं और उनकी बेटी और पत्नी से सीबीआई पूछताछ कर रही है। यदि उनकी भी गिरफ्तारी हो जाए, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि इस तरह की पूछताछ के बाद आमतौर पर गिरफ्तारी होती है। जाहिर है प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार के मसले सबसे ज्यादा तमिलनाडु में ही उठेंगे। जयललिता करुणानिधि को चुनौती दे रही हैं और सुब्रह्मण्यम स्वामी जिन्होंने सीवीसी को हठवाने में भूमिका निभाई, तमिलनाडु के ही हैं। जयललिता की समस्या यह है कि उनके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, लेकिन उनसे जुड़े मामले पुराने पड़ गए हैं, जबकि करुणानिधि, उनकी पार्टी और उनके परिवार से जुड़े मामले ताजा तरीन हैं, इसलिए विपक्ष इस मामले को जनता में ले जाकर उसका राजनैतिक फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। पांडिचेरी में हो रहे चुनाव में वही तर्क काम करेंगे, जो तमिलनाडु में करेंगे।
केरल एक अन्य राज्य है, जो भ्रष्टाचार के मसले को लेकर कुछ ज्यादा बड़ा संकेत देने वाला साबित हो सकता है। यह देश का सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य है। यहां की लगभग शत प्रति शत आबादी शिक्षित है। यहां की राजनीति की खासियत यह है कि पिछले कई चुनावों से बारी बारी से एक बार सीपीएम के नेतृत्व वाला मोर्चा जीतता है, तो दूसरी बार कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा। इस बार कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे की जीत की बारी है। पिछले लोकसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों में सीपीएम के नेतृत्व वाला मोर्चा पराजित भी हो चुका है। लेकिन इस विधानसभा चुनाव के पहले उसके पास भ्रष्टाचार का एक ऐसा मसला है जिसका इस्तेमाल कर वह इतिहास को यहां दोहराए जाने से रोक सकता है। पी जे थामस, जिन्हें अदालती आदेश के बाद सीवीसी के पद से हटाया गयाण् इसी राज्य से ताल्लुक रखते हैं और इस राज्य के एक कांग्रेसी पूर्व मंत्री को भ्रष्टाचार के एक मामले में एक साल की सजा दी गई है। यदि भ्रष्टाचार के मसले ने काम किया और दो फीसदी मतदाता भी इधर से उघर हुए, तो यहां वास्तव में नया इतिहास बन जाएगा। पर सवाल उठता है कि क्या यह वाकई हो पाएगा? (संवाद)
भारत
क्या भ्रष्टाचार मुद्दा बन पाएगा आगामी विधानसभा चुनावों का?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-03-15 11:39
आने वाले दिनों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ये चुनाव पांच राज्यो मंे हांेगे, जो देश के पूर्वी और दक्षिणों हिस्सों में हैं। सभी चुनावों के अपने मुद्दे होते हैं। कुछ मुद्दे सरकारी दल उठाते हैं, तो अधिकांश मुद्दे विपक्षी पार्टियां उठाती है। कुछ मसले ऐसे होते हैं, जो खुद ब खुद लोगों के सामने मौजूद होते हैं। भ्रष्टाचार आज इसी तरह का एक मुद्दा है।