इस प्रकार के तर्क को आगे बढ़ाते हुए परमाणु बिजली को ताप बिजली से बेहतर माना जाता है। परमाणु बिजली तैयार करने वाले यूरेनियम अथवा प्लूटोनियम से भी खतरनाकर तरंगे विकरित होती हैं, जिससे जीवन को ही खतरा पैदा हो जाता है। लेकिन परमाणु ऊर्जा के पैरोकार कहते हैं कि उनके विकरण को नियंत्रित किया जा सकता है। जहां जहां परमाणु कार्यक्रम चल रहे हैं, वहां विकरण को नियंत्रित करने की व्यवस्था भी होती है, लेकिन किसी भी नियंत्रण व्यवस्था के विफल होने की आशंका तो हमेशा रहती है। जापान में भी वह नियंत्रण व्यवस्था विफल हुई है, हालांकि उसकी विफलता भूकंप और सुनामी आने के बाद ही सामने आई है। पर इस तरह की प्राकृतिक विपदाएं तो कभी भी और कहीं भी आ सकती हैं और मानव द्वारा की गई सुरक्षा का चक्रव्यूह उन प्राकृतिक विपदाओं के सामने लाचार साबित हो सकता है, तो फिर मानव उतना बड़ा खतरा ही क्यों उठाए जिससे मानवता के विनाश का ही खतरा पैदा हो जाता हो?

जापान की उस परमाणु दुघर्टना के बाद दुनिया भर में चल रहे परमाणु कार्यक्रमों को लेकर सवाल खड़े होने लाजिमी हैं। इसके बाद परमाणु कार्यक्रमों के नियंत्रित होने के किसी भी दावे पर सवालिया निशान खड़ा किया जा सकता है। भारत भी परमाणु कार्यक्रम चलाने वाला एक देश है। यहां परमाणु कार्यक्रम आजादी के बाद से ही चल रहे हैं। चीन से भारत के युद्ध के बाद इन कार्यक्रमों में तेजी आ गई थी। 1974 में तो पोखरण में परमाणु परीक्षण करके भारत ने परमाणु बम बनाने की अपनी क्षमता का अहसास भी दुनिया को करा दिया था, तब दुनिया भर में भारत की यह कहकर आलोचना होने लगी थी कि वह परमाणु हथियारों का कार्यक्रम चला रहा है। भारत ने उस समय कहा था और बाद में भी वह यह कहता आ रहा है कि हमारा परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिए है। शांतिपूर्ण उद्देश्यों में ही सबसे बड़ा उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के उत्पादन करने की है।

भारत एक आर्थिक रूप से विकास करता हुआ एक देश है। आर्थिक विकास के साथ साथ ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जाती है। ऊर्जा का एक प्रमुख सा्रेत भारत में कोयला है, जिससे बिजली का भी उत्पादन होता है, पर यह सा्रेत ज्यादा दिनों तक काम नहीं आएगा। इसके अलावा कोयला से तैयार बिजली से वातावरण भी खराब होता है। यही कारण है कि भविष्य की ऊर्जा और बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा को एक मात्र रास्ता मान लिया गया है। यही कारण है कि भारत परमाणु कार्यक्रमों को गंभीरता से चला रहा है। परमाणु परीक्षणों के कारण दुनिया के दूसरे देशों ने इसके परमाणु कार्यक्रमों को सहयोग देना और उससे जुड़े सौदे करना बंद कर दिया था। मनमोहन सिंह की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका से परमाणु समझौता कर भारत की इस समस्या का हल निकाल दिया है। भारत अब दुनिया के अन्य देशों के साथ परमाणु कार्यक्रमों से संबंधित सौदा करने में पहले की अपेक्षा ज्यादा सक्षम हो गया है। और इसके साथ ही इसके परमाणु कार्यक्रम भी अब तेजी पकड़ने लगे हैं, हालांकि भारतीय संसद ने पिछले साल जो परमाणु दायित्व कानून बनाए थे, उस पर अमेरिका जैसे देशों को आपत्ति है और वे कह रहे हैं कि उसके कारण भारत के साथ परमाणु सौदा करना विदेशी सौदागरों के लिए जोखिम भरा काम है। परमाणु दायित्व कानून के वे प्रावधान दुर्धटनाओं से ही संबंधित है जिसके तहत दुर्धटना की जिम्मेदारी परमाणु उपकरणों की आपूर्त्ति करने वाले आपूर्त्तिकर्त्ताओं पर डाली गई है।

बहरहाल, भारत में परमाणु कार्यक्रमों में पहले की अपेक्षा तेजी आ गई है। महाराष्ट्र के जैतापुर में 9999 मेगावाट का परमाणु बिजली उत्पादन केन्द्र बनाया जा रहा है। यह काम फा्रंस की सहायता से हो रहा है। जैतापुर के लोग वहां परमाणु बिजली घर बनाने का विरोध भी कर रहे हैं। उनके विरोध को केन्द्र सरकार अनसुना कर रही है। जापान की परमाणु दुर्घटना के बाद वहां विरोध का स्वर और भी बुलंद होगा। उसके खिलाफ विरोध में आवाज संसद में भी उठी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस विरोध को एक बार फिर अनसुना कर दिया है। भारत के परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े लोग एक स्वर में कह रहे हैं कि भारत के परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह सुरक्षित हैं। वे सुरक्षा को और भी चाक चौबंद किए जाने की दलीलें दे रहे हैं। लगभग सभी परमाणु वैज्ञानिक भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे देश को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जापान में भले ही इस प्रकार की दुर्घटना हो गई हो, पर भारत में वैसा हो ही नहीं सकता।

पर सवाल उठता है कि भारत में उस तरह की दुर्धटना क्यों नहीं हो सकती? क्या भारत के लोग जापान के लोगों से ज्यादा अनुशासित और जवाबदेह हैं? क्या भारत में प्राकृतिक आपदाएं नहीं आतीं? हां, जापान जैसा भूकंप संभावी क्षेत्र भारत में नहीं है, लेकिन भूकंप यहां भी आते हैं। जिस जैतापुर में दुनिया का सबसे बड़ा बिजली केन्द्र बन रहा है, वह भी भूकंप संभावित इलाके में ही है। महाराष्ट्र के लातूर में किस पैमाने का भूकंप आया था, वह हम देख चुके हैं। भारत में तो आतंकवादियों के हमले का भी खतरा है। भारत की सुरक्षा व्यवस्था में आतंकवादी अनेक बार सेंध लगा चुके हैं। इसके अलावा किसी फैक्टरी में किसी प्रकार के औद्योगिक हादसे की आशंका तो हमेशा बनी ही रहती है। तो फिर भारत इस प्रकार का खतरा क्यों मोल ले?

यह सच है कि भारत को बिजली और अन्य प्रकार की ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी, लेकिन इसके लिए हम सौर और पवन जैसे ऊर्जा सा्रेतो के दोहन के कार्यक्रम चल सकते हैं। ये दोनों ऊर्जा के वे सा्रेत हैं, जो कभी समाप्त होने वाले नहीं हैं और किसी प्रकार का प्रदूषण भी उनसे पैदा नहीं होता। यदि हमारे पास ऊर्जा का ऐसा स्रोत मौजूद है तो फिर पूरी मानवता पर खतरा पैदा करने वाला रास्ता हम अख्तियार क्यों करें? (संवाद)