पहली बात तो यह है कि जगन मोहन हड़बड़ी कर रहे एक युवा नेता हैं। वे बहुत हद तक अपने पिता राजशेखर रेड्डी की तरह हैं, जिनकी छवि भी एक विद्रोही तेवर अपनाने वाले एक नेता की थी। अंतर सिर्फ यह है कि राजशेखर रेड्डी ने कभी कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ विद्रोह नहीं किया, बल्कि उनका विद्रोह राज्य के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ तक ही सीमित था। उनका यह विद्रोही तगवर उस समय तक रहा, जबतक वे खुद मुख्यमंत्री नही बन गए। दूसरी तरह जगन ने कांग्रेस आलाकमान को ही चुनौती देना शुरू कर दिया था और वह भी इसलिए कि वह अपने पिता की जगह लेना चाहते थे।

चिरंजीवी के साथ तो जगन की कोई तुलना ही नहीं है। दोनों के बीच आसमान जमीन का अंतर है। चिरंजीवी की सभा में अपने आप भीड़ उमड़ आती है, जबकि जगन भीड़ जुटाने के लिए भारी पैमाने पर पैसा खर्च करते हैं। कुछ कहा नहीं जा सकता कि वह भीड़ जुटाने के लिए कबतक पैसा खर्च करते रहेंगे। चिरंजीवी पार्टी बनाकर कुछ कर नहीं पाए, क्योंकि वे लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं पेश कर पाए थे। इधर जगन मोहन ने तो अभी नई नई पार्टी बनाई है, जिसके बारे में कुछ भी कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी। चिरंजीवी ने जमीनी स्तर पर अपनी पार्टी को उतारने की कोशिश भी नहीं थी और अपने करिश्मे पर निर्भर कर रहे थे, जबकि जगन नीचले स्तर तक अपनी पार्टी को बनाने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि वह किस हद तक अपनी पार्टी को बना पाएंगे।

दोनों के समय और परिस्थितियों में भी भारी अंतर है। जिस समय चिरू ने पार्टी बनाई थी, उस समय कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी- दोनों ही मजबूत थी। लिहाजा नई पार्टी के लिए कोई जगह ही खाली नहीं थी, लेकिन इस समय नई पार्टी के लिए कुछ जगह दिखाई जरूर पड़ रही है। यह जगह बन रही है कांग्रेस के लगातार कमजोर होने से। राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद कांग्रेस को ढंग का कोई नेता नहीं मिल पाया है और तेलंगना ने उसकी स्थिति विचित्र कर रखी है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार तेलंगना के गठन पर अपनी स्वीकृति दे चृकी है, लेकिन राज्य के गठन की दिशा में वह कोई ठोस कदम न तो उठा रही है और न ही कोई कदम उठा पाने की स्थिति में फिलहाल दिखाई पड़ रही है। यही कारण है कि एक नई पार्टी के लिए जगह बनती दिखाई पड़ रही है।

इसके बावजूद जगन की पार्टी की सफलता संदिग्ध है। इसका कारण यह है कि पार्टी के नाम और झंडे के अलावा किसी को पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पता है। पार्टी का नाम रखा गया है वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और झंडे में कांग्रेसी तिरंगे के बीच राजशेखर रेड्डी की तस्वीर डाल दी गई है।

जगन अपने पिता के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपने पिता के कार्यकाल में चलाई गई जन कल्याण की 9 योजनाओं का भी पूरा प्रचार कर रहे हैं, लेकिन उनके पिता ने वे योजनाएं कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में चलाई थीं और दरअसल वे कांग्रेस की नीति पर चलना था। इसलिए कांग्रेस के कार्यक्रमों को आधार बनाकर राजनीति में आगे बढ़ने की जगन की रणनीति संदिग्ध हो जीती है।

इसके अलावा जगन 2014 को लक्ष्य मानकर चल रहे हैं। विधानसभा का अगला चुनाव यदि समय पर हुआ, तो वह 2014 में होगा। पर स्थिति जो रूप ले रही है, उसके कारण पहले भी चुनाव होने की संभावना बन सकती है। तेलंगना आंदोलन ने यदि जोर पकड़ा तो राज्य सरकार का बने रहना मुश्किल हो सकता है। फिर उसके बाद राष्ट्रपति शासन लग सकता है। राष्ट्रपति शासन के बाद चुनाव भी हो सकते हैं। यदि वह समय जल्द आ गया, तो जगन की गणना अपनी जगह पर धरी की धरी रह जाएगी। (संवाद)